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Jagran Special : नूतन दीदी के आंगन में शाम को गूंजती है बच्चों की ये... आवाजें Badaun News

स्कूल से लौटने के बाद शाम को उन बच्चों के लिए पढ़ाने में जुट जातीं। नूतन दीदी के आंगन में हर शाम ककहरे का आवाज गूंजती है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Thu, 20 Feb 2020 03:18 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 05:41 PM (IST)
Jagran Special : नूतन दीदी के आंगन में शाम को गूंजती है बच्चों की ये... आवाजें Badaun News
Jagran Special : नूतन दीदी के आंगन में शाम को गूंजती है बच्चों की ये... आवाजें Badaun News

अभिषेक सक्सेना, बदायूं : शिक्षा उन्हें संस्कार में मिली। पारिवारिक परिवेश भी उसी से परिपूर्ण है। पति शिक्षक हैं, खुद भी स्कूल में पढ़ाती हैं। बच्चों को पढ़ाने की ललक स्कूल ड्यूटी के आठ घंटों से आगे बढ़ती गई, ...उन बच्चों के लिए जिनकी पढ़ाई में संसाधन आड़े आ रहे। स्कूल से लौटने के बाद शाम को उन बच्चों के लिए पढ़ाने में जुट जातीं। नूतन दीदी के आंगन में हर शाम ककहरे का आवाज गूंजती है।

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श्रीरामनगर कालोनी में रहने वाली नूतन रानी प्राथमिक विद्यालय खुनक में शिक्षिका हैं। पति डॉ. शिवराज सिंह एनएमएसएन दास कालेज में प्रवक्ता हैं। दोपहर को स्कूल से लौटने के बाद वह घरेलू काम को वक्त देती हैं। शाम पांच बजे से पड़ोसी गांव सिरसा, भगवतीपुर के बच्चे उनके पास पढ़ने पहुंच जाते हैं। ये वे बच्चे हैं जिनके अभिभावकों के पास संसाधन नहीं हैं। पढ़ाई के लिए किताबें, स्कूल बैग तक का इंतजाम नहीं कर पाते। नूतन ही उनके लिए ये सारी बंदोबस्त करती हैं। कहती हैं कि इन बच्चों को घर में पढ़ाकर उनके मन में पढ़ाई के लिए ललक पैदा करते हैं। ताकि वे प्रेरित होकर खुद अपने गांव के स्कूल में नियमित पढ़ाई के लिए जाएं। बाकी जो खर्च होंगे, मैं वहन करती रहूंगी।

नूतन कहती हैं कि शिक्षक के लिए काम के घंटे तय नहीं होते। स्कूल भले ही सात-आठ घंटे खुलता हो मगर शिक्षक का काम तो अनवरत शिक्षा प्रदान करना होता है। यही वजह है कि दोपहर को परिवार के जरूरी काम निपटाने के बाद मैं एक बार फिर बच्चों को पढ़ाने के लिए बैठ जाती हूं। पति भी इसमें पूरी मदद करते हैं। कोशिश कर रही हूं कि गांव के बच्चे पढ़ाई का मोल समङों। यहां आकर पढ़ाई उनकी आदत में शामिल हो। इसके बाद चाहें तो आगे की पढ़ाई के लिए अपने क्षेत्र के स्कूलों में प्रवेश लेकर इसे निरंतर रखें।

त्योहार भी इन्हीं के नाम : अपने घर में लगने वाली पाठशाला में ही नूतन हर त्योहार भी मनाती हैं। फिर चाहें होली हो या दिवाली या फिर ईद। बच्चों में एकता और अखंडता का भाव विकसित करने के लिए वह ऐसा करती हैं। बकौल नूतन, आठ साल पहले उन्होंने अपनी एक वरिष्ठ शिक्षिका को ऐसा करते हुए देखा था। तभी से उन्होंने भी शिक्षित समाज की स्थापना में सहयोग की ठान ली। अभी उनकी इस पाठशाला में 17 बच्चे पढ़ रहे हैं। इनमें कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के छात्र-छात्रएं शामिल हैं।

शुरूआत में हुई दिक्कत : नूतन ने बताया कि शुरूआत में ऐसा करने में उन्हें कुछ दिक्कत आई थी। क्योंकि अभिभावक उनसे ऐसा करने की वजह पूछते थे लेकिन धीरे-धीरे बच्चों को पढ़ता देख लोगों में भी अच्छा संदेश गया। ऐसे में कई लोग ऐसे भी हैं, जिनके बच्चे अगर पढ़ाई में कमजोर होते हैं तो वे उन्हें नूतन की पाठशाला भेजते हैं।


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