Triple Talaq News : तीन तलाक... महिलाएं नहीं, अब कहने वाले डरने लगे
मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून बनने के बाद हक मांगने के लिए महिलाएं अब शरीय अदालतों के भरोसे नहीं हैं। उलमा भी मानते हैं कि कानून लागू होने के बाद मामले कम हुए हैं।
बरेली, अंकित गुप्ता : शेरगढ की अवसर जहां, निकाह के बाद छह साल तक शौहर के साथ तो रहीं मगर हर दिन प्रताडना में बीता। वर्ष 2019 में उसने दूसरा निकाह कर लिया। अवसर जहां पाबंदियों की बेडियों में जकडकर थमी नहीं। आवाज उठाई, थाने पहुंचे और बेघर करने वाले पति को जेल भिजवाया। मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून बनने के बाद तीन तलाक लेने के मामले में पिछले साल आठ अगस्त को यह प्रदेश में पहली गिरफतारी थी। इससे पहले... एक बार में तीन तलाक बोला तो पुरुष वैवाहिक रिश्ते की तोडकर आजाद हो जाता और मुस्लिम महिलाएं गुहार लगातीं, गिडगिडातीं। पुरुष की ओर से तोडी गई रिश्ते की डोर को दोबारा जोडने के लिए उन्हें हलाला के लिए मजबूर किया जाता। कानून बने आज एक साल हो गया। जिसके जरिये पीडितों ने अपनी आवाज उठाई। इस एक साल में जिले में इस कानून के तहत 28 मामले दर्ज किए गए। इनमें से पांच पुरुषों ने अपने किए पर माफी मांगी। जिन्हें तीन तलाक दिया, उनके पास दोबारा पहुंचे। स्वीकारा कि महिला के भविष्य पर फैसला लेने का हक महज पुरुष को नहीं है। महिलाएं उसमें बराबर की भागीदार हैं। माफीनामा के बाद सुलह हुई और पांचों मुकदमे खत्म कर महिलाएं अपने शौहर के साथ दोबारा रह रही हैं।
बरेली सुन्नी मुसलमानों का प्रमुख केंद्र है। आला हजरत के परिवार से जुडे शीरान रजा का निकाह पांच साल पहले शाहदाना निवासी निदा खान से हुआ था। निदा का कहना है कि तीन साल पहले उन्हें तीन तलाक दे दिया गया। उसके बाद से आला हजरत फाउंडेशन बनाकर वह तीन तलाक पीडिताओं की आवाज उठाने लगीं। कानून बनाए जाने की मांग करने लगीं। इसी तरह फरहत नकवी मेरा हक फाउंडेशन के जरिये तलाक पीडिताओं को न्याय दिलाने के लिए डट गईं। बरेली से उठी तीन तलाक पीडिताओं ऐसी बुलंद थी कि धमकियां भी दबा न सकीं। पिछले साल कानून बनने के बाद अब शरई अदालतें भी सोच समझकर बोल रहीं। महिलाएं थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज करा रहीं।
हलाला पर दर्ज कराया था ससुर के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा
तीन तलाक और हलाला के प्रकरण को पुलिस शरीयत का बताकर पल्ला झाड लेती थी। वर्ष 2018 से पीडिताओं के लिए आवाज बुलंद होने लगी, केंद्र व प्रदेश सरकार तक उनका दर्द पहुंचाया जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि 18 जुलाई 2018 को किला क्षेत्र की महिला की ओर से हलाला करने पर ससुर के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया। यह पहला मौका था जब किसी मुस्लिम महिला ने हलाला के खिलाफ आवाज उठाकर दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखाई।
तीन तलाक का कोई वजूद नहीं था इसके बावजूद उसका इस्तेमाल कर महिलाओं का उत्पीडन किया गया। विरोध करने पर धर्म के नाम पर डराया जाता है। आवाज दबाने की कोशिश होती है। मैनें आवाज उठाई तो मेरे खिलाफ फतवे दिए गए कि कोई मुझसे वास्ता न रखे। सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ या मौलाना तलाक को लेकर महिलाओं के पक्ष में कभी नहीं बोले। तीन तलाक पर कानून बना तो विरोध करने लगे। इससे पता चलता है कि ये लोग पुरुष प्रधान समाज को बढावा देने वाले हैं और महिलाओं पर जुल्म कराने पर भरोसा रखते हैं। कानून बनने के बाद अब मुस्लिम महिला उत्पीडन पर काफी हद तक रोक लगी है। मुस्लिम महिलाएं अपना हक अब कानून के तहत मांग रही हैं। उनके साथ अन्याय होने पर वे कानून का दरवाजा खटखटा रहीं।
-निदा खान, अध्यक्ष, आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी
--------------
करीब आठ साल से तीन तलाक के खिलाफ लडाई की गवाह हूं। यह मुस्लिम महिलाओं के लिए दंश था। शौहर के तीन शब्द किसी भी महिला व बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर देते थे। पीडिताओं की आवाज उठाने पर कभी मुझे काफिर कहा गया तो कभी फतवे हुए। तेजाब से हमला करने के प्रयास किए गए। तीन तलाक न तो शरीयत का हिस्सा है और न ही इस्लाम का। धर्म के कुछ ठेकेदारों ने अपनी दुकान चलाने के लिए ये जरिया बना लिया था।
- फरहत नकवी, अध्यक्ष, मेरा हक फाउंडेशन
उलमा की बात
दारूल इफ्ता यानी शरई अदालत में तीन तलाक मामले कम हुए हैं। मुफ्ती में भी कानून का खौफ है, इसलिए तीन तलाक मसलों पर फतवों से बचते हैं। लोग भी कानून के डर से एक साथ तीन तलाक एक साथ देने में संकोच करने लगे। पहले शरई अदालत में तीन तलाक केस बहुत आते थे। लेकिन अब मुफ्ती को पता है कि फतवा देने से मामला कोर्ट जा सकता है। - मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी, राष्ट्रीय महासचिव तंजीम उलाम-ए-इस्लाम
क्या है तीन तलाक
मुस्लिम शौहर अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक कहकर रिश्ता खत्म कर सकता था। सामने बोलकर, लिखकर या मोबाइल पर संदेश भेजकर तलाक, तलाक, कह दिया तो वह बतौर पत्नी उसके साथ नहीं रह सकती। पीडित महिला अपनी बात शरई अदालत में कह सकती थी।
क्या है हलाला
तीन तलाक के बाद यदि शौहर पत्नी के साथ समझौता कर दोबारा रिश्ता रखना चाहता है तो इससे पहले पत्नी का निकाह किसी दूसरे शख्स से कराना होगा। उसके साथ बतौर पत्नी रहना होगा, इसे हलाला कहा गया। इसके बाद उस शख्स से संबंध विच्छेद कर दोबारा शौहर से निकाह कर रह सकेगी।
क्या है कानून
पिछले साल एक अगस्त को लागू मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून लागू हुआ। एसपी अभिषेक वर्मा बताते हैं कि कानून के तहत तीन तलाक देने पर आरोपित को बिना वारंंट गिरफतारी और तीन साल की सजा का प्रावधान है।