जानिए ! कैसे देश में सीएआरआइ की पहचान बनेगी ‘कैरी निर्भीक मुर्गी’
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआइ) की नई प्रजाति की ‘कैरी निर्भिक मुर्गी-मुर्गा’ अब देश में भी अपनी पहचान बनाएंगे।
बरेली, अखिल सक्सेना । केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआइ) की नई प्रजाति की ‘कैरी निर्भिक मुर्गी-मुर्गा’ अब देश में भी अपनी पहचान बनाएंगे। संस्थान ने लड़ाकू प्रवृत्ति ’ असील’ प्रजाति के नर और कैरी रेड प्रजाति की मादा से क्रास कराकर यह प्रजाति तैयार की थी। इसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो करनाल में पंजीकरण कराने के लिए पिछले आठ साल से संस्थान इसके मानकों का अध्ययन कर रहा था। अब मानक पूरे करने में सफलता पाई है। यह संस्थान की पहली मुर्गे-मुर्गी की प्रजाति होगी जो देश स्तर पर सूची में अपना नाम दर्ज कराएगी। इसको लेकर संस्थान ने तैयारी शुरू कर दी है।
सीएआरआइ की स्थापना दो नवंबर 1979 को हुई थी। मौजूदा समय में संस्थान के पास 40 हजार मुर्गे-मुर्गी, गिनीफाउल आदि की अलग-अलग प्रजाति हैं। वर्ष 2002 में संस्थान के वैज्ञानिकों ने मुर्गी की नई प्रजाति ‘कैरी निर्भीक’ को तैयार करने पर काम शुरू किया था। करीब सात साल बाद वर्ष 2009 में उन्हें सफलता मिली थी।
नौ साल बाद पूरे हो पाए मानक
देश में पशु-पक्षियों की जो भी नई प्रजाति विकसित होती हैं, उसका पंजीकरण देश के राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) में कराना होता है। लेकिन उसके मानक काफी कठिन होते हैं। यही वजह है कि सीएआरआइ की स्थापना के 40 साल बाद भी कोई भी यहां किसी भी नई प्रजाति के पक्षी का नाम वहां दर्ज नहीं हो पाया है। अब नौ साल तक इसके मानकों पर लगातार काम किया गया। किसानों से लेकर मुर्गी पालकों तक मानकों की टेस्टिंग कराई गई। इसके बाद कैरी निर्भीक मुर्गे-मुर्गी की प्रजाति मानकों पर अब खरा उतर रही है। एनबीएजीआर में पंजीकरण के बाद इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन में उसे शामिल किया जाएगा।
कैरी निर्भीक की प्रमुख विशेषताएं
-लड़ने की क्षमता सबसे ज्यादा
-चलने का तरीका दूसरी मुर्गी से अलग
-शुद्ध देशी मुर्गी है।
-लाल और पीले रंग की इस मुर्गी की प्रजाति में गर्दन लंबी, टांगे मजबूत होती हैं
-सालाना 170 से 190 अंडे देती है।
-इसे घर के पीछे की थोड़ी सी जगह में भी पाला जा सकता है।
संस्थान ने मुर्गे-मुर्गी की नई प्राजति कैरी निर्भीक तैयार की थी। लेकिन उसके मानक पूरे न होने की वजह से एनबीएजीआर में पंजीकरण नहीं कराया जा सकता था। अब मानक पूरे कर लिए गए हैं। पंजीकरण की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। जिसके बाद हमारी इस प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।
डॉ. संजीव कुमार, निदेशक, सीएआरआइ