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जर्मन के वैज्ञानिक भारतीय पुराणों और संहिता से विकसित कर रहे औषधि और प्रौद्योगिकी Bareilly News

जर्मनी के वैज्ञानिक भारतीय वेद पुराण संहिता आदि का अध्ययन कर औषधि और प्रौद्योगिकी आदि का विकास कर धन कमा रहे हैं। हमें अपनी विद्या शास्त्रों आदि के आधार पर विकास करना चाहिए।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 09:48 AM (IST)Updated: Sun, 29 Dec 2019 09:48 AM (IST)
जर्मन के वैज्ञानिक भारतीय पुराणों और संहिता से विकसित कर रहे औषधि और प्रौद्योगिकी Bareilly News
जर्मन के वैज्ञानिक भारतीय पुराणों और संहिता से विकसित कर रहे औषधि और प्रौद्योगिकी Bareilly News

जेएनएन, बरेली : भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में उपेक्षित गोधन अर्थव्यवस्था विषय पर वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस दौरान राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथेरिया ने उपेक्षित गोधन को फिर से उत्पादक बनाने की बात पर जोर देते हुए कहा कि जर्मनी के वैज्ञानिक भारतीय वेद, पुराण, संहिता आदि का अध्ययन कर औषधि और प्रौद्योगिकी आदि का विकास कर धन कमा रहे हैं। हमें अपनी विद्या, शास्त्रों आदि के आधार पर विकास करना चाहिए।

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गाय के महत्व को समझें

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और पशु पोषण संघ की ओर से आयोजित इस वर्कशॉप में मुख्य अतिथि डॉ. कथेरिया ने यह भी कहा कि आइंस्टीन ने डॉ. सीवी रमन से पूछा था कि भारतीय किसान गाय आधारित खेती कर रहे हैं या नहीं। इसी से भारतीय कृषि में गाय के महत्व को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान में पाया गया है कि घी मस्तिष्क की मृत कोशिका को पुनर्जीवित करता है।

गोवंश के संरक्षण पर दिया जोर

विशिष्ट अतिथि केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि आइवीआरआइ की पहचान देश ही नहीं विदेशों में भी है। उम्मीद जताई कि इस वर्कशॉप से उपेक्षित गोवंश के लिए कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा। उत्तर प्रदेश पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गो अनुसंधान संस्थान, मथुरा के कुलपति डॉ. जीके सिंह ने उपेक्षित गोवंश के संरक्षण पर बल देने को जरूरी बताया।

संस्थान की उपलब्धियां बताईं

आइवीआरआइ के निदेशक डॉ. राजकुमार सिंह ने संस्थान की उपलब्धियों पर रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि आइवीआरआइ में ही विश्व का प्रथम रिंडरपेस्ट टीका सन 1927 में बनाया गया था। तब से लेकर आज तक संस्थान ने पशु रोगों के उन्मूलन और नियंत्रण में टीकों का विकास कर प्रमुख भूमिका निभाई है। संचालन डॉ. अंजलि राणा और पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन के प्रभारी डॉ. ज्ञानेन्द्र कुमार गौड़ ने किया। कमिश्नर रणवीर प्रसाद, नवाबगंज के विधायक केसर भी मौजूद रहे।  


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