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Industries 2019 : पुराने उद्योगों ने तोड़ा दम, साल भर तरसते रहे नए उद्योग Bareilly News

औद्योगिक विकास से ही किसी भी जिले राज्य व देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। साल भर जिले के विकास को गति प्रदान करने के लिए कई बार बड़ी बातें हुई।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Tue, 31 Dec 2019 10:06 AM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 10:06 AM (IST)
Industries 2019 : पुराने उद्योगों ने तोड़ा दम, साल भर तरसते रहे नए उद्योग Bareilly News

जेएनएन, बरेली : औद्योगिक विकास से ही किसी भी जिले, राज्य व देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। साल भर जिले के विकास को गति प्रदान करने के लिए कई बार बड़ी बातें हुई। लखनऊ से करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट लगाने की घोषणा भी की गई, लेकिन साल भर में सिर्फ एक प्रोजेक्ट ही धरातल पर उतर पाया। नतीजतन न उत्पाद बढ़ा और न ही रोजगार के नए अवसर पैदा हो सके। साल भर जिले में लोग नए उद्यम के लिए तरसते रहे। अधिकारियों ने नए उद्योगों की स्थापना को ठोस कदम नहीं उठाए और न ही पुराने उद्योगों को जीवंत करने के प्रयास किए। पेश है साल भर जिले के उद्योगों पर विशेष रिपोर्ट..

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लगाए जाने थे तीन बड़े उद्यम, एक लगा

लखनऊ में 29 जुलाई को हुई ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में जिले के तीन बड़े प्रोजेक्ट का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिलान्यास किया। इसमें परसाखेड़ा स्थित बीएल एग्रो कंपनी का ऑटोमैटिक पैकेजिंग प्लांट, सीबीगंज में नोएडा की कंपनी सिक्का प्रोमोटर्स का 28.5 करोड़ का चार सितारा होटल और आंवला में नोएडा की कंपनी क्रीमी फूड्स का सौ करोड़ के निवेश से लगने वाला डेयरी मिल्क प्लांट शामिल था। अब तक सिर्फ बीएल एग्रो ने ही अपना प्रोजेक्ट शुरू किया।

इन्वेस्टर्स मीट में रखे गए थे 38 प्रोजेक्ट

प्रदेश सरकार की ओर से 21 व 22 फरवरी को लखनऊ में इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया था। इसमें देश भर के उद्यमियों-निवेशकों ने भाग लिया। उनमें से कई बड़े उद्यमियों ने उप्र. में उद्योग लगाने की हामी भरी थी। कार्यक्रम में जिले के कई उद्यमियों ने भी शिरकत की थी। जिले की ओर से 1800 करोड़ रुपये के 38 बड़े प्रोजेक्ट शामिल किए गए। इसमें कुछ उद्यमी बाहर के भी शामिल हैं।

परसाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र

यूपी स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन ने वर्ष 1960 में सीबीगंज में करीब 275 एकड़ क्षेत्र में परसाखेड़ा औद्योगिक एरिया की स्थापना की थी। वर्ष 2004 में इसे नगर निगम को हैंडओवर कर दिया गया। तब से इसके रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। पूरे क्षेत्र में सौ फीसद प्लांट उद्यमियों को आवंटित कर दिए गए हैं। करीब 60 फीसद इकाइयां ही वहां चल रही हैं।

उद्यमियों की समस्याएं

कुछ समय पहले तक औद्योगिक क्षेत्र की सड़कें टूटी हुई थीं। नालों से पानी की निकासी भी नहीं हो रही थी। बीते दिनों यूपीएसआइडीसी ने वहां की सड़कों का निर्माण करवा दिया है। जल निकासी व साफ-सफाई की कुछ समस्याएं अभी बाकी हैं।

सीबीगंज औद्योगिक क्षेत्र

राज्य सरकार ने वर्ष 1956 में सीबीगंज औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की थी। कई एकड़ क्षेत्र में फैले इस इंडस्टियल एरिया में 57 प्लाट हैं। उनमें से सरकार ने 12 बनाकर दिए थे। मौजूदा समय में वहां 29 इकाइयां हैं। इसे वर्ष 2004 में नगर निगम के हवाले कर दिया गया।

समस्याएं

इंडस्टियल एरिया में जल निकासी की समस्या बनी हुई है। बाहर मुख्य सड़क का नाला भी नहीं बन पाया है। सीवर लाइन आज तक नहीं बनी। पानी के लिए ओवरहेड टैंक भी नहीं हैं।

भोजीपुरा औद्योगिक क्षेत्र

यूपीएसआइडीसी ने वर्ष 1964 में भोजीपुरा औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की थी। वहां कई एकड़ भूमि पर क्षेत्र विकसित किया गया। उस वक्त यहां करीब 62 प्लांट बनाए गए थे। मौजूदा समय में वहां करीब 40 इकाइयां ही चल रही हैं। क्षेत्र जिला परिषद में आता है।

समस्याएं

इस क्षेत्र में पानी की निकासी की बड़ी समस्या है। बिजली की समस्याएं भी यहां रहने लगी है। पानी के लिए ओवरहेड टैंक नहीं है। साफ-सफाई व्यवस्था बिगड़ी हुई है।

औद्योगिक क्षेत्र काफी पुराना है। वहां मरम्मत का काम होना है। सरकार कुछ नहीं कर रही। नगर निगम सुविधाएं नहीं दे रहा है।

राजेश गुप्ता, अध्यक्ष, सीबीगंज औद्योगिक क्षेत्र

बिजली का फीडर जो औद्योगिक क्षेत्र के लिए लगाया गया था, अब वह आम हो गया है। उससे स्टेशन, टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप को जोड़ दिया है। सफाई व्यवस्था भी खराब है। - अजय शुक्ला, अध्यक्ष, भोजीपुरा

औद्योगिक क्षेत्र

साल भर में उद्योगों के विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। सरकार ने न्यू बिजनेस पॉलिसी के लिए जो वादे किए, वो भी पूरे नहीं किए। - मनोहर लाल धीरवानी, राष्ट्रीय सचिव, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन

ये फैक्टियां बंद हुईं

इंडियन टर्पिन टाइन एवं रोजिन (आइटीआर) फैक्ट्री में तारपीन के तेल, बिरोजा आदि का उत्पादन होता था। अप्रैल 1998 में फैक्ट्री बंद हो गई।

फतेहगंज पश्चिमी स्थित रबड़ फैक्ट्री के उत्पाद पूरे एशिया के देशों में प्रसिद्ध थे। करीब दो हजार लोग इस फैक्ट्री में सेवाएं दे रहे थे। 15 जुलाई 1999 में फैक्ट्री बंद हो गई।

उप्र. शुगर कारपोरेशन के अधीन नेकपुर की गन्ना फैक्ट्री को वर्ष 1996 में लक्ष्य से अधिक उत्पादन करने के लिए गोल्ड मेडल मिला था। सितंबर 1998 में मिल बंद हो गई।

सीबीगंज स्थित विमको फैक्ट्री में माचिस का उत्पादन होता था। यहां से पूरी देश भर में माचिस की सप्लाई का काम था। वर्ष 2014 में फैक्ट्री बंद हो गई।

बहेड़ी में वर्षो पूर्व यूपी सहकारी कताई मिल थी। इसमें सूत के धागे बना करते थे। अगस्त 2010 में फैक्ट्री को बंद कर दिया गया।


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