हिंदी है हम : विश्व की भाषा बनती जा रही है हिंदी Bareilly News
बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में पैर जमाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिंदी सिखा रही हैं। 70 करोड़ हिंदी भाषियों के साथ यह विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाला भाषा है।
बरेली, जेएनएन : हिंदी अपने स्वर्णिम कालखंड के प्रवेश द्वार पर खड़ी है। इंटरनेट और सिनेमा जगत ने हिंदी को विश्वव्यापी बना दिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में पैर जमाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिंदी सिखा रही हैं। 70 करोड़ हिंदी भाषियों के साथ यह विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाला भाषा है। आज भारतीय संस्थानों के अतिरिक्त विश्व के 138 विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का पठन-पाठन हो रहा है। कई देशों में हजारों विद्यार्थी हिंदी में शोध कार्य कर रहे हैं। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि हिंदी वैश्विक भाषा बनती जा रही है। दैनिक जागरण कार्यालय में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘हिंदी की दशा और दिशा’ विषयक परिचर्चा में शहर के प्रतिष्ठित एवं युवतम साहित्यसेवियों ने यह विचार व्यक्त किए।
सरकारी कार्यालयों में हिंदी को आसान बनाएं
प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न, विकल्पों में गलतियां देखने को मिलती हैं। इसमें सुधार हो। हिंदी प्रगतिशील है। बैंक, बीमा, न्यायालय आदि में जो हिंदी उपयोग होती है। वह काफी जटिल है। हिंदी भाषी भी उसे ठीक से समझ नहीं पाते। इस दिशा में नवीन शोध कार्य की आवश्यकता है। - गोविंद दीक्षित, हिंदी प्राध्यापक
शिक्षा पद्धति में हो बदलाव
मैकाले की शिक्षा पद्धति ने सबसे ज्यादा हिंदी को क्षति पहुंचाई। हिंदी के विकास के लिए हमें शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करना होगा। दूसरा, हिंदी को और विस्तार देने के लिए कुछ मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करनी होंगी। जैसे रुहेलखंड विश्वविद्यालय में आज तक हिंदी विभाग ही नहीं है। इस हालात में बदलाव के लिए सरकार को प्रयास करने होंगे। - रोहित राकेश, कवि
घर पर बच्चों को दें हिंदी के संस्कार
परीक्षा में हिंदी में उत्तर लिखने वाले को शिक्षक कम अंक देते हैं, जबकि वही उत्तर अंग्रेजी में लिखने वाले को अधिक अंक दिए जाते हैं। इस सोच में बदलाव की जरूरत है। हम घर पर हिंदी के संस्कार पैदा करें। दादी-नानी के साथ बच्चों को रखें। संस्कार वहीं से मिलेंगे। जब तक हम अपनी मां की सेवा नहीं करते तब तक दूसरे की मां की सेवा करना कोई परोपकार नहीं है। यह बात हमारी मातृभाषा हिंदी के लिए भी लागू होती है। - डॉ. अजय शर्मा, प्राचार्य बरेली कॉलेज
हिंदी को रोजगार से जोड़ने की जरूरत
हिंदी की लोकप्रियता बढ़ रही है। इंटरनेट ने इसे वैश्विक बना दिया। विश्व भर के लोग हिंदी सिनेमा देखने, गीत समझने के लिए हिंदी भाषा सीख रहे हैं। सिनेमा में भी साहित्य है। यहां बड़े साहित्यकार हैं, जिन्होंने हिंदी की सेवा कर विस्तार किया है। ई-बुक, वेब मैगजीन का क्रेज बढ़ा है। आज हिंदी को केवल रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। दूसरा न्यायालय की भाषा में सरल हिंदी का प्रयोग हो। - डॉ. सुरेश बाबू मिश्र, हिंदीसेवी
हिंदी हर भारतीय के मन की भाषा
आज हर बच्चा डॉक्टर-इंजीनियर बनना चाहता है। मगर हिंदी में इनकी पुस्तकें नहीं हैं। यह भी एक कारण है कि बच्चे अंग्रेजी की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। अगर बच्चों को शुरुआत से ही हिंदी भाषा की तरफ आकर्षित किया जाए तो वे हिंदी में मजबूत होंगे। दूसरी भाषा भी जान लेंगे। हिंदी हर भारतीय के मन की भाषा है। - आदित्य प्रकाश, शिक्षक
प्राथमिक स्तर से हिंदी पर दिया जाए ध्यान
शुरुआत में बच्चे हिंदी छोड़, विज्ञान, गणित को प्राथमिकता देते। बाद में जब वह प्रतियोगी परीक्षा में जाते हैं, तब उन्हें हिंदी की आवश्यकता पड़ती। असफलता की चिंता से वे कोचिंग भी लेते हैं। शुरुआत में हिंदी को भी दूसरे विषयों की तरफ समय दें, तो यह समस्या नहीं आएगी। - श्रुति सक्सेना, शिक्षक हिंदी
हिंदी सबसे आसान भाषा
हिंदी सर्वग्राही भाषा है। भारत में मुगलों, अंग्रेजों का शासन रहा। इस कारण उर्दू-इंग्लिश की जड़ें जम गईं। जबकि हिंदी सबसे आसान और सुग्राह्य है। इसे रोमन लिपि में भी लिखकर बोल सकते हैं। फिर भी स्थिति उलट है। बाहर हिंदी का बोर्ड और अंदर अंग्रेजी लिखी होती है। हिंदी के विकास के लिए घर पर हिंदी के संस्कार देने होंगे। - रणधीर प्रसाद गौड़, कवि
हिंदी बोलने पर हुआ था गांधीजी का विरोध
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर गांधीजी हिंदी में संबोधन कर रहे थे। तब छात्रों ने विरोध किया कि अंग्रेजी में बोलें। आज भी यही स्थिति है। आकाशवाणी में कार्यक्रम की सूची को क्यू शीट ही लिखा जा रहा था। बाद में रोमन में इसे क्यू शीट लिखा जाने लगा। अंग्रेजी या दूसरी भाषा के शब्दों को हम रोमन लिपि में लिखकर हिंदी में ढाल सकते हैं। - राजेश गौड़, पूर्व कार्यक्रम अधिकारी आकाशवाणी
समाचार पत्र निभाएं जिम्मेदार भूमिका
हिंदी के प्रचार-प्रसार में समाचार पत्रों की भूमिका अहम है। वे इसे और प्रभावी बना सकते हैं। आज इंटरनेट पर वेब पोर्टल, ई-पुस्तक लेखन का मंच मिलने से युवाओं में इसके प्रति रुचि बढ़ रही है। यह अच्छा सकते हैं। - मनोज दीक्षित, कवि
बच्चों को हिंदी माध्यम के स्कूलों में गर्व से पढ़ाएं, कुछ लोग बोल नहीं पाते
मैंने सिनेमा जगत में काम किया है। वहां लोग हिंदी-अंग्रेजी दोनों ही मूल रूप में नहीं जानते हैं। आज भी लोग सही हिंदी बोल नहीं पाते। खास बात यह कि बच्चों को गर्व से हिंदी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाएं। मैंने ऐसा किया और अनुभव सुखद रहा। - गुडविन मसीह, हिंदीसेवी
नकारात्मक चिंतन से बचना होगा
हिंदी के विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयास करें। नकारात्मक चिंतन छोड़ें। आज भी लोग गुलामी की मानसिकता में जकड़े हैं, इसलिए बेहतर होती हिंदी को समझ नहीं पा रहे। हिंदी की दशा पहले से बहुत बेहतर हुई है। हिंदी सर्वसमावेषी भाषा है। इसने मुक्त मन से हर भाषा को स्वीकारा। हिंदी भाषा की विविधता ही इसकी विशेषता है। युग के अनुरूप सरलता भी आवश्यक है। - डॉ. एसपी मौर्य, विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग, बरेली कॉलेज