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Namami Gange News : नमामि गंगे से शिक्षक ने दिखाई तरक्की की राह

Namami Gange News नमामि गंगे नाम से ब्रांड बनाकर बाजार में उतारे उत्पाद लगभग एक हजार किसान जुड़े पूरे साल खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 12 हजार रुपये अनुदान दिलाया। लेकिन किसान स्वयं फसल नहीं बेच सकते थे। क्योंकि मंडी में जैविक उपज का प्रमाण देना मुश्किल था।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 05:19 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 05:19 PM (IST)
Namami Gange News : नमामि गंगे से शिक्षक ने दिखाई तरक्की की राह
एफपीओ बनाकर जोड़े अपने साथ किसान, प्रशिक्षण देकर जैविक विधि से कराई खेती।

शाहजहांपुर [अंबुज मिश्र]। Namami Gange News : पहाड़ का सीना चीरकर जब रास्ता बनाया जा सकतहै। तो गंगा नदी भी स्वच्छ हो सकती है। इसी सोच के साथ शाहजहांपुर के छोटी सब्जी मंडी बहादुरगंज मुहल्ला निवासी शिक्षक राकेश पांडेय ने चार साल पहले 2016 में गंगा की कटरी का रुख किया। शुरुआत की पैतृक गांव कलान के लालपुर बढ़ेरा में लोगों को जागरूक करने से। बिना सरकारी मदद अपनी सरस्वती एजुकेशन वेलफेयर सोसायटी व गंगा समग्र की ओर से प्रशिक्षण दिया। समझाया कि गंगा के प्रदूषण के लिए रसायनयुक्त खेती भी बड़ा कारण है। जलस्तर बढ़ने पर खेतों की मिट्टी के साथ रसायन भी उसमें जाते हैं। जैविक खेती से गंगा की धारा निर्मल होगी। किसानों की आय भी बढ़ेगी। लेकिन लोगों ने बात अनसुनी कर दी। कम उत्पादन, नुकसान की भरपाई व उत्पाद बेचने जैसे सवाल थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश विविध कृषि सहायता परियोजना (यूपीडास्प) के तहत पूरे साल जैविक विधि से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 12 हजार रुपये अनुदान दिलाया। लेकिन किसान स्वयं फसल नहीं बेच सकते थे। क्योंकि मंडी में जैविक उपज का प्रमाण देना मुश्किल था। इसके लिए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के किसानों की फसल का आर्गेनिक में सीमफैड एजेंसी से प्रमाणन करायाा।

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ऐसे बना एफपीओ

कोरोना संक्रमण शुरू होने पर स्कूल बंद हुआ तो गंगा भूमि फार्मर प्रोड्यूसर नाम से एफपीओ बनाया। नमामि गंगे में चयनित पांच ग्राम पंचायतों के 12 गांवों के 452 किसानों को 300 हेक्टेयर में जैविक विधि से फसल तैयार कराई। नमामि गंगे के नाम से यूपी में पहला ब्रांड तैयार कर किसानों से सामान्य फसलों की तुलना में पांच रुपये ज्यादा पर उपज खरीदी। बाजार में इस ब्रांड का चावल, गुड़, शकरकंद, ज्वार, मक्का, आटा आदि उपलब्ध हैं। इस बार गेहूं के साथ काला गेहूं पर भी काम शुरू किया है। उनके एफपीओ से वर्तमान में शाहजहांपुर के अलावा हरदोई, फर्रुखाबाद, बदायूं के करीब एक हजार किसान जुड़ चुके हैं।

इसलिए नमामि गंगे दिया नाम

राकेश बताते हैं सरकार की इस नाम से सरकार की योजना चल रही थी। यह नाम देने से ज्यादा प्रचार प्रसार की आवश्यकता नहीं पड़ी। विभिन्न शहरों में लगने वाले किसान मेलों के जरिए ग्राहक मिले हैं। उन्होंने कैटलॉग भी तैयार कराए हैंं। मेरठ में शकरकंद की खूब मांग रही। लखनऊ में लगे यूपी महोत्सव में भी खूब बिक्री हुई। प्रबुद्ध वर्ग, कर्मचारी व संपन्न लोगों तक किसानों की उपज पहुंचा रहे हैं। 100 से अधिक स्थायी ग्राहक बन चुके हैं। अगर सामान्य चावल 25 रुपये में मिलता है तो वह किसान से जैविक विधि से तैयार चावल 30 में खरीदते हैं। 32 रुपये में खुला चावल बेचते हैं। पैकिंग में यह 42 रुपये में मिलता है क्योंकि पांच से सात रुपये इस पर खर्च आता है।

घर से की शुरुआत

अपना स्कूल संचालित करने वाले राकेश राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गंगा समग्र के प्रांतीय कोषाध्यक्ष व जिला संयोजक भी हैं। 2019 में पौन बीघा खेत में बिना खाद जैविक विधि से गेहूं तैयार किया। लोगों ने मजाक बनाया। कहा बिना यूरिया कैसे फसल होगी। करीब एक क्विंटल गेहूं मिला। उसका आटा तैयार कराया। गुणवत्ता अच्छी थी। एक-एक किलो आटा बांटकर मोहनपुर, हेतमपुर आदि गांवों के किसानों को जोड़ा। 

मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित 

राकेश को सात अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद के परेड ग्राउंड में हुए गंगा हरितिमा अभियान में गंगा सेवक के रूप में सम्मानित किया था। जैविक खेती व गंगा स्वच्छता के लिए डीएम इंद्र विक्रम सिंह व तत्कालीन डीएम अमृत त्रिपाठी भी सम्मानित किए जा चुके हैं।

इस तरह होता है लाभ

राकेश की मानेंं तो जैविक विधि से सही से खेती करने पर यूरिया के मुकाबले 15 से 20 फीसद उत्पादन कम मिलता है, लेकिन लागत भी कम आती है। 1868 सरकारी मूल्य है, लेकिन तमाम किसान 16 से 1700 ही पाते हैंं। इसलिए वह धान के बजाय किसान से चावल लेते हैं। एक क्विंटल धान में 60 किलो चावल मिलता है, जिसे वह 30 से 32 रुपये में खरीदते हैं। जिससे किसान को दो से ढाई सौ रुपये का सीधा लाभ होता है। खाद नहीं खरीदनी होती है। सरकार दो हजार रुपये पिट बनाने के लिए देती है। जिसमें दो किलो केचुए व गोबर डालने से 45 दिन में एक एकड़ खेत के लिए खाद मिलती है। जीवामृत भी तैयार कराया जाता है।


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