सिर्फ तीन हफ्ते के इलाज ने मासूम की बदल दी पहचान Bareilly News
धीरे-धीरे मासूम का स्वास्थ्य गिरता गया। शरीर में हड्डियां दिखाई देने लगी मांस सिकुड़ गया। सूरत में एकाएक बदलाव हो गया। बेटे की हालत गंभीर हुई तो परिजन उसे लेकर नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे।
बरेली [अशोक आर्य] : दो साल का योगेश। 22 दिन पहले उसकी शरीर पर सिर्फ सूखी खाल का एक कवच जैसा था। न हाथों में दम न पैरों में। वो अति कुपोषित था। परिवार वालों को किसी ने सलाह दी तो जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती करा दिया गया। वहां इलाज चला। जानलेवा खतरे की ओर तेजी से बढ़ते मासूम ने कुपोषण की जंजीर तोड़ी तो जिंदगी खिलखिला उठी। यह ऐसे तमाम परिवारों के लिए सबक भी है, जो अपने अतिकुपोषित बच्चों को सरकारी अस्पताल तक नहीं ले जाते हैैं। पहले पोषण में लापरवाही करते हैैं और फिर उन्हें उपचार दिलाने में।
भोजीपुरा के गांव मोहनपुर ठाकुरान निवासी मुकेश की पत्नी चंद्रवती ने करीब दो साल पहले बेटे योगेश को जन्म दिया। परिवार वाले योगेश के खानपान में ध्यान नहीं दे पाए। धीरे-धीरे मासूम का स्वास्थ्य गिरता गया। शरीर में हड्डियां दिखाई देने लगी, मांस सिकुड़ गया। सूरत में एकाएक बदलाव हो गया। बेटे की हालत गंभीर हुई तो परिजन उसे लेकर नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। तब वहां के डॉक्टरों ने बच्चे को अतिकुपोषित घोषित कर जिला अस्पताल में स्थित एनआरसी भेजा। नौ जुलाई को भर्ती होने के बाद एनआरसी में नियमित इलाज शुरू हुआ। 22 दिनों तक ठीक खान-पान और दवाएं दी गईं तो उसका वजन पांच किलो से बढ़कर साढ़े छह किलो हो गया। जिसके बाद उसे घर भेज दिया गया। अब 15 दिन बाद दोबारा बुलाया गया है।
ये दिया गया इलाज
अतिकुपोषित बच्चे को माइक्रो न्यूट्रिंट्स जैसे मल्टी विटामिन, फोलिक एसिड, जिंक आदि पहले ही दिन से दिया गया। कुछ एंटीबॉयोटिक इंजेक्शन भी दिए। तीन यूनिट खून चढ़ा। इसके साथ ही उसकी मां की काउंसिलिंग की गई, पोषक आहार दिया।
प्रदेश में नंबर एक पर एनआरसी
एनआरसी में बाल रोग विशेषज्ञ, डाइटीशियन, चार नर्स, केयरटेकर, रसोइया व अन्य स्टाफ तैनात है। यह केंद्र दस बेड का है। वर्ष 2018 में प्रदेश सरकार ने एनआरसी को प्रशंसा पत्र देकर नंबर एक बनाया था। यहां का मानीटङ्क्षरग स्कोर 98 फीसद, बेड ऑक्यूपेसी रेड 91 फीसद और देखभाल का आंकड़ा 70 फीसद रहा था।
बच्चे को डायरिया, खून की पेचिस, अत्याधिक अनीमिया और बुखार था। अगर एक हफ्ते और उसे अस्पताल नहीं आता तो ऐसी हालत जानलेवा साबित हो सकती थी। - डॉ. एसके सागर, केंद्र प्रभारी
एनआरसी में कुपोषण के शिकार बच्चों को बेहतर वातावरण के साथ उपचार दिया जाता है। जिस परिवार में भी अगर बच्चे कुपोषण का शिकार हैैं, वो तुरंत सरकारी अस्पताल में लेकर आए। परिवार के सहयोग से बच्चे कुपोषण की गिरफ्त से बाहर हो रहे हैैं। - डॉ. रोजी जैदी, डाइटीशियन
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