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बर्ड फ्लू ही नहीं, पक्षियों के लिए ठंड भी है खतरनाक

ठंड बढऩे के साथ ही पक्षियों के मरने की घटनाएं भी बढ़ गई हैैं। लेकिन इस बार पक्षियों के मरने की घटनाएं लोग बर्ड फ्लू से जोड़कर देख रहे हैैं जबकि ऐसा नहीं है। सामान्य तौर पर भी सर्दी में हर साल पक्षियों की मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है।

By Sant ShuklaEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 06:16 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 04:50 PM (IST)
सामान्य तौर पर भी सर्दी में हर साल पक्षियों की मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है।

 बरेली, जेएनएन।  ठंड बढऩे के साथ ही पक्षियों के मरने की घटनाएं भी बढ़ गई हैैं। लेकिन इस बार पक्षियों के मरने की घटनाएं लोग बर्ड फ्लू से जोड़कर देख रहे हैैं, जबकि ऐसा नहीं है। सामान्य तौर पर भी सर्दी में हर साल पक्षियों की मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है। कम तापमान में सक्रिय होने वाले वायरस इन्हें घेर लेते हैं। जिस कारण नवंबर से जनवरी के बीच सामान्य दिनों की अपेक्षा 10 से 15 फीसद तक मौतें ज्यादा होती हैं।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान के वैज्ञानिक बताते हैं कि सर्दी में ब्रोंकाइटिस, रानीखेत और क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिसीज के मामले बढ़ जाते हैं। ये बीमारियां कुक्कुट व अन्य पक्षियों के श्वसन तंत्र, फेफड़ों को प्रभावित करती हैं। जिससे उनकी मौत हो जाती है। ये तीनों बीमारियां पक्षियों से इंसान में नहीं पहुंचतीं, इसलिए आम लोगों तक चर्चा कम पहुंचती है। जबकि बर्ड फ्लू संक्रमित कुक्कुट या अन्य पक्षियों से इंसान भी संक्रमित हो जाता है क्योंकि इसका वायरस ज्यादा खतरनाक होता है।
सर्दी में घेरती हैं ये बीमारियां
 ब्रोंकाइटिस :  इस बीमारी में पक्षियों की श्वास नली में सूजन आ जाती है। इससे ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाती। कुछ समय बाद फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैैं, जिससे मौत हो जाती है।
रानीखेत : उत्तराखंड के रानीखेत से सामने आई यह बीमारी वीएन वायरस की वजह से होती है। इस रोग से पालतू और जंगली पक्षी कुछ ही दिन में कमजोर होकर मर जाते हैं।
क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिसीज : क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिसीज (सीआरडी) यानी सांस की बीमारी भी बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत की वजह बनती है। यह भी ठंड के दिनों में ज्यादा होती है।
गर्मी में मौत की वजह
विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्मियों में मौत की दो वजह होती हैं। पहली यह कि पक्षियों में पसीना बाहर निकालने की ग्रंथि नहीं होती है। ऐसे में भीषण गर्मी में शरीर का तापमान काफी बढऩे से पक्षियों की मौत हो जाती है। दूसरी वजह है कि शरीर में पानी की कमी से जान चली जाती है। इन दोनों तरह की मौत से दूसरे पक्षी प्रभावित नहीं होते। जबकि सर्दी में विषाणुजनित बीमारियों से दूसरे पक्षी भी चपेट में आ जाते हैं।  
इस तरह परखें बीमारी के लक्षण
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआइ) में करीब 40 हजार पक्षी हैैं। बर्ड फ्लू से बचाव के लिए निगरानी जरूरी है। ऐसे में वैज्ञानिक बीमारी के लक्षण व अनुभव के आधार पर संक्रमित पक्षी की पहचान करते हैं। बर्ड फ्लू या किसी अन्य विषाणु से संक्रमित पक्षी झुंड में नहीं, बल्कि अलग-थलग रहते हैैं। फार्म हाउस के मालिक भी पक्षियों के स्वभाव में कुछ बुनियादी अंतर से समझ सकते हैैं कि वे बीमार हैैं या नहीं।
आंखों में जलन के साथ निकलता है पानी
बुखार या अन्य वायरस से पीडि़त पक्षियों की आंखों में जलन होती है। लगातार पानी निकलने की वजह से आंखों के पास काला निशान हो जाता है। संक्रमित पक्षी लगातार छींकता है। समय-समय पर ऐसी आवाज आती है, जो आम दिनों में नहीं आती। ये पक्षियों की खांसी होती है। संक्रमित पक्षी बंद ङ्क्षपजरे या खुले फार्म हाउस में इधर-उधर भटकता है। इन लक्षणों से संक्रमित पक्षियों को पहचाना जा सकता है।
क्या कहना है जानकारों का
संस्थान में सभी कुक्कुट प्रजातियों की निगरानी की जा रही है। बायो सिक्योरिटी का पूरा खयाल रखा जा रहा है।
 डा. संजीव कुमार गुप्ता, निदेशक, सीएआरआइ

साल में औसतन एक हजार पोस्टमार्टम होते हैं। नवंबर से जनवरी के बीच ठंड के कारण पक्षियों के मरने की संख्या बढ़ जाती है।
ललित कुमार वर्मा, पशु चिकित्सा अधिकारी

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