कृषि को उद्योग माने बिना किसानों का भला नहीं : साहनी
केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में दो हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानों को प्रतिवर्ष आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
जेएनएन, बरेली : केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में दो हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानों को प्रतिवर्ष 6000 रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। पहली बार केंद्र सरकार ने किसानों के लिए ऐसी योजना बनाई है।
हालांकि, तेलंगाना, उड़ीसा में राज्य सरकारें पहले से और इससे अधिक राशि की मदद किसानों को दे रही हैं। किसान उपज का उत्पादक है, फिर भी मूल्य निर्धारण का, बिक्री का अधिकार नहीं है।
कृषि को उद्योग माने बिना किसानों को सक्षम बना पाना मुश्किल है। ऐसी मदद तो उन्हें और मोहताज बना देगी। यह बेबाक विचार प्रगतिशील किसान अनिल साहनी ने सोमवार को जागरण विमर्श में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि तेलंगाना में ऋतुबंधु योजना में 8000 रुपये प्रति एकड़ और उड़ीसा सरकार कालिया योजना में 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की मदद देती है। केंद्र के 6000 रुपये के आधार पर प्रतिमाह केवल 387 रुपये प्रति बीघा आएगा।
जबकि, उसकी लागत व अन्य खर्च कहीं अधिक होते हैं। राज्यों में भू-राजस्व डाटा अपडेट न होने, बंटवारे व नामांतरण के विवाद से प्रक्रिया भी और जटिल हो जाती है। गुणवत्ता और प्रसंस्करण के लिए प्रेरित करें
सरकारी योजना उत्पादन बढ़ाने की होती, जबकि किसानों को गुणवत्ता व प्रसंस्करण के लिए प्रेरित करना चाहिए। किसान खुद पैकेजिंग कर उपज बेचे। तभी किसान बिचौलियों, आढ़तियों को बेहद कम मूल्य पर उपज बेचने को मजबूर नहीं होगा। अधिकारी गांवों में जमीनी फीडबैक भी लें। ऐसे प्रलोभनों से किसान वोट नहीं देता
केंद्र की घोषणा पर कहा कि जिस वक्त यह मदद का एलान हुआ, उसका सीधा लक्ष्य चुनाव में किसानों को लुभाने का प्रतीत होता है। गांव का किसान इन सबसे वोट नहीं देता। इसके पीछे कई कारण होते हैं।