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बेटे की मौत के बाद पूरा परिवार कोरोना संक्रमित, श्मशान घाट से अस्थियां लाने वाला तक कोई नहीं, जानें घाट से अस्थियां चुनने में किसने की मदद

कोरोना संक्रमण का यह दौर इतना कठिन होगा किसी ने नहीं सोचा था। श्मशान भूमि पर अंतिम संस्कार के लिए लाइनें लगी हैं। सामान्य दिनों की तुलना में श्मशान पहुंचने वाले शवों का आंकड़ा दोगुना हो गया है।अपनों का अंतिम संस्कार के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 01:14 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 01:14 PM (IST)
राजेंद्रनगर निवासी शिक्षक के भाई की तीन दिन पहले हो गई थी मौत।

बरेली, जेएनएन। कोरोना संक्रमण का यह दौर इतना कठिन होगा किसी ने नहीं सोचा था। श्मशान भूमि पर अंतिम संस्कार के लिए लाइनें लगी हैं। सामान्य दिनों की तुलना में श्मशान भूमि पहुंचने वाले शवों का आंकड़ा दोगुना हो गया है। अपनों का अंतिम संस्कार के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। इस बीच रविवार सुबह करीब 11 बजे श्मशान का दो जन अपने एक मित्र के भाई के फूल (अस्थियां) लेने पहुंचे, तो उन्होंने बताया कि पूरा परिवार संक्रमित है। इसलिए वह फूल लेने आए हैं। इस कठिन समय में किसी अन्य के फूल उठाते इन दोनों जन को देख लगा कि समाज में मानवता आज भी जीवित है।

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शहर के संजय नगर स्थित श्मशान भूमि पर दोपहर ढाई बजे तक कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर जान गवाने वालों के आठ शव पहुंच चुके थे। यहां बनाए गए चिता स्थल खाली नहीं थे। इसलिए श्मशान भूमि कमेटी की ओर से वहीं जमीन पर भी कुछ स्थान को अंत्येष्टि के लिए कर दिया था। वहां भी शव जल रहे थे। श्मशान भूमि के चिता स्थलों पर शुक्रवार और शनिवार को हुए अंतिम संस्कार के फूल भी पड़े हुए थे। जिन्हें कोई उठाने नहीं आया था। सुबह करीब 11 बजे शहर के प्रमुख समाजसेवियों में एक संजीव जिंदल अपने एक जानने वाले रविंद्र सिहं श्मशान पहुंचे। उन्होंने राजेंद्र नगर एक व्यक्ति का नाम पूछते हुए कहा कि उनका अंतिम संस्कार कहां हुआ था।

बताया कि उनके सभी स्वजन संक्रमित हैं, इसलिए फूल लेने वह लोग आए हैं। फूल उठाने के बाद वह उन्हें रामगंगा विर्सजन के लिए भी ले जाना चाहते थे। फोन कर स्वजनों से अनुमति मांगी तो उन्होंने फूल स्वयं विसर्जित करने केा कहा। इस पर संजीव और रविंद्र ने फूल श्मशान में ही एक सुरक्षित स्थान पर एक कट्टे में भरकर रख दिए। कट्टे पर शिक्षक का नाम लिख दिया। बताया कि कुछ दिन बाद परिवार के लोग आकर फूल ले जाएंगे।

बोले हम आगे भी तैयार

संजीव जिंदल को लोग साइकिल बाबा के नाम से भी जानते हैं। समाज के लिए उनकी ओर रोज नए नए काम किए जाते हैं। श्मशान भूमि पर मौजूद संजीव और उनके साथ रविंद्र सिंह ओबेरॉय ने कहा कि इस संकट के दौर में किसी को भी जरूरत पड़ें तो उन्हें याद कर सकते हैं। वह लोग हमेशा मदद के लिए तैयार हैं। बीते साल जब प्रवासी आ रहे थे उस दौरान संजीव जिंदल और उनकी टीम पूरे बीस दिन टोल पर डटी रही थी। वह वहां से गुजरने वाले हर प्रवासी को भोजन कराते और जो मदद हो सकती, उपलब्ध कराते थे।


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