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जागरण विमर्श : आर्थिक मंदी पर विशेषज्ञों ने किया मंथन, जानें इसकी वजह Bareilly News

सरकार ने इसका संज्ञान भी लिया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इससे उबरने की पहल की है। एफडीआइ ऑटो सेक्टर में कई सुधार किए गए हैं। बैंकिंग समेत अन्य क्षेत्र जहां सुधार की गुंजाइश बाकी रह गई है। उन पर भी मंथन किया जा रहा है।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Tue, 27 Aug 2019 11:08 AM (IST)Updated: Tue, 27 Aug 2019 05:27 PM (IST)
जागरण विमर्श : आर्थिक मंदी पर विशेषज्ञों ने किया मंथन, जानें इसकी वजह Bareilly News
जागरण विमर्श : आर्थिक मंदी पर विशेषज्ञों ने किया मंथन, जानें इसकी वजह Bareilly News

बरेली, जेएनएन : 'आर्थिक मंदी'... अर्थशास्त्र का बेहद बड़ा शब्द। सोशल मीडिया से लेकर पूरे देश में इसको लेकर तमाम चर्चाएं हैं। मगर, असल में आर्थिक मंदी जैसी कोई बात ही नहीं है। हां, सरकारी नीतियों व नियमों में बदलाव से कुछ सेक्टर जरूर प्रभावित हैं। जिससे अर्थव्यवस्था में स्लो डाउन (सुस्ती) है।

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सरकार ने इसका संज्ञान भी लिया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इससे उबरने की पहल की है। एफडीआइ, ऑटो सेक्टर में कई सुधार किए गए हैं। बैंकिंग समेत अन्य क्षेत्र जहां सुधार की गुंजाइश बाकी रह गई है। उन पर भी मंथन किया जा रहा है।

ऐसे में उम्मीद है कि जल्द ही स्थितियां में बदलाव भी दिखने शुरू हो जाएंगे। अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। यह कहना है, साहू रामस्वरूप महिला महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर पूनम सिंह का। आर्थिक मंदी से कैसे बचें? विषय पर सोमवार को आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में उन्होंने ये बातें कही। इस मौके पर सचिन हुंडई के डायरेक्टर सचिन भसीन ने ऑटोमोबाइल सेक्टर में वर्तमान स्थितियों के कारणों पर प्रकाश डाला।

रियल स्टेट कारोबार चौपट होने से उपजी समस्या
प्रो. पूनम सिंह ने बताया कि आर्थिक सुस्ती की मुख्य वजह है, रियल स्टेट कारोबार का चौपट होना। 2011-12 में अधिकांश लोगों ने रियल स्टेट में पैसा लगाया। मगर धीरे-धीरे पैसों की सुगमता कम हो गई। वहीं, नोटबंदी, जीएसटी और रेरा लागू होने के बाद कालाधन का निवेश और फर्जी अभिलेख से बिक्री पर भी अंकुश लग गया। जिससे रियल स्टेट कारोबार एकदम से कम गया। वहीं, सचिन भसीन भी रियल स्टेट के कारण अन्य सेक्टर के प्रभावित होने और बाजार में सुस्ती छाने की बात को तार्किक मानते हैं।

मंदी को ऐसे समझें
प्रो. पूनम सिंह ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के चार पहलू है। पहला उपभोक्ता, दूसरा उत्पादक, तीसरा सरकार और चौथा विदेशी विनिमय। इनमें से एक भी प्रभावित होता है तो अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ता है। वर्तमान में देखा जाए तो आम आदमी उतना ही कमा और खर्च कर रहा है, जितना पहले कर रहा था। आर्थिक मंदी तब होगी, जब मांग, मूल्य और रोजगार तीनों कम हो जाए। मसलन, रोजगार न होने पर आदमी खर्चों में कटौती करेगा। जिससे बाजार में मांग और फैक्ट्रियों में उत्पादन घट जाएगा।

बैंकिंग सेक्टर से शुरू होती है मंदी
प्रो. पूनम सिंह ने बताया कि आर्थिक मंदी की शुरूआत तब होती है जब बैंकिंग सेक्टर धाराशायी हो जाए। 2008 में अमेरिका में आई मंदी इसका उदाहरण है। जब नॉन प्रॉफिट एस्सेट (एनपीए) बढऩे से बैंकिंग सेक्टर चरमरा गया। कई लोग सेंसक्स में गिरावट को मंदी मान लेते हैं, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में सेंसेक्स का अर्थव्यवस्था पर ज्यादा प्रभाव नहीं होता। हां, देश की सेविंग रेट कम होना चिंता का विषय है। जो पांच साल में पांच फीसद गिरकर 13 तक पहुंच गई है।

सरकारी प्रावधानों में बदलाव से लड़खड़ाया ऑटो सेक्टर
सचिन हुंडई के डायरेक्टर सचिन भसीन ने बताया कि दो-तीन साल पहले सरकार ने वल्र्ड बैंक के कारण प्रदूषण से जुड़े कुछ प्रावधान ऑटो सेक्टर में जोड़े थे। जिसके तहत निर्माता कंपनियों को बीएस-3 की जगह बीएस-4 वाहन बनाने थे। आगे बीएस-6 वाहन चलेंगे। इसे लेकर निचले व मध्य वर्ग में असमंजस है कि पुरानी कारें नहीं चलेगी। इसलिए ऑल्टो, सेंट्रो जैसी छोटी गाडिय़ों की मांग घट गई। जबकि उच्च वर्ग के जागरूक होने के कारण मांग अभी भी है। उदाहरण के तौर पर एमजी और किया कंपनी इंडिया आई तो उसकी सारी गाड़ी बुक हो गई। सरकार ने ऑटो सेक्टर को उबारने के लिए प्रावधानों में सुधार किया है। 


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