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Jagran Column : एक्ट ने याद दिलाए दस्तावेज Bareilly News

पहली सितंबर से लागू हुए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद आरटीओ कार्यालय में जुटी भीड़ देखकर ऐसा लगा कि जैसे अब तक लोग सिर्फ गाडिय़ां ही चला रहे थे दस्तावेज बनवाना तो भूल ही गए।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 04:00 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 05:55 PM (IST)
Jagran Column : एक्ट ने याद दिलाए दस्तावेज Bareilly News
Jagran Column : एक्ट ने याद दिलाए दस्तावेज Bareilly News

 अभिषेक मिश्रा, बरेली : पहली सितंबर से लागू हुए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद आरटीओ कार्यालय में जुटी भीड़ देखकर ऐसा लगा कि जैसे अब तक लोग सिर्फ गाडिय़ां ही चला रहे थे, दस्तावेज बनवाना तो भूल ही गए। इस एक्ट ने आकर उन्हें याद दिलाया कि दस्तावेज भी जरूरी हैं भाई। गाड़ी चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस और व्हीकल रजिस्ट्रेशन जैसे दस्तावेज बनाने के लिए आपाधापी मच गई। लर्निंग लाइसेंस और परमानेंट लाइसेंस से लेकर दस्तावेजों को बनवाने के लिए आरटीओ कार्यालय में ऐसी भीड़ जुटी कि आवेदन के स्लॉट तक बढ़ाने की नौबत आ गई। महीने भर में 150 आवेदन लेने वाला विभाग 250 के आंकड़े को भी पार कर गया। इसके बावजूद आवेदकों की लंबी कतार है। अब सहूलियत कहें या दस्तावेजों के लिए आए आवेदनों का बोझ कम करने की जरूरत, विभाग के अधिकारी फिर एक बार स्लॉट बढ़ाने की जुगत बना रहे हैं, ताकि जल्दी लाइसेंस बनवाए जा सके।

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असली वेबसाइट है या नकली

परिवहन निगम ने पंद्रह तरह की सुविधाओं को ऑनलाइन करने के साथ ही सारथी वेबसाइट भी जारी कर दी। लोगों को इसके बारे में पता चला तो वेबसाइट पर धड़ाधड़ आवेदन भी शुरू हो गए। लेकिन तकनीक के जरिये होने वाला यह बदलाव साइबर ठगों के लिए सहालग से कम नहीं था। सारथी वेबसाइट से मिलती जुलते लिंक इंटरनेट पर नजर आने लगे। लर्निंग लाइसेंस बनवाना हो या परमानेंट, कौन सी वेबसाइट असली है और कौन सी नकली। पहचाना मुश्किल हो गया। मामला मंत्रालय तक गूंजा। कई तो नकली वेबसाइट के जरिए अपनी जानकारी साझा करके ऑनलाइन शुल्क भुगतान भी कर बैठे। ये मामले उस वक्त खुले जब आरटीओ कार्यालय में तय डेट पर लोग अपने लाइसेंस के टेस्ट देने के लिए पहुंचे। अब टेस्ट होता कहां से, क्योंकि आरटीओ ने तो डेट ही जारी नहीं की थी। मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद कुछ लिंक इंटरनेट से हटाए गए हैं।

कब बहुरेंगे टीपीनगर के दिन

दो दशक तक टीपीनगर परियोजना में करोड़ों लगाने के बाद भी ट्रांसपोर्टरों को यहां बसाहट के लिए लुभाया नहीं जा सका। 25 हेक्टेयर में फैले आठ ब्लॉक में ट्रांसपोर्ट नगर के 1074 प्लाट हैं। एक-दो साल नहीं, करीब एक दशक तक टूटी सड़क, बिजली-पानी किल्लत और शहर से कल-पुर्जों को लाने जैसी समस्याओं की आड़ में ट्रांसपोर्टर अपने लिए बसाए गए नगर में पहुंचे ही नहीं। जैसे नई दुल्हन का नैहर छूटता है वैसे ही लोग इस नगर को बसाने की आस छोड़ बैठे थे। बेधड़क शहर में दाखिल होने वाले ट्रकों की कतार शाहजहांपुर रोड और पीलीभीत रोड पर खड़े होना आम बात हो गई। सांसद, विधायक और जिलाधिकारी समेत प्रशासकीय अधिकारियों ने ट्रांसपोर्टर नगर में चौपालें भी लगाईं। ट्रांसपोर्टरों को मनाने की कोशिशें हुईं, लेकिन कोई हल कोई नहीं निकला। अब चंद ही ट्रांसपोर्टर इस नगर में दुकानें चला रहे हैं। अब देखे टीपीनगर के दिन कब बहुरेंगे।

नाम का ऑनलाइन हुआ आरटीओ

लाख कोशिशों के बावजूद परिवहन विभाग की ऑनलाइन व्यवस्था दलालों के मकडज़ाल को ध्वस्त नहीं कर सकी है। दलालों की सक्रियता का आलम यह है कि आवेदक इन्हीं के आगे-पीछे घूमते नजर आते हैं। कार्यालय के ऑनलाइन सर्वर के कमजोर नेटवर्क की वजह से भी दलालों की पैठ मजबूत है। आरटीओ ने बीएसएनएल को ऑप्टीकल फाइबर के बाद भी कनेक्टिविटी मजबूत नहीं मिलने के बारे में बताया, लेकिन सरकारी सिस्टम में तकनीक को मजबूत करने की जगह कम ही है। विभाग के ही एक बाबू बताते हैं कि कर्मचारियों के रिटायरमेंट के बाद दलालों से काम लेना कार्यालय की मजबूरी भी है। सिस्टम सिर्फ नाम के लिए ऑनलाइन हुआ है। ऑनलाइन हुई पंद्रह सुविधाओं का लाभ लेने के लिए आवेदकों को इसी कार्यालय तक आना होता है। यही से दलालों का मकडज़ाल शुरू होता है। जिसमें उलझे बिना कोई काम नहीं होता है। अब सिस्टम को दलाल प्रूफ बनाना होगा।


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