बरेली के अमीर परिवारों में बढ़ रहे जेंडर डिस्फोरिया के मरीज, खुुद को विपरीत लिंग का महसूस कर रहे रोगी
दरअसल जेंडर डिस्फोरिया वह डिसआर्डर है जिसमें इससे पीड़ित अपने लिंग से संतुष्ट नहीं होता। यदि वह लड़का है तो उसके अंदर लड़कियों के गुण होंगे। उसे लड़कियों तरह चलना कपड़े पहनना या मेकअप करने का शौक होगा।
बरेली, जेएनएन। मैं एक लड़की हूं, लेकिन मुझे मेरे शरीर में लड़कों वालों एहसास होता है। लगता है कुछ गड़बड़ हुआ है। मुझे इस शरीर में नहीं रहना। तो वहीं दूसरा कहता है, मेरा शरीर तो लड़कों का है... लेकिन मेरी भावनाएं लड़कियों वाली है। यह बताकर ये लोग कोई दिखावा या मजाक नहीं कर रहे है। बल्कि वह सही बोल रहे है। क्योंकि वे हकीकत में जेंडर डिस्फोरिया से जूझ रहे है। ये लोग वही बता रहे है जो वह महसूस करते है। मगर चौकानें वाली बात ये है कि इससे जूझने वाले अधिकांश लोग हाई क्लास फैमिली को ही ब्लांग करते है। जो इन दिनों मनकक्ष में पहुंचकर अपनी काउंसलिंग करा रहे है। इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि बरेली की हाई क्लास फैमिली में जेंडर डिस्फोरिया के मामले अधिक है।
दरअसल, जेंडर डिस्फोरिया वह डिसआर्डर है जिसमें इससे पीड़ित अपने लिंग से संतुष्ट नहीं होता। यदि वह लड़का है तो उसके अंदर लड़कियों के गुण होंगे। उसे लड़कियों तरह चलना, कपड़े पहनना, या मेकअप करने का शौक होगा। यदि वह लड़की है तो उसे लड़कियों की तरह रहने का शौक हाेगा। वह मर्दों की तरह बात करेगी, उनकी तरह कपड़े पहनेगी। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. आशीष ने बताया कि बरेली में इस तरह के केस हाई क्लास फैमिली में ज्यादा है। जिला अस्पताल में बीते जनवरी से लेकर अब तक करीब 15 केस ऐसे पहुंच चुके हैं जो जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित हैं। उसमें तीन केस ऐसे हैं जो अपने लिंग की सर्जरी कराने के लिए सर्टिफिकेट लेने आए थे। बाकी के लोग काउंसलिंग को पहुंचे है। इसमें से कोई भी केस मिडिल क्लास या लोअर क्लास फैमिली का नहीं था। सभी हाई क्लास फैमिली के थे।
जिला अस्पताल पहुंचने वाले ये हैं कुछ केस
केस नंबर एक : रिछा की रहने वाली एक 16 वर्षीय युवती अपनी मां के साथ जिला अस्पताल पहुंची। मां ने डाक्टर को बताया कि उनकी बेटी ने उनसे खुद कहा है कि वह लड़कों की तरह रहना चाहती है। उसे अपना शरीर पसंद नहीं है। जब से यह बात उन्हें पता लगी है वह परेशान है। उनका कहना है कि वह अब परिवार में यह बात कैसे बताएंगी। जब मैदानिक मनोवैज्ञानिक डा. खुशअदा ने काउंसलिंग की तो युवती जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित थी। इन दिनों दोनों की काउंसलिंग चल रही है।
केस नंबर दो : शहर का ही रहने वाले एक सरकारी कर्मचारी का 11 साल का बेटा लड़कियों की तरह हरकत करता है। उसके स्कूल टीचर ने स्वजनों से शिकायत की। कहा कि यह लड़का लड़कियों के साथ बैठता है। उन्हीं से दोस्ती करता है। हरकतें भी उन्हीं की तरह करता है। तब स्वजनों ने इसे गंभीरता से लिया और जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक से संपर्क किया। इसके बाद मनोवैज्ञानिक उसकी काउंसलिंग कर रही है।
केस नंबर तीन : शहर के बिजनेस मैन के बेटे की हरकत शुरू से ही लड़कियों वाली थी। जब वह 19 साल का हुआ तो उसने खुद ही अपने परिवार से बोल दिया कि वह लड़कियों की तरह जीना चाहता है। उसे लड़कों की जिंदगी नहीं जीनी। इस बात से परिवार वाले परेशान हो गए। उन्होंने तुरंत मनोचिकित्सक से बात की अब इन दिनों उनकी काउंसलिंग कराई जा रही है।
बरेली से बाहर के भी पहुंच रहे केस: डा. आशीष बताते है कि ऐसा नहीं है कि उनके जिला अस्पताल में केवल बरेली के ही केस पहुंच रहे है। बल्कि सहारनपुर, बदायूं, समेत अन्य तमाम इलाकों से भी लोग पहुंच रहे है।