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शहरनामा : उद्घाटन पर पड़ गया 'पत्थर'

मौका रायफल क्लब के उद्घाटन का था। बड़े साहब ने न्यौता सपा के पूर्व विधायक को दिया। पूर्व विधायक भी समय पर फीता काटने पहुंच गए। तैयारी मुकम्मल मानी जा रही थीं। सिटी मजिस्ट्रेट भी अगुवाई के लिए मौजूद थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 01:55 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 01:55 AM (IST)
शहरनामा : उद्घाटन पर पड़ गया 'पत्थर'

बरेली, अभिषेक जय मिश्रा :

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मौका रायफल क्लब के उद्घाटन का था। बड़े साहब ने न्यौता सपा के पूर्व विधायक को दिया। पूर्व विधायक भी समय पर फीता काटने पहुंच गए। तैयारी मुकम्मल मानी जा रही थीं। सिटी मजिस्ट्रेट भी अगुवाई के लिए मौजूद थे। ऐन वक्त पता चला कि उद्घाटन वाला पत्थर ही नहीं पहुंच है। अधिकारी असमंजस में, मातहत दौड़भाग करते रहे। क्योंकि बिना पत्थर लगे उद्घाटन हो नहीं सकता। पूर्व विधायक कभी कमरे के अंदर, कभी कमरे के बाहर। लापरवाही पर जिले के मुखिया नाराज होते रहे, लेकिन मातहत करते भी तो क्या। एक टीम पत्थर तैयार करने वाले के पास ही बैठ गई। करीब ढाई घंटे तक पत्थर नहीं पहुंच सका। कभी गर्म कभी ठंडा पिलाने के बहाने पूर्व विधायक को रोके रखा गया। जिले के मुखिया भी फोन पर ठंडे-गरम होते रहे। सिटी मजिस्ट्रेट और एडीएम वित्त भी मैनेजमेंट में लगे रहे, लेकिन पत्थर आया पूरे तीन घंटे के बाद। ट्रैक से उतर रही साइकिल

साइकिल वाली पार्टी में नेताओं की गुटबाजी सार्वजनिक मंचों पर भी छिपती नहीं है। समाजवादी पार्टी की जिला इकाई सूबे की कानून व्यवस्था को लचर बताते हुए प्रदर्शन करने के लिए कलक्ट्रेट पर इकट्ठा हुई। सपा के जिलाध्यक्ष कोविड संक्रमित होने के कारण प्रदर्शन में मौजूद नहीं थे। जिला महासचिव सत्येंद्र यादव पार्टी कार्यालय के अंदर ज्ञापन तैयार कर रहे थे। इस बीच महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने मोर्चा संभालकर भाषण शुरू कर दिया। कार्यकर्ता भी नारेबाजी करने लगे। महासचिव ने आंखे तरेरीं तब जाकर कार्यकर्ता थमे। यह महज एक वाकया है। जिला कमेटी में पहले भी पूर्व और वर्तमान पदाधिकारी आमने-सामने आ चुके हैं। सिविल वार कोल्ड तो कभी हॉट हो जाता है। जड़ों में मट्ठा डालने का मौका कोई नहीं छोड़ता। गुटबाजी की चर्चा बरेली तक ही सीमित नहीं है। लखनऊ में सपा सुप्रीमो तक परेशान हैं कि गुटबाजी आगामी चुनावों पर भी असर न डाल दे। आखिर कार्यकताओं का मोरल भी बूस्टअप करना है.

बरेली लव जिहाद के लिए फिर हाईलाइट हुआ। विरोध ऐसा हुआ कि किला थाने में तोड़फोड़ की नौबत आ गई। अनुशासित पार्टी के नेता भी इसमें आगे दिखे। हंगामा बढ़ा तो कमल का हाथ थामे शीर्ष नेता भी पहुंचे। शाम तक तय हो सका कि पार्टी और संगठन से जुड़े लोगों पर एक्शन नहीं लिया जाएगा। लेकिन देर रात तक पुलिस ने यू-टर्न ले लिया। मुकदमा तो लिखा ही साथ में पार्टी और संगठन का नाम भी खोल दिया। सुबह बात आम हुई तो सत्तारूढ़ दल के जिले के शीर्ष नेताओं ने नाराजगी जताई। मुकदमा खारिज करने के लिए पुलिस के मैनेजमेट गुरु से मीटिंग फिक्स की गई। हालांकि इस बीच सुप्रीम पावर से फरमान आ गया। बताया कि जनहित जरूरी है, पुलिस का सहयोग करे। इस पर बैठक टाली गई। हालांकि अन्य का मोरल डाउन न हो, इसलिए शहर और बिथरी चैनपुर वाले माननीय कार्यकर्ताओं के परिजनों से मिले। सरकारी सिस्टम और किसानों के बीच बिचौलिया

धान क्रय केंद्र, किसानों को सहूलियत और सही मूल्य देने के लिए सक्रिय है। मगर किसान इन केंद्रों से दूरी बनाए हुए हैं। जौहरपुर के क्रय केंद्र पर शहर विधायक डॉ. अरुण को किसान ही नहीं मिले। प्रभारियों ने पल्ला झाड़ लिया कि रोज के 300 क्विटल का लक्ष्य भी पूरा करना मुश्किल ही समझे। शहर विधायक ने डीएम को फोन कर कहा कि सिस्टम में कहीं तो खामी है। इतनी व्यवस्थाओं के बाद भी धान बिचौलियों के जरिये बिक रहा है। नवाबगंज, मीरगंज और आंवला के क्रय केंद्रों पर निरीक्षण में रजिस्टर पर चढ़े किसानों के नामों और मोबाइल नंबर क्रास चेक करने पर धान बिचौलियों के जरिये ही बेचने की पुष्टि हुई। जांच बैठाई जा रही है, मदद के लिए कलक्ट्रेट में कंट्रोल रूम में सुनवाई शुरू हुई। सवाल उठता है कि धान खरीद में आखिर सरकारी सिस्टम पर किसानों का भरोसा क्यों नहीं जम पा रहा है।


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