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Tantra Ke Gan : ऐसे डॉक्टर, जिन्होंने कोरोना मरीजों को नाचना सिखा दिया

Tantra Ke Gan एंबुलेंस से उतरते लोगों के चेहरों पर खौफ। एकांत कमरे का बिस्तर डराता था। दीवारों पर भविष्य की खतरनाक आहट सुनाई देती थी। इस बीच रोजाना हो रही मौतों की सूचनाएं दिल बैठाती जातीं। वो दहशत दवा से भरोसा उठा रही थी।

By Ravi MishraEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 11:52 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 11:52 AM (IST)
Tantra Ke Gan : ऐसे डॉक्टर, जिन्होंने कोरोना मरीजों को नाचना सिखा दिया
Tantra Ke Gan : ऐसे डॉक्टर, जिन्होंने कोरोना मरीजों को नाचना सिखा दिया

बरेली, अंकित गुप्ता। Tantra Ke Gan : एंबुलेंस से उतरते लोगों के चेहरों पर खौफ। एकांत कमरे का बिस्तर डराता था। दीवारों पर भविष्य की खतरनाक आहट सुनाई देती थी। इस बीच रोजाना हो रही मौतों की सूचनाएं दिल बैठाती जातीं। वो दहशत दवा से भरोसा उठा रही थी। नतीजा... कोई भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर रोता तो कोई कोने में दीवार की ओर मुंह देकर चीखता था।

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जुलाई में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण के बीच ऐसा ही माहौल था। 33 मौतें हो चुकी थीं, मरीजों की संख्या पांच सौ से दो हजार हो गई थी। कोविड सेंटर बनाए गए रेलवे अस्पताल का यह दृश्य वहां के प्रभारी डाक्टर संचित को रोज झकझोरता था। हताशा में डूबे संक्रमितों को बाहर निकालने के लिए उन्होंने तय किया कि दिमाग में खौफ नहीं, आत्मविश्वास का ठिकाना बनाएंगे। उसी महीने में एक मरीज का जन्मदिन होने की जानकारी मिली तो घर में बना केक लिया और पीपीई किट पहनकर वार्ड में पहुंच गए। स्टाफ को साथ ले लिया। साउंड सिस्टम मंगवा। बोले- केक काटो और बीमारी को दफन कर जन्मदिन का जश्न मनाओ।

डाक्टर संचित गानों पर नाचे, कुछ अन्य मरीज आगे बढ़े और माहौल बदलता गया। इसके बाद साउंड सिस्टम स्थाई तौर पर अस्पताल में लगवा दिया गया। सुबह-शाम भजन सुनाए जाते। मरीज एक दूसरे से जन्मदिन की तारीख पूछते और डा. संचित को बताते। तीन माह में पांच लोगों का जन्मदिन इसी तरह मनाया गया। डा. संचित के कहने पर स्टाफ ने क्रिकेट खेलने का सामान मंगवा लिया। वे मरीजों के साथ सुबह-शाम इस तरह वक्त बिताने लगे। जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर माह ऐसे ही बीत गया। यह सुखद संयोग था कि इस अस्पताल में किसी की मौत नहीं हुई।

दवा नहीं थी, यही सही तरीका था

डा. संचित बताते हैं कि शुरूआत में संक्रमितों का डर देखकर उन्हेंं भी घबराहट हुई। दवाई थी नहीं। प्रतिरोधक क्षमता के जरिये ही वायरस से पार पा सकते थे। दूसरी ओर हालात ऐसे थे कि संक्रमित मानसिक रूप से बेहद नाजुक स्थिति में पहुंच चुके थे। ऐसे में यही एक रास्ता बचा था, जिससे मैं उन्हें मानसिक मजबूती दे सकता था। भीषण गर्मी में पीपीई किट पहनकर क्रिकेट खेलना मुश्किल भरा था, मगर उन मरीजों के चेहरों पर हंसी देखकर अपनी परेशानी भूल जाता था। उनके साथ अक्सर शाम को नाच-गाना करना ही दवा थी। संतुष्ट हूं कि बड़े मुश्किल दौर में उनके लिए कुछ कर पाया।


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