Bareilly News : बरेली में बेहतर इलाज की जरूरत... डाॅक्टर बाेले- खल रही AIIMS की कमी
Jagran Vimarsh चिकित्सा में बरेली पीछे नहीं हैं यहां पर अधिकांश सभी सुविधाएं हैं। दिल्ली व लखनऊ समेत अन्य जगहों से सस्ता और बेहतर इलाज भी यहां पर है। फिर भी डाक्टरों को यहां पर एक हायर सेंटर की आवश्यकता महसूस होती है।
बरेली, जागरण संवाददाता। Jagran Vimarsh: चिकित्सा के क्षेत्र में बरेली पीछे नहीं हैं, यहां पर अधिकांश सभी सुविधाएं हैं। दिल्ली व लखनऊ समेत अन्य जगहों से सस्ता और बेहतर इलाज भी यहां पर है। फिर भी डाक्टरों को यहां पर एक हायर सेंटर की आवश्यकता महसूस होती है, क्योंकि कई क्रिटिकल मरीज यहां ऐसे भी आते हैं जो हायर सेंटर नहीं होने की वजह से दम तोड़ देते हैं।
डाक्टरों की मेहनत और कोशिश भी वह उन्हें नहीं बचा पाते। इसके लिए यहां एम्स स्तर का अस्पताल होने की जरूरत है। इसी के साथ झोलाछाप और अवैध अल्ट्रासाउंड, पैथोलाजी सेंटर भी दूसरी बड़ी समस्या है। वह मरीज को सही जगह पहुंचने नहीं देते हैं। इलाज के नाम पर मरीज लुटता है।
तमाम पैथोलाजी व अवैध अल्ट्रासाउंड सेंटर फर्जी रिपोर्ट जारी कर देते हैं, जिससे मरीज परेशान होते हैं। इससे भी बड़ी समस्या डाक्टरों के प्रति लोगों के उग्र व्यवहार की है, जिस कारण डाक्टर गंभीर मरीज को लेने से भी कतरा रहे हैं। दैनिक जागरण सभागार में शुक्रवार को हुए विमर्श में इस तरह की समस्याएं डाक्टरों ने उठाईं।
इसके साथ ही डाक्टरों ने स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए भी मंथन किया। बाद में कार्यक्रम में मौजूद सीएमओ डा. बलवीर सिंह ने भी डाक्टरों की समस्याओं का त्वरित समाधान कराने का भरोसा दिया। अतिथियों का स्वागत दैनिक जागरण बरेली-मुरादाबाद संस्करण के महाप्रबंधक डा. मुदित चतुर्वेदी और संपादकीय प्रभारी जयप्रकाश पांडेय ने किया।
यह समस्याएं आई सामने
- झोलाछाप का मकड़ाजाल
- तीमारदारों का उग्र रवैया
- गलत इंजेक्शन, वैंटीलेटर पर रखने का आरोप
- एम्स जैसे अस्पताल का अभाव
- इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव
- डाक्टर नहीं उद्यमी की तरह लेती सरकार
- डाक्टरों की बेहद कमी
- दवाओं के दामों में अंतर
- डाक्टरों को नहीं मिलती सुरक्षा
- कार से चलने वालों के पास भी आयुष्मान
यह दिए सुझाव
- एम्स स्तरीय अस्पताल की जरूरत
- डाक्टरों का बना रहे स्वाभिमान, मिले सुरक्षा
- आयुष्मान में शामिल बीमारियों के इलाज के दाम बढ़ें
- झोलाछाप व अवैध जांच केंद्रों पर हो कार्रवाई
- सरकारी सेवा के लिए नए डाक्टरों के बने बांड, स्कालरशिप दें
- सरकारी अस्पताल की ओपीडी फीस बढ़ाई जाए
- एक रेडियोलाजिस्ट दो अस्पताल से ज्यादा में न हो पंजीकृत
- हेल्थ प्रोमोशन होना चाहिए, बचाव पर ध्यान दिया जाए
- डाक्टरों को लाइसेंस प्रक्रिया में राहत दी जानी चाहिए
- मेडिकल उपकरणों पर कम की जाए जीएसटी
हमारी बरेली में स्वास्थ्य सेवाएं काफी बेहतर हैं, हमारे डाक्टर भी किसी से कम नहीं हैं। यहां पर इलाज भी दूसरे बड़े शहरों की तुलना में अच्छा और सस्ता है, लेकिन कई बार यहां पर एक हायर सेंटर की जरूरत महसूस होती है। हमारी कोशिश है कि जल्द ही यहां पर एक एम्स खोला जाए। बरेली के चिकित्सीय सेवाओं का प्रमोशन करना भी जरूरी है। साथ ही जिले में जल्द ही हेल्थ एटीएम भी लगेगें। जिससे लोगों को अपनी जांच कराने में समस्याएं न आएं।
1984 में यहां पर अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई जैसी तमाम सुविधाएं यहां नहीं थी। समय के साथ आज की बरेली में अधिकांश सुविधाएं हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल में अभी भी डाक्टरों की कमी हैं। इसके लिए जरूरी है कि, जो भी छात्र सरकारी संस्थान से डाक्टरी की पढ़ाई करें उनसे पहले ही एक बांड भरवा लिया जाए कि उन्हें सरकारी अस्पताल में सेवाएं देनी होंगी। जिससे डाक्टरों की कमी को दूर किया जा सकता है।
अभी भी चिकित्सा के क्षेत्र में एक जरूरत है, सरकार को सरकारी अस्पतालों में उस लेवल की सुविधाएं देनी चाहिए जो एक प्राइवेट अस्पताल में होती हैं। यदि मरीजों को बेहतर सुविधाएं मिलेगी तो उसका इलाज भी बेहतर होगा। जिला अस्पताल में एक रुपये का पर्चा नहीं बल्कि, ज्यादा का होना चाहिए। जिससे पर्चा सिर्फ वही लोग बनवाएं। जिन्हें इलाज की वाकई जरूरत हो। एक रुपये का पर्चा होने की वजह से तमाम लोग बिना बीमारी भी दवा लेने चले आते हैं और भीड़ बढ़ जाती है।
मरीजों को जहां पर संतुष्टि मिलती है वह इलाज वहां कराता है। फिर चाहे वह बरेली हो दिल्ली हो या फिर किसी अन्य जगह। लेकिन ऐसा कोई डाक्टर नहीं हैं, जो मरीज को संतुष्ट करने का प्रयास न करता हो। अब ऐसा भी संभव नहीं कि एक डाक्टर सभी मरीजों की भावना के आधार पर ही काम कर सके। डाक्टरों के प्रति समाज काे रवैया बदलने की जरूरत है।
बरेली में सब कुछ बेहतर है, यहां पर इलाज भी अच्छा है, सभी डाक्टर भी अच्छे हैं, लेकिन कई बार अचानक से इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर करने की जरूरत होती है। बरेली में वो नहीं होने की वजह से कई बार यहां एक मेडिकल केयर की जरूरत महसूस होती है।- डा. गिरीश अग्रवाल, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ
जिले के हर गांव में तमाम पैथोलाजिस्ट, झोलाछाप हैं। वे हर मरीज की रिपोर्ट को एक जैसा ही बना देते हैं। बची हुई कसर झोलाछाप पूरी कर देते हैं। हर मरीज को ड्रिप लगा देते हैं। कई बार मरीज के बचने की उम्मीद होती है लेकिन वो उसे भी खत्म हो जाती है। उनके लिए कोई नियम नहीं हैं।
यदि सरकार एक छोटे से पद पर भी भर्ती निकाले तो लाखों की संख्या में आवेदक आते हैं लेकिन डाक्टरों में ऐसा नहीं है। डाक्टर सरकारी नौकरी में नहीं आना चाहते क्योंकि उन्हें स्वाभिमान, सुरक्षा चाहिए जो उन्हें वहां नहीं मिलता।
जो भी एंटीबायोटिक दवाएं होती हैं, उन्हें रजिस्टर्ड करना चाहिए। बिना डाक्टर के लिखे वो दवाएं नहीं मिलनी चाहिए। क्योंकि, आज के समय में हर मेडिकल संचालक खुद से दवाएं दे देता है। जिससे मरीज को दिक्कत होती है, बाद में उन पर एंटीबायोटिक काम करना भी बंद कर देती हैं।
पूरे प्रदेश के डाक्टर भय में जी रहे हैं। क्योंकि मौजूदा समय में कानून, लाइसेंस, एनओसी सभी उनके लिए अनिवार्य हैं। यदि यही हाल रहा तो सिर्फ कारपोरेट ही बचेंगे। बाकी के छोटे अस्पताल खत्म हो जाएंगे। वहीं, सरकार ने आयुष्मान के रेट भी ऐसे तय किए है जिससे कोई फायदा नहीं, उसे बदलने की जरूरत है।
आजकल दाई हर गांव और मोहल्लों में डिलीवरी कर रही हैं। क्योंकि वह पढ़ी लिखी होती नहीं, जिसकी वजह से उन्हें अधिकांश समस्याओं की जानकारी नहीं होती। ऐसे में जच्चा बच्चा की मृत्यु की वे भी काफी जिम्मेदार हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग का ध्यान इन पर नहीं हैं।
हकीकत में अभी हम लोग सही से दवा देना भी नहीं सीखे, तब तक सरकार ने विदेशों की तर्ज पर मानक बनाना शुरू कर दिए। हकीकत में मानकों के नाम पर उत्पीड़न किया जा रहा है। इस पर विचार करना चाहिए।
अगल-अलग कंपनियों की दवाएं अलग-अलग दामों पर हैं। जबकि एक जैसे साल्ट की दवाओं के रेट एक जैसे होने चाहिए। सरकार को इनके दाम खुद ही निर्धारित करने चाहिए। वरना डाक्टर लिखता है सस्ता इंजेक्शन मेडिकल वाले देते हैं मंहगा।
डाक्टरों की पेंशन वर्ष 2007 मं समाप्त कर दी गई। टीबी की दवा जो इस समय में सरकार टीबी मरीजों को उपलब्ध करा रही है उनकी कीमत विदेशों में सात से आठ लाख रुपये है। ऐसे में हम सभी डाक्टरों और समाजिक संगठनों को भी आगे आना चाहिए। मैने खुद टीबी मरीजों को गोद लिया है। आइएमए के तमाम डाक्टर ऐसे हैं जिन्होंने मरीजों को गोद लिया है। हमारी कोशिश है कि बरेली सबसे पहले टीबी मुक्त होगा। एक बात यह कि कई ब्रांड ऐसे हैं जो दवाओं के साथ न्याय नहीं करते। ऐसे में उन पर रोक लगनी चाहिए।
अन्य शहरों की तुलना में बरेली में बेहतर इलाज है। हम से ही तमाम डाक्टर ऐसे हैं जो बाहर जाकर इलाज करते हैं। लेकिन दिक्कत यहां पर है कि हमें कंज्यूमर फोरम एक्ट में भी रखा गया है। हमें कंज्यूमर की तरह देखा जा रहा है। यदि हमें व्यापारी माना जा रहा है तो फिर हमसे चैरिटिबिलटी की उम्मीद क्यों होती है। बाकी एक बात यह भी आयुष्मान के रेट में बदलाव करना चाहिए। क्योंकि, जो रेट तय किए गए हैं वह ठीक नहीं।
ईएनटी के उपकरणों पर सरकार ने जीएसटी बहुत ज्यादा लगाया हुआ है। जिसकी वजह से उन्हें खरीदने में काफी समस्या होती है। मेरी एक ही गुजारिश है कि सरकार को उपकरणों पर जीएसटी कम करनी चाहिए।
अल्ट्रासोनिक, पैथोलाजिस्ट आदि सिर्फ एक ही अस्पताल में पंजीकरण हो। वरना आज के टाइम में ये लोग एक से अधिक अस्पतालों में पंजीकरण करा रहे हैं। जो भी ऐसा कर रहे हैं उन पर रोक लगनी चाहिए।
आयुष्मान के अस्पतालों पर तमाम बकाया हैं। जिसकी वजह से तमाम अस्पताल संचालक परेशान हैं। मेरी तो मांग है कि आयुष्मान की नियमावली में थोड़ी छूट होनी चाहिए। जिससे डाक्टरों को समस्या न हो।
वैसे तो मेडिकल क्षेत्र में बरेली काफी आगे हैं। लेकिन आयुष्मान की स्थिति ठीक करने की जरूरत है। क्योंकि उसमें अभी भी प्रतिदिन वार्ड के 1800 रुपये ही मिल रहे हैं। ऐसे में कैसे काम होगा। बरेली में कई अस्पतालों के पास आयुष्मान की सुविधा है, लेकिन सरकार को रेट बढ़ाने चाहिए। साथ ही यहां पर एक हायर सेंटर की आवश्यकता महसूस होती है। अस्पतालों के लिए सरकार के निमयों में भी कुछ छूट होनी चहािए।
हम मरीजों से सीधे जुड़े हुए हैं। कई बार देखते हैं कि जो लोग एसी गाड़ियों से उतर रहे हैं वह भी आयुष्मान से इलाज कराने आए हैं। उन्हें एसी कमरे चाहिए। इससे लगता है कि आयुष्मान बनाने में कई गड़बड़ी हुई हैं। जिन पर ध्यान देना चाहिए।
डेंटल में मरीजों का किसी भी तरह का कोई इंश्योरेंस कार्ड या आयुष्मान कार्ड स्वीकार नहीं होता। जो भी मरीज आता उससे कैश ही लेना होता है। यह बहुत बड़ी समस्या है। डेंटल वाले डाक्टरों को भी आयुष्मान और इंश्योरेंस कंपनियों की स्वीकृति मिलनी चाहिए।- डा. अनूप आर्य, वरिष्ठ दंत रोग विशेषज्ञ
आयुष्मान के जो पैकेज है वो इतने कम हैं कि मजबूरी में हमे मरीज को आगे बढ़ाना पड़ता है। क्योंकि जिस इलाज में खर्चा ही पचास है उसमें सरकार ने केवल 15 से 20 हजार लगाया है। मजबूरी मरीज हमें रेफर करना पड़ता है।
जो दवाएं ब्रांडेड कंपनी की होती हैं वो पेटेंट होती हैं जैनेरिक जो होती सस्ती इसलिए हैं क्योंकि कहीं न कहीं उनकी क्षमता भी कम होती है। ऐसे में सरकार को ब्रांडेड दवाओं के दाम कम करने चाहिए।
कहीं न कहीं नए डाक्टरों की संगठनों में भागीदारी कम है फिर चाहे वह आइएमए हो या फिर कोई और संगठन। इससे असर यह है कि नए डाक्टरों को भी पुरानी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में उनकी संगठनों में भागीदारी बढ़नी चाहिए।
सभी की समस्याएं सुनी, जिस भी डाक्टर की जो समस्याएं है उन सभी का समाधान किया जाएगा। आयुष्मान के रेट को लेकर मैं और विधायक जी दोनों लोग बात आगे बढ़ाएंगे। उम्मीद है कि सरकार इस पर ध्यान देगी। सभी डाक्टरों को सीएमओ की ओर से पूरा सपोर्ट मिलेगा।