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लीलाधर का विष्णुभोग आम खाना हो तो बदायूं आइए, जानिए क्या है खासियत

फलों के राजा आम को आप ने बहुत खाया होगा लेकिन छिलके के साथ मीठे आम खाना हो तो बदायूं चले आइये। जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर सहसवान तहसील के गांव भोयस में बागवान पं.लीलाधर शर्मा ने आम की नई प्रजाति विकसित की है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 07:38 AM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 05:44 PM (IST)
लीलाधर का विष्णुभोग आम खाना हो तो बदायूं आइए, जानिए क्या है खासियत
लीलाधर का विष्णुभोग आम खाना हो तो बदायूं आइए, जानिए क्या है खासियत

बदायूं , [कमलेश शर्मा]। फलों के राजा आम को आप ने बहुत खाया होगा, लेकिन छिलके के साथ मीठे आम खाना हो तो बदायूं चले आइये। जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर सहसवान तहसील के गांव भोयस में बागवान पं.लीलाधर शर्मा ने आम की नई प्रजाति विकसित की है। आम की मिठास को देखकर उन्होंने इस प्रजाति का नाम विष्णुभोग दिया है। पराग कण क्रिया से उन्होंने अपनी बगिया में इस विशेष प्रकार के आम का पौधा तैयार किया है। इसे पकाने के लिए पेड़ से फल तोड़कर अखबार में लपेटकर 24 से 48 घंटे में पककर तैयार हो जाता है और इसे छिलके के साथ स्वाद लिया जा सकता है।

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बागवानी में रचे-बसे पं.लीलाधर शर्मा की बगिया में कई दुर्लभ प्रजाति के पौधे हैं। मक्का और गेहूं की फसल में पर परागण की क्रिया से रिकार्ड उत्पादन कर चुके हैं। बाग में नई प्रजाति के पौधे लगाने और विकसित करने का जुनून है। आम के पौधे की नई प्रजाति विकसित करने की शुरूआत सात साल पहले की थी। पर परागण क्रिया से आम की नई प्रजाति तैयार की और इसका नाम विष्णु भोग रखा है।

अब इस पेड़ पर फल आने लगे हैं। यूं तो इस पेड़ पर भी आम की सामान्य प्रजातियों की तरह प्रकृति द्वारा निर्धारित समय पर ही फूल और फल आता है, लेकिन इसकी विशेषता अलग है। कच्चे फल को तोड़कर अखबार में लपेट कर रख देने पर पक कर तैयार हो जाता है। इस आम का स्वाद भी अन्य आमों से अलग है। वह बताते हैं कि पौधे पर पहली बार फल आया, लेकिन तब फलों की संख्या बहुत कम रही।

इस बार इस पेड़ पर अच्छी फसल आई है। इस प्रजाति को अब आगे बढाने के लिए गुठली अथवा कलम के माध्यम से प्रयास कर रहे हैं। मंडलायुक्त रणवीर प्रसाद और जिलाधिकारी कुमार प्रशांत ने भी पिछले सप्ताह इनकी बगिया में पहुंचे थे और विष्णुभोग का स्वाद चखा था। पं.लीलाधर शर्मा को दुर्लभ प्रजाति के पौधों को लगाने और सहेजने का शौक है।

बह बताते हैं कि अल्मोड़ा, मसूरी, ब्रदीनाथ तक से पौधे लेकर आते हैं। विपरीत जलवायु में उन पौधों को सहेजना बड़ी चुनौती रहती, कई पौधे सूख जाते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं हारते हैं, अपनी बाग में दुर्लभ प्रजाति के पौधों को देखकर बहुत आत्मसंतोष मिलता है।

बगिया में नीलकमल और देवदार को सहेजा

पहाड़ी क्षेत्र में मिलने वाला पौधा देवदार को लगाकर सहेजने में कई साल से मशक्कत कर रहे हैं। विपरीत जलवायु होने के कारण कई पौधे सूख गए, लेकिन अब एक पौधे से कल्ले निकलने लगे हैं। इसके अलावा मसूरी, देहरादून में मिलने वाला नील कमल भी इनकी बगिया में है। रूद्राक्ष, चीड़, चंदन, लौंग, तेजपात, हर्रे, ङ्क्षसदूर, ग्रास के पौधे भी इनकी बगिया में मौजूद हैं।

पं.लीलाधर शर्मा ने भोयस गांव में अच्छी बागवानी कर रखी है। एक दिन वहां जाने का मौका मिला था। आम का पौधा भी विकसित किया है, पहाड़ों पर उगने वाले तमाम पौधे भी लगा रखे हैं। दूसरे लोगों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। - कुमार प्रशांत, जिलाधिकारी 


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