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आतंक का अंत : बकरी का शिकार करने के चक्कर में पिंजरे में कैद हो गया तेंदुआ

इंडो-नेपाल सीमा से सटे दर्जनों गांवों में पिछले कई महीनों से आतंक का पर्याय बन चुके तेंदुआ को बुधवार देर रात करीब तीन बजे पकड़ने में सफलता मिल गई।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 01:14 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 01:14 PM (IST)
आतंक का अंत : बकरी का शिकार करने के चक्कर में पिंजरे में कैद हो गया तेंदुआ
आतंक का अंत : बकरी का शिकार करने के चक्कर में पिंजरे में कैद हो गया तेंदुआ

पीलीभीत, जेएनएन : इंडो-नेपाल सीमा से सटे दर्जनों गांवों में पिछले कई महीनों से आतंक का पर्याय बन चुके तेंदुआ को बुधवार देर रात करीब तीन बजे पकड़ने में सफलता मिल गई। वन विभाग ने तेंदुआ को कैद करने के लिए कलीनगर तहसील क्षेत्र के गांव नौजल्हा में पिंजरा लगाया था। तेंदुआ को रिझाने के लिए पिंजरे में बकरी को भी बांधा गया था। देर रात तेंदुआ बकरी का शिकार करने के लिए पहुंचा तो पिंजरे में कैद हो गया। तेंदुआ पकड़ने की जानकारी ग्रामीणों को लगी तो मौके पर लोगों की भारी भीड़ जुट गई। ग्रामीण महीनों से जिस तेंदुआ की दहशत के चलते घरों में दुबके हुए थे, उसकी एक झलक पाने के लिए पिंजरा की ओर दौड़ पड़े। बता दें कि वन विभाग इलाके से तीसरे तेंदुआ को पकड़ा है। इससे पहले दो अन्य तेंदुआ को क्षेत्र से कैद किया जा चुका है। लंबे समय से तेंदुआ की आबादी में चहल-कदमी करने और मवेशियों को शिकार बनाने के कारण ग्रामीण दहशत में रहने को मजबूर थे। 

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दर्जनों मवेशियों को बना चुका था शिकार

करीब छह महीने पहले सीमावर्ती गांवों में तेंदुआ ने दस्तक दी थी। तेंदुआ के लगातार आबादी में देखे जाने और घर में बंधे मवेशियों को शिकार बनाने पर वन विभाग सक्रिय हुआ था। वन विभाग ने पिंजरा लगाकर एक तेंदुआ को पकड़ा था। मगर कुछ दिनों बाद दोबारा तेंदुआ देखे जाने की घटनाएं सामने आने लगी। वन विभाग ने पड़ताल की तो पला चला किसी दूसरे तेंदुआ ने भी इलाके का रूख कर लिया। कई दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद उसे भी पिंजरा लगाकर पकड़ा गया था। इसके बाद दो महीने पहले तीसरे तेंदुए ने कलीनगर इलाके के गांवों में दहशत फैलाना शुरू कर दिया। तेंदुआ नेपाल सीमा से सटे कई गांवों में दर्जनों मवेशियों को अपना शिकार बना चुका था।

दहशत के घरों में दुबके रहते थे लोग

तेंदुआ की दहशत के चलते पिछले दो महीनों से ग्रामीण दिन ढलने के बाद घरों में दुबक जाते थे। किसी महत्वपूर्ण काम से बाहर जाना पड़ता था तो समूह में निकलते थे। गन्ना कटाई के दौरान भी किसान एकत्रित होकर खेतों पर जाया करते थे कि कहीं रास्ते में तेंदुआ उन पर हमला न बोल दे। 


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