Jagran Column : शहरनामा : पुलवामा की शहादत पर केक वायरल Bareilly News
देश पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा और सपा अध्यक्ष केक काटने में मसरूफ हैं। बात इस कदर फैली कि केक काटने वालों को कहना पड़ा दफ्तर में नहीं पीछे के हिस्से में काटा था।
वसीम अख्तर, बरेली : समाजवादी पार्टी में इधर काफी उथल-पुथल मची है। अंदरखाने तपिश की लपटें बाहर तक दिखाई दे रही हैं। शुक्रवार को दो घटनाक्रम तेजी से घटे। पहला मैसेज आया कि पार्टी शनिवार को कलेक्ट्रेट पर बरेली से फ्लाइट तय नहीं होने पर विरोध जताएगी। अगले मैसेज में बताया गया कि प्रदर्शन स्थगित। मीडिया के लिए तीसरा मैसेज चला कि प्रदर्शन होगा लेकिन राष्ट्रीय एकता व्यापार मंडल के बैनर तले। इन मैसेज की पड़ताल पर साफ हुआ कि प्रदर्शन गुटबाजी की भेंट चढ़ गया। तीन मैसेज की चर्चा चल ही रही थी कि चौथे मैसेज में सपा दफ्तर पर केक काटते जिलाध्यक्ष अगम मौर्य और अन्य पदाधिकारियों का फोटो वायरल हो गया। यह कहते हुए कि देश पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा और सपा अध्यक्ष केक काटने में मसरूफ हैं। बात इस कदर फैली कि केक काटने वालों को कहना पड़ा, दफ्तर में नहीं, पीछे के हिस्से में काटा था।
एक ट्रस्ट बनाऊंगा तेरे घर के सामने
वे ऐसे समाज से आते हैं, जिनमें बुद्धिमानी को गॉड गिफ्टेड कहा जाता है। इन्हीं में से कुछ ने अपने समाज का भला करने को ट्रस्ट बनाया। तय हुआ था कि गरीब बेटियों की शादी के लिए बरातघर बनेगा। बड़ी रकम इकट्ठा होने पर साफ हुआ कि ट्रस्ट किसी की प्राइवेट प्रापर्टी है। पैसे के दुरुपयोग का शोर मच गया। कई बार ट्रस्ट में रद्दोबदल के लिए कद्दावर बीच में पड़े। तय हुआ कि ट्रस्ट में बदलाव करेंगे पर किया नहीं। एक और ट्रस्ट वजूद में आ गया। इसमें एक ऐसे शख्स को आगे रखा गया है, जो पहले वाले ट्रस्ट में सर्वेसर्वा के ही संगी हैं। खास यह कि दोनों के घर आसपास हैं। अब समाज के ज्यादातर लोगों की जुबां मशहूर गाना-‘एक ट्रस्ट बनाऊंगा तेरे घर के सामने’, सुनाई दे रहा है। समझने वाले मतलब समझकर मुस्कुरा रहे हैं। नहीं समझने वाले पूछने के बाद हंस रहे हैं।
कार्यकारिणी में एक पदाधिकारी पर सवाल
लंबे इंतजार के बाद एक दिन पहले सत्ताधारी पार्टी की कार्यकारिणी घोषित हो गई। कुछ को महत्वपूर्ण पद दिए गए तो कुछ से छीन लिए गए। इन बातों से इतर ज्यादा चर्चा कार्यकारिणी में एक ऐसे शख्स को जगह देने की है, जिसे पूर्व में निकाला जा चुका था। उनके भाई सरकारी मुलाजिम हैं, जिन पर दाग लगने के बाद कार्रवाई भी हो चुकी है। पद मिलने पर जब उनका नाम सुना और फिर बाद में पढ़ा गया तो सवाल खड़े होने लगे। कहा जाने लगा कि पद देने में संबंध निभाए गए और सिफारिश मानी गई। अब अध्यक्ष जी भले ही कहते नहीं थक रहे कि अपनी पहली कार्यकारिणी में कर्मठ लोगों को जगह दी है। संगठन की मजबूती को संतुलन बनाया है लेकिन बातें बनाने वालों की जुबां किसने रोकी है। वह तो और भी बहुत कुछ कह रहे हैं। अब तो मामला ऊपर तक भी पहुंचाने की सुगबुगाहट चल रही है।
साहब हैं कि सुनते ही नहीं
वह राजनीति की कद्दावर शख्सियत हैं। सरल और सहज हैं। इस नाते अमूमन उनका सम्मान करते हुए उनकी बात को अफसर नजरअंदाज नहीं करते। माननीय जितना कहते हैं, अफसर उतना कर देते हैं लेकिन यह साहब हैं कि सुन ही नहीं रहे। वह शहर को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित एक थाने के थानेदार को हटवाना चाहते हैं। आला अफसरों से कई बार शिकायत भी कर चुके हैं। कह चुके हैं कि यह रवैया ठीक नहीं है। पार्टी के साथ आम जनता भी उनसे नाखुश है। जब थानेदार नहीं हटे तो पिछले दिनों एक कार्यक्रम में आमना-सामना होने पर उन्हें सुननी भी पड़ गईं। खैर थानेदार वहां से टल गए। सुनने वालों को लगा कि चलो, अब बात सार्वजनिक हो गई, कुर्सी छिन जाएगी। इस बात को भी एक सप्ताह गुजर गया। साहब फिर भी नहीं पसीजे। थानेदार की कुर्सी भी सलामत है। फिलहाल जाती हुई नहीं दिख रही।