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बरेली की सात दशक पुरानी रामलीला का इतिहास, रेडियाे से याद करते थे डायलॉग, आटे से होता था श्रृंगार

Sheeshgarh Ramleela News बरेली की सात दशक पुरानी रामलीला का इतिहास बड़ा रोचक हैं। रेडियाे से डायलॉग याद करते थे आटे से श्रृंगार होता था। बच्चे बुजुर्ग सब मिलकर घर में रेडियो पर रामायण सुनते थे। बरेली में चौधरी तालाब में रामलीला का मंचन होता था।

By Jagran NewsEdited By: Ravi MishraPublished: Tue, 04 Oct 2022 09:56 AM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2022 09:56 AM (IST)
बरेली की सात दशक पुरानी रामलीला का इतिहास, रेडियाे से याद करते थे डायलॉग, आटे से होता था श्रृंगार
बरेली की सात दशक पुरानी रामलीला का इतिहास, रेडियाे से याद करते थे डायलॉग, आटे से होता था श्रृंगार

बरेली, जागरण संवाददाता। Sheeshgarh Ramleela News : बरेली के शीशगढ़ में पिछले सात दशक से होने वाली रामलीला का इतिहास भी बड़ा रोचक हैं, यहां रेडियो से डायलॉग याद किए जाते थे। इसके साथ ही कलाकारों का आटे से श्रृंगार किया जाता था। बच्चे, बुजुर्ग सब मिलकर घर में रेडियो पर रामायण सुनते थे।

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बरेली में चौधरी तालाब में रामलीला का मंचन होता था, लेकिन शीशगढ़ से यहां की दूरी अधिक होने की वजह से किसी का आना संभव नहीं होता था, लेकिन सभी के मन में रामलीला देखने की टीस रहती।

सात दशक पूर्व स्व. पंडित बंशीधर ने लोगों की कमेटी बनाकर गुलाबगंज रोड स्थित अपनी निजी जमीन पर रामलीला की शुरुआत कराई। रेडियो से रामायण के डायलग याद कर रामभक्त लीला में मंचन करते थे। 20 साल स्थानीय लोगों ने ही मंचन किया, इसके बाद बाहर से मंचन के लिए मंडली बुलाई जाने लगीं।

खुली जगह होने की वजह से बिना माइक के ही छंद और चौपाई की आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती थी। रामलीला कमेटी के कोषाध्यक्ष केपी शर्मा ने बताया कि 72 वर्ष पहले संसाधन न के बराबर थे। लीला में भूमिका निभाने वाले कलाकार अपने घर में ही दो महीने पहले से वस्त्र तैयार कराना शुरू कर देते थे।

अपने घरों से चटाई और दरी लेकर लोग रामलीला का मंचन देखने के लिए आते। धीरे-धीरे सुविधाएं बढ़ती गईं और रामलीला आधुनिक स्वरूप में पहुंच गई। जैसे-जैसे संसाधन बढ़े लाइट, जेनरेट और साउंड सिस्टम लगना भी शुरू हो गया। स्थानीय लोग दंगल के दीवाने थे। इसलिए रात में रामलीला और दिन में दंगल का आयोजन होता था।

इसमें दूर शहरों से पहलवान आकर अपना जोर अजमाकर वाह-वाही लूटते। रामलीला की सबसे खास बात है कि यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रही है। रामलीला के आयोजन में मुस्लिम लोगों का भी भरपूर सहयोग रहता है। आटा और बेसन से होता था कलाकारों का शृंगार।

उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में शृंगार के लिए तरह-तरह की सामग्रियां नहीं होती थीं। ऐसे में कलाकार आटा, मेदा, बेसन और मुल्तानी मिट्टी से शृंगार करते थे। शृंगार के लिए अपने घरों से आटा आदि देने के लिए लोग एक महीने पहले ही सहयोग के रूप में आयोजकों के साथ समन्वय में लग जाते थे।

अब बरेली बस अड्डे के पास होता है रामलीला का मंचन

उन्होंने बताया कि वर्ष 1985 में यह जमीन चकबंदी में आ गई। रामलीला का मंचन अब कहां होगा इसको लेकर आयोजकों में चिंता होने लगी। अधिकारियों के पास जाकर आए दिन इस संबंध में चर्चा होती और प्रार्थना पत्र दिए जाते। काफी मशक्कत के बाद रामलीला मंचन के लिए बरेली बस अड्डे के पास जगह सुनिश्चित की गई। तब से लगातार लीला का मचंन यहीं हो रहा है।


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