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पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव, पूर्व छात्रसंघ अध्‍यक्ष ने सेक्युलर मोर्चा किया ज्‍वाइन

मुलायम के बेहद करीबी रहे पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव ने शुक्रवार को लखनऊ में शिवपाल यादव के आवास पर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा को ज्वाइन कर लिया।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 03:49 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 03:49 PM (IST)
पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव, पूर्व छात्रसंघ अध्‍यक्ष ने सेक्युलर मोर्चा किया ज्‍वाइन

बरेली(जेएनएन)। मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव ने शुक्रवार को लखनऊ में शिवपाल यादव के आवास पर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा को ज्वाइन कर लिया। उन्‍होंने बुधवार को प्रेसवार्ता कर समाजवादी पार्टी को अलविदा कहने का एलान किया था। साथ ही समाजवादी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। 

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पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव के साथ मलखान यादव, किशन लाल यादव, अशोक यादव, डॉ देवेंद्र सिंह जिला पंचायत सदस्‍य विनोद यादव, आदेश यादव प्रधान, जिला पंचायत सदस्‍य राजकुमार यादव, राजवीर सिंह यादव प्रधान, ठाकुर संतोष सिंह, जमुना प्रसाद मौर्य, अजय यादव, परमवीर प्रधान, प्रेमपाल आजाद, मुनेंद्र यादव, योगेंद्र सिंह, भारत यादव, कंचन यादव आदि 50 लोगों ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा को ज्वाइन किया है।

बता दें कि सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव लंबे समय तक बरेली में पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे थे। दो दिन पहले अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि जिस पार्टी को पसीना बहाकर सींचा था, उसे छोड़ते हुए दुख हो रहा है लेकिन मजबूर हूं। अब यहां बुजुर्गों का सम्मान नहीं रह गया है। अनुशासनहीनता चरम पर है।

पूर्व छात्रसंघ अध्‍यक्ष ने भी थामा सेक्युलर मोर्चा का दामन

रुहेलखंड विश्‍वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पूर्व सदस्य शिवप्रताप सिंह ने भी समाजवादी पार्टी छोड़कर शिवपाल सिंह यादव के सेक्युलर मोर्चा का दामन थाम लिया है। शिव प्रताप अखिलेश यादव के करीबी युवा नेताओं में माने जाते थे। शिव प्रताप जिला इटावा की तहसील जसवंत नगर के रहने वाले हैं और 15 वर्षों से सपा से जुड़े हुए थे। शिव प्रताप का कहना है कि पार्टी के लिए हर मंच पर हर अन्दोलन मे हिस्सा लेने के बाबजूद पार्टी मे कोई दायित्‍व नहीं दिया गया। लगातार उनकी उपेक्षा की जा रही थी। कई बार पार्टी के शीर्ष नेताओं को इस बात से अवगत कराया गया। इसके बाद भी कोई उचित फैसला नहीं लिए जाने की वजह से पार्टी छोड़ने का फैसला लेना पड़ा।


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