Jagran Column : राह चलते मिले अतिथि ने मंच से खोली आयोजकों की हकीकत Bareilly News
रुहेलखंड विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग में पिछले दिनों आयोजित राष्ट्रीय स्तर के एक सेमिनार में हास्यास्पद वाकया देखने को मिला।
हिमांशु मिश्र, बरेली : रुहेलखंड विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग में पिछले दिनों आयोजित राष्ट्रीय स्तर के एक सेमिनार में हास्यास्पद वाकया देखने को मिला। हुआ कुछ यूं कि पहले दिन तो आयोजकों ने दूर-दराज से बड़े विशेषज्ञों को बुला लिया मगर दूसरे दिन अतिथि नहीं मिल सके। मंच सूना न रह जाए, आयोजकों को यह फिक्र सताने लगी। अचानक डॉ. भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. डीएन जौहर प्रशासनिक भवन के पास दिख गए। पता चला कि वह लॉ का रिसर्च डिमास्ट्रेशन देखने आए हैं। आयोजक मंडल के लोग उनके पास पहुंचे और कह दिया कि आप ही हमारे अतिथि हैं। जौहर साहब मना नहीं कर सके। सभागार में पहुंच गए मगर विषय भी ऐसा था कि वह सोच में पड़ गए। मंच से ही अपनी बेबसी बयां कर दी। कहा, मुझे इसके बारे में कुछ मालूम नहीं। मैं तो जहां भी जाता, होमवर्क करके जाता हूं, आज के लिए माफ करें।
असल अधिकार किसके पास
बरेली कॉलेज में तीन साल से प्राचार्य की कुर्सी को लेकर खूब उठापटक हो रही। अक्सर चर्चा उठती है कि तीन-तीन महीने के अस्थाई प्राचार्य बनाने का क्या औचित्य। फिलहाल, माहौल कुछ ऐसा है कि कहा जाने लगा- इस कुर्सी की असल ताकत को बिग बॉस के पास रहती है। विरोध न हो तो कार्यकाल बढ़ाते जाते हैं। अन्य वरिष्ठ शिक्षक जब अड़ जाते हैं तो उन्हें ठंडा करने के लिए अपनी किसी दूसरे खास को अगले तीन महीने के कार्यकाल के लिए कुर्सी पर बैठा देते हैं। झमेलों से निपटने के लिए बिग बॉस का दम मिलता रहता है इसलिए प्राचार्य भी अलग राह चलने की कोशिश तक नहीं करते। बिग बॉस के दरबार में हर फाइल हाजिर की जाती है। पिछले दिनों इस बात पर तंज किए जाने लगे तो प्राचार्य बोल पड़े, भाई मेरा क्या, फाइल उन्हीं के पास जाने दो। पता नहीं कब कुर्सी चली जाए।
शॉवर के नीचे रेनकोट
रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्रशासनिक महकमे में एक बड़े साहब हैं। उनके पास विश्वविद्यालय के साथ महाविद्यालयों के छात्रों से जुड़ा काफी महत्वपूर्ण विभाग भी है। साहब बहुत ही मिलनसार हैं। कोई भी चला जाए, बिना चाय-पानी वापस नहीं जाने देते। लेकिन उनके विभाग वालों का क्या कहना। वहां कोई भी काम खास शर्तें पूरी किए बिना नहीं होता। साहब भी इन हालात से अच्छी तरह वाकिफ हैं। बीते दिनों एक कॉलेज वाले ने तो उनके सामने ही उनके कार्यालय के बाबू की पोल भी खोल दी। साहब मुस्कुराते हुए सुनते रहे और मीठी बोली के सहारे सबकुछ साध लिया। यह क्या था- पूछने पर कहने लगे कि तुम तो जानते ही हो, यह सब दबाव बनाने का खेल है। खैर, उनकी मुस्कुराहट वाली अदा पर लोग कहने लगे हैं कि कहीं साहब भी रेन कोट पहनकर शॉवर में नहा तो नहीं रहे। यानी वो नहा भी लें, भीगे भी ना।
संस्कारी अब डराने लगे
खुद को संस्कारी बताने वाले छात्र संगठन का रवैया बरेली कॉलेज और रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों का डराने लगा है। न जाने कब किस बात पर हंगामा खड़ा कर दें और किसका पुतला फूंक दें। बीते दिनों भी ऐसा ही हुआ। उक्त छात्र संगठन के कुछ पदाधिकारी खेल विभाग में पहुंचे। कर्मचारी से भिड़े, बीच-बचाव के लिए शिक्षक पहुंचे तो उन पर भी तीखे तेवर उड़ेल दिए। गुरु-चेले का दायरा तोड़कर महज प्रदर्शनकारी बन मोर्चा लेने लगे। जैसे-तैसे माहौल ठंडा होने के बाद शिक्षक स्टाफ रूम में बैठे तो दोहराने लगे- खुद को संस्कारी कहने वाले तो अब डराने लगे हैं। कभी रैली निकालने लगते हैं तो कभी विभागों में हंगामा खड़ा कर देते हैं। शिकायत करो तो कॉलेज के बड़े अफसर टाल देते हैं। हो सकता है कि वे छात्र नासमझ हों मगर कॉलेज के अनुशासन का सवाल है। फिक्र है कि संस्कारी अब दोबारा संस्कारयुक्त कब दिखेंगे।