मुहल्लानामा : खाली हाथ आए थे, मेहनत से बनाया ‘ताजमहल’ Bareilly News
अमीरी और गरीबी इन दोनों के बीच महज सोच का फर्क है। एक ने तय किया कि नामुमकिन को मुमकिन कर सकते हैं और उन्होंने ऐसा कर भी दिखाया।
बरेली [वसीम अख्तर] : ‘हम पाकिस्तान में रईस थे, हिंदुस्तान आकर भी रईस हुए और अब रईस ही मरेंगे’। इनका यह दावा उनके लिए सीख है, जिनके बारे में लिखने वाले और कहने वाले कहते नहीं थकते, ये गरीब थे, गरीब हैं और गरीब रहेंगे।
अमीरी और गरीबी इन दोनों के बीच महज सोच का फर्क है। एक ने तय किया कि नामुमकिन को मुमकिन कर सकते हैं और उन्होंने ऐसा कर भी दिखाया। दूसरे यही कहते रह गए, कुछ कर लें, जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे।
शहर की मॉडल टाउन कॉलोनी सोच के इसी फासले की गवाह है। जहां देश की आजादी के बाद खाली हाथ आने वालों ने मेहनत का ‘ताजमहल’ खड़ा कर दिया और वह सूबे के लिए किसी सीख से कम नहीं। अफसर मीटिंग में इसकी मिसाल भी देते नहीं थकते।
कॉलोनी में ये भी बनवाए
हरिमंदिर के साथ गुरुद्वारा गुरू गोविंद सिंह, रिक्खी सिंह इंटर कॉलेज, आर्य समाज मंदिर और भगत सिंह पार्क का निर्माण भी कराया गया है।
मुहल्लानामा-माडल टाउन स्थित गेट पर लिखा है बरेली रिफ्यूजी कौआपरेटिव लिखा है। जागरण
नामी परिवार
चड्ढा फैमिली-इसके अधिकांश सदस्य कनाडा में हैं। चिक्कड़ फैमिली, भसीन फैमिली, ओबराय फैमिली इत्यादि की गिनती शहर के बड़े लोगों में होती है। मॉडल टाउन की पहली सबसे बड़ी कोठी विद्या भवन थी, जो शुगर मिल के जीएम कथूरिया साहब ने बनवाई थी।
एक रुपया महंगा, एक लाख सस्ते
हरि मंदिर कमेटी के प्रधान सतीश खट्टर बताते हैं कि देश का बंटवारा हुआ था तो पाकिस्तान छोड़ना पड़ा। मारकाट के बीच पिता और चाचा बच्चों के साथ बन्नू कोहाट से चले और हरिद्वार आकर ट्रेन से उतरे थे। पहले जाट रेजीमेंट सेंटर में रखा गया और फिर फतेह बगिया, जो अब मॉडल टाउन कॉलोनी है, यहां 360 क्वार्टर बनाकर दिए गए। बाद में एक रुपये गज के हिसाब से 500 रुपये की जमीन ली। तब का एक रुपया बहुत महंगा था। अब एक लाख रुपये भी सस्ते हैं।
फिर भी सह रहे रिफ्यूजी होने का दर्द
पूर्व पार्षद तिलकराज डिसूजा कहते हैं कि जब हमें रिफ्यूजी लिखा या पुकारा जाता है तो दर्द होता है। हम पुरुषार्थी हैं, रिफ्यूजी कहना ठीक नहीं है। नगर निगम के बिल रिफ्यूजी के नाम से आते हैं। बिजली के पोलों पर भी यही दर्ज है। हम पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर खाली हाथ आए थे। यहां पर 79 साल बीतने के बाद भी रिफ्यूजी का ठप्पा खत्म नहीं हो सका है।
नगर पालिका ने आठ आने गज में दी थी जमीन
बरेली रिफ्यूजी हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष रबि छाबड़ा बताते हैं कि नगर निगम तब नगरपालिका हुआ करता था। सोसायटी को कॉलोनी के लिए एक रुपया चार आने गज के हिसाब से जमीन दी थी। इसी जमीन पर बसी कॉलोनी का नाम बाद में मॉडल टाउन पड़ा। कॉलोनी को अब भी सोसायटी ही व्यवस्थित रखती है। तमाम काम हरिमंदिर बरातघर से होने वाली आय से होते हैं। रखरखाव की प्रशंसा प्रशासनिक अफसर बैठकों में करते हैं।
मेहनत की बदौलत आगे बढ़ते गए, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा
स्टेशनरी कारोबारी सतेंद्र सिंह बख्शी बताते हैं कि बंटवारे के बाद हमारा सब कुछ पाकिस्तान में ही रह गया था। खाली हाथ थे लेकिन किसी तरह खड़े हुए। पुरखों ने यही सिखाया था कि मेहनत के आदी हैं तो सब कुछ पा लेंगे। मॉडल टाउन के लोगों ने यही साबित भी किया है। यहां के लोग मेहनत से नहीं घबराते हैं।