नारी सशक्तीकरण : मुश्किल हालात में जीने की कला सिखा रही रामहरि
छह साल पहले की बात है। छोटे लाल मजदूरी कर घर लौटे। अचानक तबीयत बिगड़ी और हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। कुछ ही देर में सब कुछ बिखर गया।
अशोक आर्य, बरेली : छह साल पहले की बात है। छोटे लाल मजदूरी कर घर लौटे। अचानक तबीयत बिगड़ी और हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। कुछ ही देर में सब कुछ बिखर गया। पत्नी रामहरि बदहवास थीं। जिन्हें देखकर पड़ोसियों को फिक्र थी...चार मासूम बच्चों को भला अब वह अकेले कैसे पालेंगी। उन शब्दों ने और उस हालात ने रामहरि को वक्त से लडऩा सिखा दिया। वे मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकलीं। रसोई में सीखे गए हुनर को उन्होंने जिंदगी बसर का जरिया बना लिया। रोजाना करीब 12 सौ रुपये के गोलगप्पे बनाकर बेचती हैं। उसी आय से एक बेटी की शादी कर दी। बाकी तीनों बच्चे पढ़ाई कर रहे।
हालात ऐसे कि कई बार भूखे पेट सोईं
कालीबाड़ी में विष्णु बाल सदन के पास रहने वाली रामहरि कहती हैं कि पति की कोई जमा पूंजी नहीं थी। रोज कमाना और रोज खाना, यह होता था। उनकी मौत के बाद तीन महीने ऐसे कठिन गुजरे कि कई रातों को भूखे पेट सोए। तीन बेटियों पूनम, पूजा, गुनगुन और बेटे अनुज के लिए रिश्तेदार खाना दे जाते थे। लगा कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा।
चंद रुपये में शुरू किए गोलगप्पे बनाना
रामहरि बताती हैं, गोलगप्पे बनाना आता था। मैंने इसे ही अपनी आय का जरिया बनाने की ठान ली। पति की मौत के चार महीने बाद एक रिश्तेदार से दो सौ रुपये उधार लेकर यह काम शुरू किया था। चूंकि, मुहल्ले में इसका बाजार भी है, इसलिए तमाम लोग खरीदने आते थे। मैं दो-तीन सौ गोलगप्पे बनाकर घर के बाहर तख्त पर रखकर बैठ जाती थी। बिक्री बढऩे लगी तो आटे व सूजी दोनों के गोलगप्पों की संख्या बढ़ाना शुरू कर दी। बच्चे भी इसमें सहयोग करते। धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। बड़ी कढ़ाही, भट्टी व कुछ और जरूरी सामान खरीदकर तीन साल पहले छोटा सा कारखाना बना लिया।
अब रोजाना 12-14 सौ रुपये की बिक्री
कहती हैं बहुत संघर्ष के बाद अब काम ढर्रे पर है। 40 रुपये सैकड़ा बिक्री वाले गोलगप्पे रोजाना करीब तीन हजार बिक जाते हैं। कई ठेले वाले ग्राहक तय हो गए हैं, जोकि रोजाना यहां से माल लेने आते हैं। इससे रोज 12-14 सौ रुपये की बिक्री हो रही। आटा, सूजी, रिफाइंड, गैस आदि में करीब तीन सौ रुपये खर्च भी हो जाते हैं।
बेटी की शादी की, बेटे को पढ़ा रही
जज्बे के सहारे हालात से पार पाने वाली रामहरि ने चार साल पहले अपनी बड़ी बेटी पूनम की शादी कर दी। बेटा अनुज सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ता है जोकि अब 11 साल का है। बाकी दोनों बेटियां मुहल्ले के एक स्कूल में पढऩे जाती हैं।