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Jagran Discussions: राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों पर लागू हो वैधानिक प्रतिबद्घता

राजनीतिक पार्टियों के हवा-हवाई घोषणा पत्र पत्रों की जवाबदेही तय हो। सरकारें अपने कार्यकाल में घोषणापत्र में किए गए वादे पूरा करने के लिए विवश हों। वैधानिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 12:40 AM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 12:16 PM (IST)
Jagran Discussions: राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों पर लागू हो वैधानिक प्रतिबद्घता

जेएनएन, बरेली : चुनावी रण सज चुका है। केंद्र मेें सरकार बनाने के लिए प्रमुख राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक से बढ़कर एक वादे सभी ने किए हैैं। वास्तव में देखा जाए तो यह घोषणा पत्र नहीं बल्कि मतदाताओं को लालच देकर गुमराह करने का प्रयास है। वादों के नाम पर हर चुनाव में उन्हें छला जा रहा है। कोई दल 6000 तो कोई 72000 रुपये सलाना देने का दावा कर रहा है। हैरानी इस बात की है कि किसी भी दल ने वादा पूरा करने का रास्ता नहीं बताया है। इसके लिए बजट कहां से आएगा...? लाभ पाने वाले पात्र का चयन कैसे होगा...? यही नहीं। इस दफा के घोषणा पत्र में तमाम पुराने वादे भी शामिल हैं, जो पूर्व की सरकार रहते पूरे नहीं हो सके थे। अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक पार्टियों के हवा-हवाई घोषणा पत्र पत्रों की जवाबदेही तय हो। सरकारें अपने कार्यकाल में घोषणापत्र में किए गए वादे पूरा करने के लिए विवश हों। इसके लिए इनपर वैधानिक प्रतिबद्धता लागू होनी ही चाहिए। यदि राजनीतिक दल वादे पूरा न कर सकें तो वोटर को राइट टू रिकॉल का विकल्प दिया जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि आज की राजनीति में चुनावी घोषणा पत्र अपनी साख खो चुके हैैं। ये बातें बरेली कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. सोमेश यादव एवं बॉटनी विभागाध्यक्ष डॉ. आलोक खरे ने कहीं। वे कैसे बढ़े चुनावी घोषणा पत्र की अहमियत.. विषय पर आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में पहुंचे थे।

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दूसरे देशों से सीखे हमारे नेता

डॉ. आलोक खरे ने उदाहरण पेश कर कहा कि करीब आठ साल पहले जब अर्जेंटीना में चुनाव हुए तो वहां की तीनों पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र जारी किए थे। उस दौरान देश की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई थी। इस कशमकश में चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाया गया लेकिन, उसने इन्कार कर दिया। इसलिए क्योंकि वह अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने में सक्षम नहीं मान रही थी। इसी कारण दूसरी व तीसरी पार्टी भी सरकार बनाने से पीछे हट गई। तब देश चलाने के लिए गठबंधन सरकार बनाई गई। हमारे देश में भी राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान जारी किए जाने वाले घोषणा पत्रों पर इसी तरह की जबावदेही दिखानी चाहिए।

एक माह पहले जारी हो घोषणा पत्र

डॉ. सोमेश यादव ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। इन पर वैधानिक प्रतिबद्धता लागू होनी चाहिए। अन्यथा घोषणा पत्र जारी करना ही बंद कर देने चाहिए। यदि घोषणा पत्र छापना ही है तो इसे चुनाव से चार-पांच दिन नहीं, बल्कि करीब एक माह पहले जारी करना चाहिए। साथ ही इसे हर वोटर तक पहुंचाना भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जिससे वोटर उसमें किए गए सभी वादों के बारे में अच्छे से सोच विचारकर अपना वोट दे सके। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर व जागरूकता कम होती है इसलिए वहां स्कूलों में शिक्षकों के जरिये घोषणा पत्र में किए गए सभी वादों की जानकारी दी जानी चाहिए। सिर्फ हवा घोषणा पत्र बनाने से इस देश का भला नहीं होने वाला।  


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