दोस्तों की ‘पॉकेट’ से निकली मदद की ‘मनी’ Bareilly News
एक वाकया सुनने से पहले तक ये दोस्त अपनी पॉकेटमनी का यही उपयोग करते थे। अचानक एक ऐसी खबर सुनी जिसके बाद इन दोस्तों ने अपने सारे खर्चे बंद कर दिए।
बरेली [अतीक खान] : आठ दोस्त। ठीक वैसे ही, जैसे यूनिवर्सिटी कैंपस में अन्य छात्र होते हैं...पॉकेटमनी से रोजमर्रा के खर्चे करना, उनमें से कुछ रुपये बचाना और फिर शौक पूरे करना। किसी को कपड़े खरीदने का तो किसी को चश्मा। एक वाकया सुनने से पहले तक ये दोस्त अपनी पॉकेटमनी का यही उपयोग करते थे। अचानक एक ऐसी खबर सुनी, जिसके बाद इन दोस्तों ने अपने सारे खर्चे बंद कर दिए। खुद अपनी और कैंपस के कई अन्य छात्र, छात्रओं की पॉकेटमनी इकट्ठी कर साठ हजार रुपये जमा लिए। जानते हैं क्यों...एक छात्र के घायल पिता का इलाज कराने के लिए।
ये आठों छात्र न तो उस छात्र को जानते थे और न उसके पिता को। रुहेलखंड विवि के मैकेनिकल इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में पढ़ने वाले दीपक शंकर को कुछ दिन पहले प्रोफेसरों ने बताया था कि फार्मेसी में अंतिम वर्ष की छात्र रुचि के पिता घायल हैं। इलाज के लिए मदद की दरकार है...मगर कौन करे। दीपक ने हामी भरी। अपने विभाग के दोस्तों के पास गए। कहा कि रुचि को भले वे लोग न जानते हों मगर मदद करने के लिए आगे आएं।
कैंपस में निकल पड़ी मददगारों की टोली
दीपक की पहल पर आठ दोस्तों को टोली बनी। वे रोजाना कैंपस के सभी विभागों में जाते। वजह बताते और मदद मांगते। किसी के पास पचास, किसी के पास सौ तो किसी के पास पांच सौ...जिसके पॉकेट से जितने रुपये मिलते वे इकट्ठे करते गए। सप्ताह भर की मेहनत के बाद उन्होंने साठ हजार रुपये इकट्ठे कर लिए।
रुपयों की फिक्र मत करिए, आप इलाज कराइए
बुधवार को दीपक व अन्य छात्र, छात्रएं साठ हजार रुपये लेकर रुचि के घर मीरगंज पहुंचे। वहां रुचि के पिता के हालचाल लिए। उन्होंने बताया कि अगस्त में कांवड़ यात्र के दौरान हादसा हुआ था। जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी, उन्हें गंभीर चोटें आईं। बायां पैर टूट गया।
उनकी परेशानी सुनने के बाद दीपक व अन्य ने कहा कि वे इलाज कराएं। मदद मिलती रहेगी। दीपक शंकर दुबे ने इसी साल मई में पीस इन वल्र्ड-एनजीओ भी बनाया है। दीपक के मुताबिक, पढ़ाई पूरी करके वह नौकरी के साथ सामाजिक दायित्व भी निभाना चाहे हैं।
कोचिंग पढ़ाकर चलाती है पढ़ाई का खर्च
रुचि के पिता मजदूरी करके परिवार का खर्च चलाते थे जोकि एक महीने से बिस्तर पर हैं। पिता पर पढ़ाई के खर्च का बोझ न पड़े इसलिए वह कोचिंग पढ़ाती हैं। दो भाईं हैं जोकि छोटे हैं।