नवाचार से स्वावलंबन और सुरक्षा को दे रहे सशक्त आधार, जैविक थाली व पुस्तकालय संग रोजगार
भारत युवाओं का देश है और स्वतंत्रता के इस अमृत काल में यही युवा शक्ति देश को स्वावलंबन और सुरक्षा का भाव प्रदान करने का आधार बन रही है। बदलते समय के साथ युवाओं का सोच और प्राथमिकताएं बदली हैं। वह आत्मनिर्भर बनकर रोजगार सृजन भी करना चाहता है।
भारत युवाओं का देश है और स्वतंत्रता के इस अमृत काल में यही युवा शक्ति देश को स्वावलंबन और सुरक्षा का भाव प्रदान करने का आधार बन रही है। बदलते समय के साथ युवाओं का सोच और प्राथमिकताएं बदली हैं। वह आत्मनिर्भर बनकर रोजगार सृजन भी करना चाहता है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी बीते रविवार को मन की बात में युवाओं के नवोन्मेष और नवाचारों का जिक्र करते हुए स्टार्टअप के क्षेत्र में बढ़ते कदमों की सराहना की थी। इसी क्रम में आज पढ़िए युवा शक्ति के अपने 'मन की बात' सुनकर किए गए नवाचारों की:
बरेली, नीलेश प्रताप सिंह: ग्राम्य जीवन से लोगों को परिचित कराने के साथ ही ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बरेली के युवा ने एक अनूठा प्रयास किया है। पेशे से हिंदी के शिक्षक सुनील मानव ने स्वास्थ्यवर्धक जैविक थाली और पुस्तकों का मिश्रण एक ऐसे कैफे में प्रस्तुत किया है जहां ग्रामीण जीवन की झलक तो मिलती ही है, किसानों को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से दूर होकर जैविक खेती की प्रेरणा भी मिल रही है। यहां हाथ वाली चकिया (चक्की) से बने आटे की रोटी यादों से निकलकर थाली में सज गई है। इस नवाचार से वह धरा भी मुस्कुरा रही, जिसे रासायनिक उर्वरकों से मुक्ति मिल रही।
बांदा, चित्रकूट तक पहुंची पहल
जैविक कृषि और ग्राम्य जीवन को बढ़ावा देने वाला यह प्रयोग करने वाले सुनील मानव बताते हैं कि करीब छह वर्ष पहले गृह जनपद शाहजहांपुर में अपने लिए जैविक कृषि शुरू कराई थी। वहीं से विचार आया और प्रशिक्षक के सहारे अन्य ग्रामीणों को इस खेती के लाभ बताने लगा। स्कूल में अध्यापन कार्य से मिलीं छुट्टियां इसी अभियान में बीत जाती थीं, लेकिन जब किसानों ने रुचि दिखानी शुरू की तो कुछ कंपनियों के माध्यम से जैविक उत्पादों की खरीद करनी शुरूकर दी। इस कार्य में उनके साथ पंकज मिश्र भी शामिल हुए और धीरे-धीरे बांदा, चित्रकूट, पीलीभीत के परिचित किसान भी जैविक खेती करने लगे। इस प्रयास से अब लगभग पांच सौ किसान अपने स्तर से जैविक खेती कर उपज की बिक्री कर रहे हैं।
मांग देख शहर की ओर बढ़े
जैविक उपज की बढ़ती मांग देख कर सुनील ने शहर का रुख किया। इसी वर्ष अप्रैल में बरेली में पीलीभीत रोड पर ग्रामांचल कैफे खोला। इसकी दीवारों पर ग्रामीण कलाकृतियां गांव में बैठे होने का आभास कराती हैं। खेतों में पैदा होने वाली जैविक सब्जियां और गांव की महिलाओं के हाथ से बना आटा यहां की थाली का आकर्षण बना गया। कैफे की देखरेख करने वाले आमोद शर्मा बताते है कि थाली में सभी व्यंजन जैविक होते हैं।
महिलाएं की 50 प्रतिशत भागीदारी
बरेली के अलावा कई अन्य स्थानों के किसान उनके साथ इस 'जैविक' अभियान से जुड़ चुके हैं। वह शाहजहांपुर व पीलीभीत से गेहूं, चावल मंगवाते हैं। चित्रकूट से दलहन, केरल से मसाले और असम से चायपत्ती आती है। कच्चा माल खरीदने के बाद शाहजहांपुर में बनाए गए 12 समूह की महिलाओं को दिए जाते हैं। ये महिलाएं आटा पीसती हैं, दाल तैयार करती हैं। यहीं अचार, पापड़, चिप्स भी तैयार किए जाते हैं। उत्पाद तैयार कर पैकिंग तक की प्रक्रिया यही महिलाएं करती हैं, इसके बदले इन्हें लाभ में 50 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। इससे गांव में रोजगार तैयार हो रहा है।
पुस्तकों से लगाव, लोगों तक पहुंचा रहे ज्ञान
करीब 10 वर्ष की आयु से पाकेट मनी को पुस्तकों पर खर्च करने वाले सुनील के पास अब लगभग सात हजार पुस्तकों का संग्रह हो चुका है। उन्होंने इनमें से सैकड़ों पुस्तकों से कैफे में ही लाइब्रेरी बना दी है। यहां आकर कोई भी निश्शुल्क पुस्तकें पढ़ सकता है। भीड़ अधिक होने पर ओपन एरिया भी बनाया गया है, वहां भी बैठकर पुस्तक पढ़ सकते हैं। वह खुद भी चार पुस्तकें लिख चुके हैं।