महंगी दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को विदेश घुमा रहीं है फर्मा कंपनियां
फार्मा कंपनियां दवाओं की बिक्री के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। बस डाक्टर खुश हो जाएं और उनकी महंगी दवाओं को बेचने लगें। फिर चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी आफर देना पड़े या फिर विदेश यात्रा ही करानी पड़े वह सब पूरा कर रहे हैं।
बरेली, जागरण संवाददाता: बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियां दवाओं की बिक्री के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। बस डाक्टर खुश हो जाएं और उनकी महंगी दवाओं को बेचने लगें। फिर चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी आफर देना पड़े या फिर विदेश यात्रा ही करानी पड़े, वह सब पूरा कर रहे हैं। अगर मामला कैश तक पहुंच जाए तो भी कंपनियां पीछे नहीं हट रही। आए दिन महंगे होटलों में कांफ्रेंस के नाम पर लाखों रुपये भी खर्च कर रहे हैं। इसका असर जन औषधि केंद्रों पर पड़ रहा है, जिस कारण आम लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
शहर के बड़े अस्पताल के डाक्टर इसलिए चर्चा में है क्योंकि वह किसी भी फार्मा कंपनी के ब्रांड की दवा अपने पर्चे पर लिखने से पहले ही टेबल पर पूरा हिसाब रखवा लेते हैं। इसके बाद ही मरीजों को उस ब्रांड की दवा लिखते है। जिस कंपनी की दवा शुरू होती है, उसमें उस कंपनी का भी लाखों का फायदा होता है। इसका पूरा असर सिर्फ ग्राहकों की जेब पर पड़ता है। क्योंकि डाक्टर पर्चे पर सिर्फ कंपनी का नाम लिखता है उसका साल्ट नहीं। जिससे वो दवा बिना साल्ट पहचाने जन औषधि केंद्रों पर नहीं मिलती।
इतना ही नहीं, बीते दिनों शहर के एक जाने माने डाक्टर विदेश में फैमिली ट्रिप पर गए थे। उनका पूरा खर्चा एक फार्मा कंपनी ने उठाया था। इसके बदले में डाक्टर ने सिर्फ उस फार्मा कंपनी के ब्रांड की दवाएं अपने मरीजों को लिखना शुरू कर दिया। जिसकी कीमत जैनेरिक दवाओं की तुलना में कई गुना ज्यादा थी।
डाक्टर के यहां ओपीडी भीड़ के आधार पर किया जाता है आफर
फार्मा कंपनी वाले हर डाक्टर को उसके यहां ओपीडी में होने वाली भीड़ के आधार पर आफर देते है। यदि किसी के यहां हर दिन करीब 50 मरीजों की भीड़ है तो उसे जो आफर मिलेगा उससे दोगुना 70 से 80 मरीजों की ओपीडी करने वालों को मिलेगा। इसी के साथ जो डाक्टर फार्मा कंपनी वालों की कम दवाइयां लिख सकेगा उसके लिए इंडियन टूर या हजारों में कैश मिलता है, जो ज्यादा लिख सकता है उसके लिए आस-पास के देशों का टूर या लाखों में कैश मिलता है और जो सबसे ज्यादा दवाएं लिख सकता है उसके लिए लाखों केश या फिर यूरोप के किसी भी देश में घूमने का आफर तक दिया जाता है।
दवाओं में कितना अंतर
एक मरीज को ब्लड प्रेशर की समस्या था। डाक्टर ने पर्चे पर लिख दिया टेलमीकाइंड एच। मरीज के जब वो दवा ली तो उसे 75 रुपये की 10 गालियां मिली। यानी साढ़े सात रुपये की एक गोली। जब इन्हीं दवाओं के पत्ते लेकर प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर ढूंढा तो साल्ट के आधार पर वो गोलियां 15 रुपये की 10 मिली। वहीं, एक दूसरे डाक्टर जो कि फिजिशियन है, उनके पर्चे पर रेबियम-20 और नारफ्लोक्स- टी2 लिखा हुआ था। मरीज को दोनों दवाओं की दस-दस गोलियां करीब 183 रुपए की पड़ी। इसमें रेबियम की एक गोली की कीमत करीब साढ़े आठ रुपये और नारफ्लोक्स की एक गोली की कीमत करीब 10 रुपये थी। वहीं, इन दवाइयों के पत्ते जब जन औषधि केंद्रों पर दिखाए गए तो यह दवाएं केवल केवल 48 रुपये की मिल गई। इससे स्पष्ट था कि दवाओं में ग्राहकों को कितना लूटा जाता है।
ये बोले
कुछ ही डाक्टर है, जो अपने पर्चे पर साल्ट लिख रहे है, मगर अधिकांश डाक्टर नहीं लिखते, जो डाक्टर लिख रहे है वो भी तब लिखते है जब मरीज उनसे साल्ट लिखने को कहता है। या फिर कोई मरीज अपनी गरीबी का हवाला देता है। जिन पर्चों पर साल्ट आता वो दवाएं हम आसानी से दे देते है, बाकी नाम लिखे होने वाली दवाएं देने में कई समस्याएं आती हैं। -लालित्य, जन औषधि केंद्र संचालक, राजेंद्र नगर
जो लोग यह बोलते है कि जैनेरिक दवाओं की क्वालिटी अच्छी नहीं होती, उन्हें यह भी पता होना चाहिए, कि जहां बड़े-बड़े ब्रांड की दवाइयों की पैकिंग होती, वहीं पर इनकी भी होती है। बस फर्क होता है कि इस पर कंपनियां अपनी मनमर्जी रेट डलवा देती है। हां, यह बात भी सही है कि साल्ट नहीं होने से मरीजों को दवा नहीं मिल पा रही। -अमूल्य कुमार गुप्ता, जन औषधि केंद्र संचालक, ईसाइयों की पुलिया
पब्लिक बोल
मेरी तबीयत खराब हुई तो मैंने शहर के एक डाक्टर से दवा ली, उन्होंने जो दवा लिखी उसके रेट इतने ज्यादा थे, कि तीन-चार दिनों की दवा हजार रूपये से अधिक की मिली। मगर अब वही, दवा पत्ते दिखाकर जन औषधि केंद्र से लूंगी। -अंजू, सुभाष नगर।
अभी तक हम जो दवाएं लेते जाते थे, तो डाक्टर जो लिखते थे वही लेते थे, अब साल्ट के बारे में जानकारी हुई है तो डाक्टर से सीधा साल्ट लिखने के लिए ही बोलेंगे। जिससे हमें भी सस्ती दवाएं मिल सके। -विक्रांत सिंह, बरेली।