कोरोना के विजेता : इतना रखा ख्याल, लगा नहीं अस्पताल में हैं
कोरोना को मात देकर रामनगर सिरौली के मो. सलीम मीरगंज के राशिद बेग और बिहारीपुर के फुरकान घर पहुंच चुके हैं। इन्हें गुरुवार को ही बिथरी चैनपुर के कोविड एल-1 अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। फिलहाल तीनों खुद को क्वारंटाइन किए हुए हैं। अस्पताल में बिताए 14 दिन उनके लिए इतने यादगार होंगे उन्होंने कल्पना तक न की थी। घर लौटकर अस्पताल के स्टाफ के अच्छे व्यवहार की तीनों ने खुलकर तारीफ की। उनका यही कहना था कि लगा ही नहीं कि वे अस्पताल में भी उन्हें घर-परिवार सा माहौल मिला। डॉक्टरों और पूरे स्टाफ ने उनका मनोबल बढ़ाया और पूरी आत्मीयता से उनसे नाता जोड़ा। दैनिक जागरण से उन्होंने अपने अनुभव साझा किए।
बरेली, जेएनएन : कोरोना को मात देकर रामनगर सिरौली के मो. सलीम, मीरगंज के राशिद बेग और बिहारीपुर के फुरकान घर पहुंच चुके हैं। इन्हें गुरुवार को ही बिथरी चैनपुर के कोविड एल-1 अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। फिलहाल तीनों खुद को क्वारंटाइन किए हुए हैं। अस्पताल में बिताए 14 दिन उनके लिए इतने यादगार होंगे, उन्होंने कल्पना तक न की थी। घर लौटकर अस्पताल के स्टाफ के अच्छे व्यवहार की तीनों ने खुलकर तारीफ की। उनका यही कहना था कि लगा ही नहीं कि वे अस्पताल में भी उन्हें घर-परिवार सा माहौल मिला। डॉक्टरों और पूरे स्टाफ ने उनका मनोबल बढ़ाया और पूरी आत्मीयता से उनसे नाता जोड़ा। दैनिक जागरण से उन्होंने अपने अनुभव साझा किए। हर बात का ध्यान रखता था स्टाफ
फुरकान और राशिद ने बताया कि मुंबई से लौटने के बाद वे सीधे अस्पताल पहुंचे तो डर था कि वहां पता नहीं कैसे रहेंगे। पर, अस्पताल के स्टाफ ने उनकी सोच ही बदल दी, डर बिल्कुल निकल गया। सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक कई बार उनका चेकअप होता था। सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना, बीच में दूध, फल हर रोज समय से मिलते थे। स्टाफ के लोगों का व्यवहार ऐसा था जैसे घर के लोग आपस में रह रहे हों। 'भाई मेरी रिपोर्ट अभी नहीं आई'
फुरकान समेत एक कमरे में पांच लोग थे। इनमें तीन पीलीभीत, एक शाहजहांपुर का युवक था। साथ रहने के दौरान पांचों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। पीलीभीत के तीनों युवक दो दिन पहले चले गए थे। जबकि फुरकान और शाहजहांपुर के युवक के सैंपल साथ गए थे। फुरकान की दूसरी रिपोर्ट आ गई लेकिन उस युवक की नहीं आई। फुरकान के घर आने के बाद शुक्रवार दोपहर शाहजहांपुर के युवक का उसके पास फोन आया। बोला- 'तुम सब अकेला छोड़ गए, मेरी रिपोर्ट अब तक नहीं आई। चिता हो रही है..।' इस पर फुरकान ने उसे ढांढस बंधाया कि वह भी जल्दी घर पहुंच जाएगा। मुंबई में था डर का माहौल
लॉकडाउन में फुरकान मुंबई में अपने भाई के साथ डेढ़ माह फंसे रहे। फुटपाथ पर रहना और मांगकर खाना मजबूरी बन गई थी। रिश्तेदारों से लेकर फैक्ट्री मालिक तक ने हाथ खड़े कर दिए थे। मुंबई से बमुश्किल लौटे। जब यहां पहुंचे तो घर जाने के बजाय फुरकान सीधे अस्पताल पहुंचे। वह बताते हैं कि दो दिन बाद ही सब अच्छा लगने लगा। 14 दिन ऐसे बीते कि डेढ़ महीने मुंबई में फंसे होने का दर्द भूल गया। सबसे अलग बनाया आशियाना
मीरगंज के राशिद बेग अब भी परिवार के साथ नहीं रह रहे। उन्होंने गांव के बाहर खेतों के किनारे बने घर में अपना डेरा जमाया है। कहते हैं कि अब 20 दिन यहां रहूंगा। उसके बाद काम-धंधा देखूंगा। मुंबई जाने के बारे में तो सोचना तक नहीं है। जो भी काम मिलेगा, यहीं करूंगा। बताया कि अस्पताल में सभी ने अच्छा व्यवहार किया।