World Theater Day : दूसरे दौर में भारतीय रंगमंच के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया बरेली का रंगमंच Bareilly News
नैतिक मूल्यों की स्थापना और समाज की विषमताओं को दर्शकों के सामने बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने का सबसे सशक्त माध्यम है रंगमंच।
बरेली, अनुपम निशान्त : नैतिक मूल्यों की स्थापना और समाज की विषमताओं को दर्शकों के सामने बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने का सबसे सशक्त माध्यम है रंगमंच। बरेली देश के उन गिने-चुने शहरों में से एक है जिसने भारतीय रंगमंच के इतिहास में अपनी खास जगह बनाई। शहर में रंगमंच ने तीन दौर देखे हैं। पहला दौर जब पारसी थिएटर शुरू हुआ, जब शेक्सपियर के नाटकों का मंचन होता था और फिर बरेली के मौलवी करीमुद्दीन ने इसे भारतीय रूप दिया।
दूसरे दौर में बरेली के पं. राधेश्याम कथावाचक का दौर आया। जब 1927 में उनके लिखे उर्दू नाटक ‘मशरिकी हूर’ ने धूम मचा दी। धीरे-धीरे ये दौर दास्तानों से होता हुआ पौराणिक कथाओं में दाखिल हुआ। बरेली का रंगमंच तीसरे दौर में प्रवेश कर चुका है। अब बरेली में अंतरराष्ट्रीय नाट्य महोत्सव होते हैं। शहर के रंगकर्म में जीवन की लोक-लय तो है ही, देसी बोली-बानी का मोह भी।
बरेलीवासियों के लिए यह गौरव की बात है कि शहर ने इस सांस्कृतिक विरासत को सिर्फ सहेजा ही नहीं, आगे भी बढ़ाया है। बीसवीं सदी के आरंभ में जब देश के चुनिंदा शहरों में ही रंगमंच पर नाटक मंचित होते थे, राधेश्याम कथावाचक ने इसे ऊंचाई दी। बरेली के रंगमंच की ख्याति दूर-दूर फैल गई। उनके लिखे वीर अभिमन्यु (1915), श्रवणकुमार (1916), परमभक्त प्रहलाद (1917), परिवर्तन (1917), श्रीकृष्ण अवतार (1926), रुक्मिणी मंगल (1927), मशरिकी हूर (1927), महर्षि वाल्मीकि (1939), देवर्षि नारद (1961) ने पेशावर, लाहौर और अमृतसर, दिल्ली से लेकर ढाका तक धूम मचा दी।
खास बात यह कि आज के स्मार्टफोन के दौर में भी बरेली में रंगमंच की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। इसकी बानगी हर साल शहर में होने वाले इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल में देखने को मिलती है। जिसमें बांग्लादेश, श्रीलंका समेत अन्य देशों से कलाकार जुटते हैं।
प्रमुख संस्थाएं व रंगकर्मी
शहर में ऑल इंडिया कल्चरल एसोसिएशन, रंग विनायक रंगमंडल, रंग प्रशिक्षु समेत एक दर्जन से अधिक संस्थाए रंगमंच के क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं। वहीं, जेसी पालीवाल, डॉ. ब्रजेश्वर सिंह, अंबुज कुकरेती, राकेश श्रीवास्तव, अमित रंगकर्मी, राजेंद्र सिंह, गरिमा सक्सेना, मोहनीश हिदायत, बृजेश तिवारी, लव तोमर, संजय मठ, मीना सोंधी समेत करीब दो सौ रंगकर्मी है। बरेली में मानव कौल सरीखे कलाकार आकर रंगमंच पर अपनी अदाकारी दिखा चुके हैं। इनके अलावा बरेली आने वालों में सुधीर पांडेय, रघुबीर यादव, कुलभूषण खरबंदा, कुमुद मिश्र आदि शुमार हैं।
हिंदू टॉकीज में आए थे पृथ्वीराज
बरेली के रंगमंच ख्याति दूर-दूर तक फैली तो वर्ष 1955 में हिंदू टॉकीज के मालिक नरेंद्र कपूर के बुलावे पर मुंबई से पृथ्वीराज कपूर भी यहां नाटक खेलने आए। राज कपूर और शम्मी कपूर भी उनके साथ आए थे। तब हिंदू टॉकीज में ‘पठान’ नाटक का मंचन हुआ था।
नई पहचान दे रहा विंडरमेयर थियेटर
रंगमंच को नई पहचान देने के लिए डॉ. ब्रजेश्वर सिंह ने विंडरमेयर थियेटर शुरू किया। डॉ. ब्रजेश्वर बताते हैं कि वर्ष 2009 में ललित कपूर के साथ मिलकर करीब 200 से अधिक कलाकारों के ऑडिशन लिए। इसमें से 30 रंग कर्मियों का चयन किया गया। जिनके साथ मिलकर रंग विनायक रंगमंडल बनाया। वहीं, 13 साल से लगातार थियेटर फेस्ट का आयोजन किया जा रहा है।विंडरमेयरसे निकले कई कलाकार आज बॉलीवुड से लेकर टीवी इंडस्ट्री में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। इनमें सृष्टि माहेश्वरी, नेहा चौहान और शिवा आदि हैं।
संजय कम्युनिटी हॉल ने दिया नया आयाम
1986 में संजय गांधी कम्युनिटी हॉल की स्थापना हुई। रंगकर्मियों को बेहतर प्लेटफार्म मिल सके इसलिए प्रशासन से निश्शुल्क हॉल देने की गुहार लगाई गई। तत्कालीन अधिकारियों ने भी रंगमंच की इस जरूरत को समझा और रंगकर्मियों के लिए नए द्वार खोल दिए।