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मरी मान ली थी बेटी, आठ साल बाद ममता आश्रम में मिली

बरेली (जेएनएन)। ओेडिशा में अपने माता-पिता, भाई-बहनों और झांसी में पति का साथ छूटने के बा

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 08:31 PM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 12:08 AM (IST)
मरी मान ली थी बेटी, आठ साल बाद ममता आश्रम में मिली

बरेली (जेएनएन)। ओ डिशा में अपने माता-पिता, भाई-बहनों और झांसी में पति का साथ छूटने के बाद रंजू आठ साल तक लावारिसों की तरह शहर-शहर भटकती रही। पति से लेकर माता-पिता तक ने उसे मरा हुआ मान लिया था। रंजू अपने शहर के मानसिक मंदित आश्रय गृह (ममता आश्रम) की चारदीवारी के भीतर अनचाही कैद में मिली। मनोवैज्ञानिक काउंसलर शैलेष शर्मा ने ओडिशा के ढेकेनाल जिले में रह रहे परिवार को खोजा। मंगलवार सुबह बेटी को आंखों के सामने पाकर युवती की मां, बहन को अपनी ही आंखों पर ऐतबार नहीं हुआ। बेटी को चूमा, गले लगा लिया। खुशी के आंसू छलक पड़े। सरकारी औपचारिकताएं पूरी कर आखिर रंजू को उसकी मां और बहन को सौंप दिया।

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पति के साथ निकली थी दिल्ली के लिए

परिवार से आठ साल दूर रहने, मानसिक मंदित का दंश झेलने वाली रंजू बेहेरा ओडिशा के ढेकेनाल जिले में तरखा क्षेत्र के नुआंगांव की निवासी है। आदिवासी परिवार में पिता हरिबंधु बेहेरा, मां कन्ढेई देवी और भाई-बहन गांव के जंगल में ही खेती-बाड़ी करते थे। किसी तरह 2009 में बेटी की शादी ओडिशा के ही मूल निवासी युवक से की। रोजी-रोटी के लिए पति झांसी में मजदूरी करता था। 2011 में दिल्ली में काम करने निकला। पत्नी रंजू भी साथ थी लेकिन, दिल्ली स्टेशन पर अचानक भीड़ में रंजू पति से बिछड़ गईं।

उड़िया किसी ने नहीं समझी

आदिवासी होने के चलते रंजू पढ़-लिख नहीं सकी। केवल उड़िया जानती थी। ¨हदी भाषी दिल्ली में उसकी बोली किसी ने नहीं समझी। भटकते-भटकते दिल्ली से सटे गौतमबुद्धनगर (नोएडा) कब पहुंच गई, उसे भी नहीं पता। 19 जून 2012 को नोएडा के सेक्टर-58 पुलिस को वह सड़क किनारे मिली। पुलिस ने लावारिस समझकर उसे सिटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। नारी शरणालय भेज दिया गया। नोएडा से 2012 में ही मेरठ के नारी निकेतन पहुंची। अपने नाम के अलावा वह ज्यादा न बता सकी। मानसिक मंदित मामला होने पर आखिर पांच नवंबर 2015 को बरेली के हरुनगला स्थित ममता आश्रम लाई गई।

इंटरनेट से खोजा गांव, जंगल में मिले माता-पिता

रंजू के नाम के आगे की जानकारी शून्य थी। काउंसलर शैलेष ने धीरे-धीरे बातचीत के माध्यम से पहले पिता-माता, फिर गांव पता किया। इंटरनेट के जरिए गांव खोजा। परगना और जिला पता लगा। शैलेष 18 मार्च को ढेकेनाल में रंजू के बताए नुआंगांव पहुंचे। नाम पूछते-पूछते माता-पिता ढूंढ निकाले। वे गांव के बाहर जंगल में खेत में काम करते मिले।

मोबाइल पर बेटी की तस्वीर देख की तस्दीक

बेटी का नाम और अन्य जानकारी बताने पर भी उड़ियाभाषी माता-पिता को ऐतबार न हुआ। मोबाइल पर बेटी की फोटो देखकर तुरंत उसे पहचान लिया। सोमवार रात मां कन्ढेई, बहन मुक्ता बेहेरा बरेली पहुंचे। सुबह ममता आश्रम में प्रभारी नवीन जौहरी ने कागजी प्रक्रिया पूरी कर रंजू को परिजन के साथ विदा किया।


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