50 में छोटी व 100 में बड़ी गाड़ी का 'सलाम'
स्मार्ट पुलिसिंग के लिए पुलिस विभाग भी अब तकनीक का सहारा ले रहा है।
जेएनएन, बरेली : स्मार्ट पुलिसिंग के लिए पुलिस विभाग भी अब तकनीक का सहारा ले रहा है। यूपी कॉप एप से एफआइआर दर्ज की जा रही है।
बावजूद इसके विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें इस कदर गहरी हो चुकी हैं कि उखड़ने का नाम नहीं ले रहीं। सरकार और शासन के वसूली रोकने के दावे खाकी की मनमानी के आगे बेदम साबित हो रहे हैं।
आलम ये है कि थाने में मोबाइल खोने की गुमशुदगी दर्ज कराने जाओ तो बगैर सुविधा शुल्क लिए मुंशी मुहर लगाने को भी तैयार नहीं होता।
चालान का जुर्माना भरो तो सौदेबाजी होती है। और तो और मुकदमों में फाइनल रिपोर्ट तक बगैर सुविधा शुल्क के नहीं लगाई जाती।
डग्गामारी करने वाले वाहन चालकों को 50 व 100 रुपये का 'सलाम' रोज करना ही है। केस की धाराएं कम करने से लेकर बढ़ाने तक, कचहरी में पेशी पर पान-बीड़ी मुहैया कराने से लेकर थाने में आरोपित के आराम फरमाने तक, हर कदम पर पुलिस पैसों के दम पर बिछी पड़ी है।
नतीजा ये हो रहा है कि अपराधी चैन की बंसी बजा रहे हैं और ईमानदार आदमी वर्दी देखकर खौफ खाता है।
जेब गरम रहे, डग्गामार वाहनों से हादसे होते रहें तो हों डग्गामार वाहनों के चलते आए दिन होने वाले हादसे भले ही हमारे-आपके लिए चिंता की वजह हों, पर पुलिस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हादसा होने पर दो-चार दिन सख्ती का दिखावा होता है, फिर हालात जस के तस।
चौपुला से सीबीगंज-फतेहगंज पश्चिमी तक जमकर डग्गामारी होती है। इसके अलावा बदायूं तक बेधड़क डग्गामार वाहन चलते हैं। अब तो डग्गामारी में प्राइवेट बसें भी शामिल हो गई हैं।
ये सारा ट्रैफिक चौपुला चौराहे से होकर गुजरता है। यहां ट्रैफिक पुलिस मौजूद तो रहती है लेकिन डग्गामार वाहनों की धर-पकड़ के लिए नहीं बल्कि उनका 'सलाम' लेने के लिए। सख्ती उनके लिए है जो पुलिस को 'सलाम' नहीं करते।
चौपुला चौराहे से छोटे डग्गामार वाहन गुजारने के लिए 50 रुपये प्रति चक्कर देने पड़ते हैं और बस वालों को 100 रुपये प्रति चक्कर। अगर सलाम नहीं हुआ तो फिर गाड़ी चौपुला पुल से नहीं गुजर सकती। सीधे सीज।
सौ रुपये थमाओ तो दर्ज करें गुमशुदगी
मोबाइल चोरी हो या खो जाए तो उसी नंबर पर दूसरा सिम तभी जारी होता है जब थाने में मोबाइल व सिम खोने की गुमशुदगी दर्ज हो। लिहाजा थाने की मुहर जरूरी है।
ऐसे में पीड़ित व्यक्ति थाने जाता है। थाने में बैठा मुंशी पीड़ित के कपड़ों और उसके हाव-भाव के हिसाब से मुहर लगाने के रेट तय करता है।
अगर गुमशुदगी दर्ज कराने को आया व्यक्ति कार से उतरता है तो ढाई-तीन सौ रुपये तक ले लिए जाते हैं। साधारण सा दिखने वाला युवक है तो मुहर की कीमत 100 रुपये।
जुर्माना वसूलने में भी हो रहा गोलमाल
शहर में गाड़ियों के चालान किए जा रहे हैं। हेलमेट, डीएल या अन्य कागज न होने पर पुलिस चालान काटने में देरी नहीं लगाती।
इसके बाद शुरू होता है जुर्माना लगाने का काम। ट्रैफिक पुलिस के ऑफिस, संबंधित सीओ के सामने जुर्माना भरा जाता है।
लेकिन जुर्माना भरने में कोई नियम नहीं है। जुर्माना तो ले लिया जाता है लेकिन रसीद नहीं दी जाती।
तमाम बार शिकायतें भी हुईं लेकिन किसी भी अधिकारी ने इसे तवज्जो नहीं दी। जुर्माने की रसीद काटने का काम सिपाही व मुंशी के हाथ में रहता है।
लिहाजा होता वही है जो वे चाहते हैं। अधिकारी लाख कहते रहें लेकिन चलती सिपाही और मुंशी की ही है।