Somatofoam Disorder : बरेली में युवा हो रहे 'वहम' की बीमारी का शिकार, अस्पताल में आ रहे सोमेटोफोम डिसआर्डर के मरीज
Somatofoam Disorder बात-बात पर इंटरनेट का उपयोग किस तरह बीमार बना रहा ये तीन उदाहरण इसका प्रमाण है। मनोचिकित्सक बताते हैं कि सामान्य बीमारी पर भी वीडियो देखकर खुद ही उपचार का प्रयास वहम पैदा कर रहा । चिकित्सक इसे सोमेटोफोम डिसआर्डर बताते हैं।
बरेली, रजनेश सक्सेना। Somatofoam Disorder : बरेली बात-बात पर इंटरनेट का उपयोग किस तरह बीमार बना रहा, ये तीन उदाहरण इसका प्रमाण है। मनोचिकित्सक बताते हैं कि सामान्य बीमारी पर भी वीडियो देखकर खुद ही उपचार का प्रयास वहम पैदा कर रहा । चिकित्सक इसे सोमेटोफोम डिसआर्डर बताते हैं। कोरोना काल से पहले सप्ताह में एक-दो मरीज आते थे। अब प्रतिदिन एक मरीज जिला अस्पताल के मनकक्ष पहुंच रहा।मनोचिकित्सक डा. आशीष बताते हैं कि सोमेटोफोम डिसआर्डर में मरीज को जो दृश्य बार-बार दिखाई या जो बात सुनाई देती है, वह उसे अपने भी महसूस होने लगती है।
इसे यदि किसी भी व्यक्ति को पेट में दर्द होता है तो वह तुरंत इंटरनेट पर वीडियो देखकर खुद ही उपचार के प्रयास करता है। अधिक दर्शक पाने की खातिर वीडियो अधिक आक्रामक बिंदुओं बनाए जाते हैं। इनमें बीमारी के जो लक्षण दिखाए जाते हैं, मरीज उन्हें अपने शरीर में महसूस करने लगता है। तनाव में आकर चिकित्सक की सलाह भी नहीं मानता।
काउंसिलिंग इसके उपचार का बेहतर जरिया है। ऐसे मरीजों से बात करने के बाद उन्हें चुपचाप रोग के विशेषज्ञ की दवाएं ही दे दी जाती हैं। उन्हीं से लाभ होने लगता है। जिला अस्पताल के मन कक्ष की मनोवैज्ञानिक खुशअदा ने बताया कि यह समस्या सबसे ज्यादा युवाओं में आ रही है। 18 से 27-28 साल के लोगों में ज्यादा आ रही है।
केस नंबर : 1
पिछले सप्ताह शहर में की रहने वाली एक लड़की जिला अस्पताल के मन कक्ष में पहुंची। उसके पेट में दर्द रहता था। उसका कहना था कि उसे कैंसर, अल्सर या फिर उसकी किडनी फेल के लक्षण लग रहे। तनाव के कारण किसी से बात करने का मन नहीं होता। मनोचिकित्सक ने पर्चे देखे तो डाक्टर की किसी भी रिपोर्ट में यह पुष्टि नहीं थी। पांच दिन काउंसिलिंग व दवा से वह स्वस्थ हो गई।
केस नंबर : 2
सेटेलाइट चौराहा के पास रहने वाला युवक अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसके सिर में दर्द होने लगा। जब इंटरनेट पर सिट में दर्द की वजह तलाशी तो उसमे माइग्रेन से लेकर साइनस, ब्रेन ट्यूमर जैसे न जाने कितनी बीमारियों के लक्षण दिखाए। देने लगे। जिसकी वजह से वह खुद को इन बीमारियों से पीड़ित होना समझने लगा। बरेली से लेकर दिल्ली तक न्यूटोलाजिस्ट को दिखाया मगर, फायदा नहीं हुआ। बाद में उसे मन कक्ष में मनोचिकित्सक ने समझाया कि नौकरी में असंतुष्टि का तनाव है, कोई बीमारी नहीं।
केस नंबर : 3
सिविल लाइंस की रहने वाली एक महिला को टीड़ की हड्डी में दर्द की समस्या थी। जब उसने इंटरनेट पर सर्च किया तो उसमें मोटापा, कमजोर हड्डियां, तनाव समेत न जाने कितने लक्षण दिखा दिए। इतने वीडिया देखे कि वह उनमें बताए गए लक्षणों को खुद में महसूस करने लगीं। डाक्टर पर भरोसा नहीं करती थीं। मनोवैज्ञानिक ने उनकी बात को समझा, चिकित्सक के पर्चे पर लिखी दवाएं चुपचाप अपने पास से देकर कहा कि इनसे आराम मिलेगा। 15 दिन में वह ठीक महसूस करने लगीं।