Move to Jagran APP

पीसीएस अधिकारी बनने की इच्‍छा रखने वाली युवती ने बच्चों के भविष्‍य के लिए पेड़ के नीचे सजा दी क्‍लास

कोई गरीब शिक्षा से दूर न रहे इसके लिए उन्होंने गांव में पेड़ के नीचे निश्शुल्क कक्षा लगानी शुरू कर दी। इस वक्त करीब 90 बच्चे उनसे रोजाना पढऩे आते हैं। करेली गांव में पेड़ के नीचे रोजाना ज्योति बच्चों मेें शिक्षा का प्रकाश फैला रहीं।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 12:15 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 05:10 PM (IST)
पीसीएस अधिकारी बनने की इच्‍छा रखने वाली युवती ने बच्चों के भविष्‍य के लिए पेड़ के नीचे सजा दी क्‍लास
पेड़ के नीचे बच्‍चों को रोज ज्‍योति निश्‍शुल्‍क पढ़ाती हैं।

बरेली, अखिल सक्सेना। वह पीसीएस अधिकारी बनने की तमन्ना रखती हैं, मगर रुपयों की मजबूरी ने रास्ते में कई कांटे दिए। इतने ज्यादा कि स्नातक की पढ़ाई के लिए दूसरों से मदद लेनी पड़ गई। यह दुश्वारी उनके लिए संकल्प बन गई। कोई गरीब शिक्षा से दूर न रहे, इसके लिए उन्होंने गांव में पेड़ के नीचे निश्शुल्क कक्षा लगानी शुरू कर दी। इस वक्त करीब 90 बच्चे उनसे रोजाना पढऩे आते हैं। दो साल हो गए। करेली गांव में पेड़ के नीचे रोजाना ज्योति बच्चों मेें शिक्षा का प्रकाश फैला रहीं।

loksabha election banner

ज्योति इसी गांव की रहने वाली हैं। पिता राम पाल सिंह चौहान सिंचाई विभाग में ऑपरेटर थे। अब रिटायार हो चुके हैं। कम वेतन में आठ बच्चों की परवरिश तो की, मगर आरंभिक पढ़ाई के बाद परेशानियां आने लगीं। सबसे छोटी बेटी ज्योति ने वर्ष 2018 में इंटर की परीक्षा पास की। स्नातक करने के लिए साहू रामस्वरूप महिला डिग्री कॉलेज में प्रवेश लेना चाहती थीं, मगर फीस का इंतजाम नहीं कर सकीं। निराशा में रास्ता तलाशने के लिए एक निजी स्कूल में 2500 रुपये प्रति माह के वेतन पर पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ ट्यूशन भी तय कर लीं। इस बीच रक्षपाल बहादुर इंस्टीट्यूट की एक परिचित शिक्षिका को उनके हालात के बारे में पता चला तो मदद की। कहा कि फीस मैं जमा करुंगी, तुम प्रवेश लो। ज्योति ने बीएससी में प्रवेश तो ले लिया, मगर तय किया कि रुपयों के कारण बच्चों की पढ़ाई में बाधा नहीं आने देंगी।

ट्यूशन छोड़कर बच्चों को फ्री में पढ़ाने लगीं
ज्योति बताती हैं कि मेरा प्रवेश हुआ, उसी साल मैंने तय कर लिया कि गांव के गरीब बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा अब मेरा है। आसपास के बच्चों को एकत्र कर भीमसेन मंदिर परिसर में पेड़ के नीचे कक्षा लगाने लगी। अब कक्षा एक से आठ तक के 90 बच्चे हैं। अधिकतर मजदूर परिवारों के हैं। सरकारी स्कूल है मगर देखरेख न होने से बच्चे नियमित नहीं जाते। पढ़ाई पर ध्यान नहीं होता। पारिवारिक परिवेश भी ऐसा नहीं है कि अभिभावक इस बाबत चिंता करें। मुझे लगा कि ये बच्चे यदि अभी शिक्षा से दूर हुए तो आगे उनका इस धारा में रह पाना मुश्किल होगा। निजी स्कूल में अभिभावक इनका प्रवेश नहीं करा सकते, इसलिए मैंने जिम्मा लिया है। पेड़ के नीचे चल रही इस पाठशाला में ब्लैक बोर्ड, दरी, कॉपी-पेन आदि का इंतजाम ज्योति ने खुद किया है। वह बताती हैं कि छोटी क्लास के बच्चों की पढ़ाई दोपहर दो बजे से, बड़ी क्लास की पढ़ाई चार बजे से छह बजे तक होती है। सर्दियों में समय बदल जाता है।  

बनना है अधिकारी
लॉकडाउन में कक्षाएं बंद रहीं, मगर अनलॉक में उन्होंने दोबारा पढ़ाना शुरू कर दिया। अभी उनके कॉलेज में कक्षाएं नहीं लग रहीं, इसलिए ज्यादा समय देती हैं। बोलीं, सामान्य दिनों में कॉलेज से लौटकर इन बच्चों को पढ़ाने में लग जाती हूं। रात में अपनी पढ़ाई करती हूं। पीसीएस अधिकारी बनना है, मैं तैयारी करती रहूंगी। कुछ शिक्षक मदद कर रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.