Health 2019 : मलेरिया, डेंगू ने बरपाया कहर, संसाधनों से जूझता रहा विभाग Bareilly News
एक जनवरी 2019 की सुबह आई तो स्वास्थ्य विभाग पिछले साल की कड़वी हकीकत को पीछे छोड़ नई उम्मीद से लबरेज था।
जेएनएन, बरेली : एक जनवरी 2019 की सुबह आई तो स्वास्थ्य विभाग पिछले साल की कड़वी हकीकत को पीछे छोड़ नई उम्मीद से लबरेज था। आस थी कि मलेरिया, फाल्सीपेरम, डेंगू ने प्रदेश भर में जिले की जो खराब छवि गढ़ी, वह टूटेगी। अफसरों ने इसका संकल्प भी लिया। मगर, ऐसा हो न सका। पूरे साल विभाग खतरनाक बुखार, संसाधनों की कमी और मरीजों के बढ़ते भार से जूझता रहा। केवल आयुष्मान योजना का लाभ दिलाने में शीर्ष स्थान की उपलब्धि ही हाथ में है। महकमे के हाल पर विस्तृत रिपोर्ट।
आयुष्मान योजना में मिला सर्वोच्च स्थान
आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना के तहत जिले में 2.66 लाख पात्र परिवार हैं। इनमें से करीब 24 हजार परिवारों को इसी योजना के अंतर्गत निश्शुल्क इलाज मुहैया कराया जा चुका है। अफसरों का दावा है कि जिला प्रदेश में सबसे अधिक परिवारों को लाभ दिलाने में शीर्ष स्थान पर रहा है। इसके लिए बीते दिनों सीएमओ सम्मानित भी किए गए। लाखों लोगों को गोल्डन कार्ड भी वितरित किए जा चुके हैं।
ये काम धरातल पर नहीं उतरे
300 बेड अस्पताल : सुपर स्पेशयलिटी हॉस्पिटल विभाग के सुपुर्द नहीं हो सका। इसमें जिला अस्पताल शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई, लेकिन काम नहीं हुआ।
शुरू न हुआ डीएनबी कोर्स : यह कोर्स इस वर्ष शुरू नहीं हो सका। मेडिसिन विषय में एक मात्र छात्र ने प्रवेश लिया। पीजी में किसी अन्य जगह चुने जाने पर उसने भी कोर्स छोड़ दिया। जिला अस्पताल पूरी तरह ई-हॉस्पिटल नहीं बन पाया।
साल भर में बढ़े तीस हजार मरीज
जिला अस्पताल की ओपीडी में साल भर में करीब तीस हजार मरीज बढ़े। वर्ष 2018 में नवंबर तक करीब 5.10 लाख मरीजों ने डॉक्टरों को दिखाया था। इस वर्ष नवंबर तक करीब 5.39 लाख मरीज आए। रोजाना करीब चार हजार नए-पुराने मरीज ओपीडी में पहुंच रहे हैं।
संसाधनों में नहीं हुई वृद्धि
संसाधन के नाम पर जिला अस्पताल को साल भर में महज एक एक डिजिटल एक्स-रे मशीन ही मिली। पोर्टेबल मशीन होने के कारण इससे भर्ती मरीजों के एक्स-रे में आसानी हुई। जबकि, आइसीयू अब तक नहीं शुरू हो पाया। ई-रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था कुछ दिन चलकर ही बंद हो गई।
डॉक्टरों की संख्या भी घटी
जिला अस्पताल साल भर डॉक्टरों की कमी से जूझता रहा। उस पर भी तीन डॉक्टर अस्पताल से चले गए, जबकि नए सिर्फ एक ही आए। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एसके सागर सेवानिवृत्त हो गए, वहीं डॉ. एसएस चौहान को शासन ने निलंबित कर दिया था। डॉ. केबी पाठक का निधन हो गया। लंबे वक्त के बाद एक डॉक्टर चर्म रोग विशेषज्ञ यहां आए।
फार्मासिस्ट के तबादले हुए लेकिन यहां पर नहीं आए
जिला अस्पताल में कुछ समय पहले तक 18 फार्मासिस्ट की तैनाती थी। परन्तु बीते दिनों सात फार्मासिस्ट का तबादला हो गया। इसके बाद सिर्फ 11 ही बचे, जबकि अन्य जिलों से स्थानांतरित हुए फार्मासिस्ट यहां आए ही नहीं। ऐसे में मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
ये सुविधाएं बढ़ीं
जो सुविधाएं मिलीं उनमें हाईटेक पैथोलॉजी लैब है। इसमें खून की करीब 35 प्रकार की जांचें होती हैं। एक बार में करीब 50 सेंपल की जांच अत्याधुनिक मशीनों से हो सकती है। इसके साथ ही डिजिटल एक्स-रे की दो मशीनें मिलीं। दस बेड की हिमोडायलिसिस यूनिट भी बनाई गई है। बुजुर्गो को एल्डर्ली वार्ड में कई सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।
विशेषज्ञ की बनी रही कमी
मार्च 2016 के बाद से कोई हृदयरोग विशेषज्ञ नहीं है। न्यूरो फिजिशियन भी यहां नहीं हैं। मनोरोग, यूरो सर्जन, न्यूरो सर्जन, न्यूरोफिजिशियन, नेफ्रॉलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन, डेंटल सर्जन भी नहीं हैं। एक-एक फिजिशियन, रेडियोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, निश्चेतक और नाक, कान, गला विशेषज्ञ की भी कमी है।
अपना जिला आयुष्मान योजना में प्रदेश भर में अव्वल रहा है। इसके साथ ही इस वर्ष हीमोडायलिसिस यूनिट, एल्डर्ली वार्ड भी शुरू कराए गए। मरीजों की संख्या बढ़ी, लेकिन संसाधन कम हुए। बावजूद इसके सभी को इलाज दिया गया। महिला अस्पताल में सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएससीयू) बनी और गांवों में 83 हेल्थ एंव वेलनेस सेंटर खोले गए। डॉक्टर और अन्य स्टाफ कम हुआ।
- डॉ. विनीत शुक्ला, सीएमओ
मरीजों की संख्या बढ़ी, वही डॉक्टरों व फार्मासिस्टों की संख्या में कमी हुई। इस साल भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं मिल पाए। जांच की सुविधा बढ़ी। कई तरह के रोगों की जांच आसान हुई। सटीक जांच व बेहतर इलाज के कारण ही इस साल मलेरिया व डेंगू के एक भी मरीज की मौत नहीं हुई।
- डॉ. टीएस आर्य, अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक, जिला अस्पताल
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