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किसानों के लिए 'हरा सोना' बनी नेपियर घास

मेरे देश की धरती.. सोना उगले उगले हीरे मोती..।

By Edited By: Published: Fri, 26 Apr 2019 12:32 AM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 08:33 PM (IST)
किसानों के लिए 'हरा सोना' बनी नेपियर घास

दीपेंद्र प्रताप सिंह, बरेली : मेरे देश की धरती.. सोना उगले, उगले हीरे मोती..। वर्ष 1967 में रिलीज हुई मशहूर अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म उपकार का यह गाना जिले के तमाम गांवों में पशुपालकों के लिए सच साबित हुआ है। वजह बनी भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में पनपी संकर नेपियर घास। गन्ने सी दिखने वाली नेपियर घास आज तमाम किसानों के लिए 'हरा सोना' बनकर जमीन से निकल रही है। साल के अधिकांश महीनों में हरा चारा की समस्या से जूझ रहे करीब 450 किसान अब गुणवत्ता से भरपूर चारा हासिल कर रहे। अन्य चारा फसलों की तुलना में संकर नेपियर से अधिक हरा चारा मिलने के साथ ही इसमें यह रोग-कीट की आशंका बेहद कम है। पूरा पौधा हरा रहता। वहीं, मेड़ पर बोने से सिंचाई के पानी की बचत होती है। इससे दूध उत्पादकता भी बढ़ रही और किसानों की आमदनी भी।

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इसलिए हरा सोना का बनी पर्याय

हरा चारा की उपलब्धता बरेली समेत पूरे देश में काफी कम है। साल के लगभग चार महीने (अप्रैल से मई तथा सितंबर से नवंबर का पहला हफ्ता) हरा चारे की कमी रहती है। ज्यादा किल्लों के साथ तेजी से बढ़ने वाली नेपियर घास साल में करीब 2.5 से तीन हजार क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर में होती है। यह 40 दिन में चार से पांच फुट ऊंची हो जाती है। इसके एक पौधे में 80 से अधिक किल्ले निकलते हैं। इससे अप्रैल, मई के अलावा सितंबर और अक्टूबर के महीनों में महज उन किसानों के पास हरा चारा रहता है, जिन्होंने नेपियर की खेती करी है।

ग्रेम गांव दूसरों के लिए मिसाल

नवाबगंज तहसील के ग्रेम गांव के लोगों ने सबसे पहले हरा चारा की समस्या देख आइवीआरआइ जाकर वैज्ञानिकों से संपर्क किया। हालिया इजाद नेपियर घास बोने का सुझाव मिला। काफी नकारात्मक बातें सुनते हुए कुछ ग्रामीणों ने शुरूआत की। अब खेतों में आधा बीघा से लेकर चार-चार बीघा क्षेत्र यानी कुल 40 बीघा जमीन पर संकर नेपियर घास की खेती हो रही। अब दूसरे गांवों के किसानों के लिए भी ग्रेम गांव मिसाल बन गया।

ये कहते हैं आंकड़े

कृषि विज्ञान केंद्र में मौजूद वर्ष 2013-14 की रिपोर्ट के अनुसार, बरेली जनपद की चारा फसलों में रबी, खरीफ और जायद में करीब 1.02, 1.54 तथा 0.78 प्रतिशत क्षेत्र में हरा चारा। जबकि 19वीं पशुगणना के अनुसार, बरेली जनपद में कुल 11.25 लाख पशु थे। यानी, पशुओं की संख्या के अनुरूप हरा चारा मौजूद नहीं था।

धान का भूसा नुकसानदायक साबित

केवीके से प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बीपी सिंह बताते हैं कि गेहूं का भूसा खत्म होने पर अधिकतर किसान सूखे चारे के तौर पर धान की पुआल पर निर्भर रहते हैं। इसमें प्रोटीन, फास्फोरस कम और सिलिका की मात्रा ज्यादा होती है। सिलिका की पाचकता कम होती है। इससे पशु के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


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