बरेली में सर्विलांस और एंबुलेंस के बीच फंसे संक्रमित, तीन से छह घंटे में होते है आइसोलेट
पॉजिटिव आने के बाद संबंधित व्यक्ति को खुले में नहीं रहने दें। उसे या तो होम आइसोलेट किया जाए या संस्थागत आइसोलेट करें। यह निर्णय जल्द लिया जाए।
बरेली, जेएनएन। पॉजिटिव आने के बाद संबंधित व्यक्ति को खुले में नहीं रहने दें। उसे या तो होम आइसोलेट किया जाए या संस्थागत आइसोलेट करें। यह निर्णय जल्द लिया जाए, जिससे वह किसी ओर के संपर्क में न आ सके। सीएम योगी आदित्यनाथ ने यह सब बातें एक दिन पहले ही मंडलीय समीक्षा के दौरान कहीं थी। जिले में ऐसा ही हो रहा है, सीएमओ ने सीएम को विश्वास दिलाया था। लेकिन यह हकीकत नहीं है। जिले में संस्थागत आइसोलेट होने वाले व्यक्ति को तीन, छह तो कभी 24-24 घंटे इंतजार करना पड़ता है। सर्विलांस टीम और एंबुलेंस टीम के बीच संक्रमित पिसता रहता है। इसकी मुख्य वजह दिखावे की एंबुलेंस हैं।
कागजों पर इनकी संख्या तो 86 दर्ज है, लेकिन कोविड कार्य के लिए मात्र 18 एंबुलेंस ही लगी हैं। संक्रमित को आइसोलेट करने की यह होती प्रक्रिया सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद जानकारी सीधे सर्विलांस टीम के पास जाती है। सर्विलांस टीम के सदस्य फोन कर व्यक्ति को बताते हैं कि वह संक्रमित हैं, इसलिए घर में ही रहें। अगर उनमें लक्षण है तो एंबुलेंस भेजकर उन्हें अस्पताल भेजा जाएगा। इसके बाद सर्विलांस टीम संक्रमित व्यक्ति का नाम, पता और मोबाइल नंबर एंबुलेंस प्रभारी को देती है। इसके बाद एंबुलेंस प्रभारी उस क्षेत्र में जो एंबुलेंस होती है उसे संक्रमित का रेफर लेटर देकर उसे आइसोलेट करने के लिए भेजते हैं।
इस प्रक्रिया में आधा घंटे से एक घंटे का समय लगता है। टीमों में तालमेल न होने से लगता समय इस मामले में जानकारी करने पर पता चला कि सर्विलांस टीम और एंबुलेंस टीम के बीच तालमेल की कमी होने से स्थिति बिगड़ती है। सर्विलांस टीम संबंधित संक्रमित का रेफर लेटर बनाने में ही आधा घंटे से एक घंटे का समय लगा देती है। इसके बाद एंबुलेंस प्रभारी तक लेटर पहुंचने में समय लगता है। इसके बाद 18 एंबुलेंस के संयोजन में यह चुनना होता है कि किस क्षेत्र में संक्रमित है वहां किसे भेजा जाए।कभी कभी एक एंबुलेंस के पास एक से अधिक केस होते हैं, ऐसे में काफी समय लग जाता है।
देहात क्षेत्र में होती बहुत परेशनी कोविड ड्यूटी में लगी 18 एंबुलेंस में ज्यादातर शहर में ही हैं। देहात क्षेत्र में जो एंबुलेंस हैं वह सामान्य कार्य में लगी हैं। ऐसे में वहां के संक्रमितों को आइसोलेट करने में दिक्कत होती है। एंबुलेंस प्रभारी इंद्रजीत ने बताया कि जब अधिक केस होते हैं तो सामान्य कार्य में लगी एंबुलेंस की ही मदद ली जाती है।
सिविल लाइंस के युवक को छह घंटे बाद मिली एंबुलेंस सिविल लाइंस निवासी एक युवक 31 जुलाई को संक्रमित आया था। स्वजनों ने उसे आइसोलेट कराने के लिए एंबुलेंस बुलाई। उस समय वह जिला अस्पताल में ही था। करीब तीन घंटे इंतजार के बाद एंबुलेंस नहीं आई तो वह घर चला गया। इसके बाद घर पर काफी देर फोन पर संपर्क करते रहे, लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंची। करीब छह घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची तब युवक को आइसोलेट किया गया।
तीन बजे आया फोन, आठ बजे पहुंची एंबुलेंस चार दिन पहले वीर सावरकर नगर निवासी एक अधेड़ की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। उन्हें तीन बजे करीब फोन कर जानकारी दे दी गई। सीएमओ को जानकारी दिए जाने के बाद भी एंबुलेंस नहीं पहुंची। कई बार बात करने पर एंबुलेंस रात आठ बजे पहुंची तब तक संक्रमित घर पर ही बना रहा।
आंकड़ों में समझिए स्थिति
102 एंबुलेंस : 43
108 एंबुलेंस : 43
एएलएस एंबुलेंस : 02
कोविड में लगी : 18
जिले में कुल 86 एंबुलेंस हैं। इनमें से मात्र 18 ही कोविड कार्य में लगी हैं। शासन के आदेश अनुसार काम हो रहा है। जरूरत पडऩे पर जो एंबुलेंस सामान्य कार्य में लगी हैं उनकी भी मदद ली जाती है। सर्विलांस की ओर से रेफर स्लिप मिलते ही संक्रमित को आइसोलेट करने के लिए टीम रवाना कर दी जाती है। - इंद्रजीत ङ्क्षसह,
एंबुलेंस प्रभारी संक्रमितों को आइसोलेट करने में दिक्कत आ रही हैं। एंबुलेंस पहुंचने में काफी समय लगता है। इसकी जानकाीर मिली है। इसके लिए सर्विलांस टीम और एंबुलेंस प्रभारी को बुलाकर जल्द मीङ्क्षटग की जाएगी। यह समस्या जल्द खत्म होगी। - डा. अशोक कुमार, जिला सर्विलांस अधिकारी