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Bareilly Fake Encounter: 31 साल पुराना लाली एनकाउंटर निकला फर्जी, सेवानिवृत्त दारोगा को सुनाई जाएगी सजा

Bareilly Fake Encounter चर्चित लाली एनकाउंटर केस में सेवानिवृत्त दारोगा युधिष्ठिर सिंह पर बुधवार को हत्या का आरोप साबित हो गया। लाली के साथ मुठभेड़ नहीं हुई बल्कि दारोगा ने जानबूझकर जान से मारने के इरादे से लाली पर गोली चलाई थी जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

By Jagran NewsEdited By: MOHAMMAD AQIB KHANPublished: Wed, 29 Mar 2023 08:44 PM (IST)Updated: Wed, 29 Mar 2023 08:44 PM (IST)
Bareilly Fake Encounter: 31 साल पुराना लाली एनकाउंटर निकला फर्जी, सेवानिवृत्त दारोगा को सुनाई जाएगी सजा : जागरण

बरेली, जागरण संवाददाता: शहर के चर्चित लाली एनकाउंटर केस में सेवानिवृत्त दारोगा युधिष्ठिर सिंह पर बुधवार को हत्या का आरोप साबित हो गया। लाली के साथ मुठभेड़ नहीं हुई बल्कि दारोगा ने जानबूझकर जान से मारने के इरादे से लाली पर गोली चलाई थी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अपर सेशन जज-12 पशुपति नाथ मिश्रा ने हत्या के आरोपित दारोगा युधिष्ठिर सिंह को दोषी ठहराया है। अदालत 31 मार्च को उसकी सजा पर फैसला सुनाएगी।

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मामला वर्ष 1992 का है। थाना कोतवाली में तैनात रहे दारोगा युधिष्ठिर सिंह ने 23 जुलाई 1992 को मुकेश जौहरी उर्फ लाली को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था। दारोगा ने अपने बचाव के लिए वारदात को मुठभेड़ दर्शाकर मृतक लाली पर लूट व जानलेवा हमला करने के आरोप में मुकदमा दर्ज करा दिया।

दारोगा ने कोतवाली में रिपोर्ट लिखाई कि वह वारदात की शाम 7:45 बजे बड़ा बाजार से घरेलू सामान खरीद कर वापस लौट रहे थे। तभी तीन व्यक्तियों को पिंक सिटी वाइन शाप के सेल्समैन से झगड़ते हुए देखा था। एक व्यक्ति ने जबरन दुकान से शराब की बोतल उठा ली तो दूसरे ने दुकानदार के गल्ले में हाथ डाल दिया। सेल्समैन के विरोध करने पर एक व्यक्ति ने सेल्समैन पर तमंचा तान दिया।

लूट की आशंका से दारोगा युधिष्ठिर सिंह ने आरोपितों को ललकारा तो एक ने उन पर फायर झोंक दिया जिससे वह बाल-बाल बचे। दारोगा ने पुलिस को बताया कि अगर वह गोली नहीं चलाते तो बदमाश उनकी जान ले सकते थे। उन्होंने अपनी आत्मरक्षा में एक बदमाश पर अपने सरकारी रिवाल्वर से गोली चला दी जिससे वह लहूलुहान होकर गिर पड़ा।

घायल ने अपना नाम मुकेश जौहरी उर्फ लाली बताया। बाकी दो व्यक्ति मौके से फरार हो गए। मुकेश जौहरी उर्फ लाली की अस्पताल ले जाते समय मृत्यु हो गई थी। दारोगा ने लूट व जानलेवा हमला करने के आरोप में थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया।

पांच साल तक मां ने की पैरवी, तब सीबीसीआइडी को दी गई जांच

शहर के चर्चित कांड में लाली की मां ने दारोगा की कहानी को झूठा बताते हुए पुलिस अधिकारियों से हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की। मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पांच साल तक मृतक की मां पैरवी करती रही। अंत में जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई जिससे राजफाश हुआ कि दारोगा ने घटना के वक्त अपनी आत्मरक्षा का अधिकार खो दिया था। वह ड्यूटी पर नहीं थे और उसने सरकारी रिवाल्वर का दुरुपयोग किया। दारोगा ने लाली पर सामने से गोली चलाना बताया जबकि पोस्टमार्टम में गोली पीठ में लगी पाई गई।

सीबीसीआइडी के इंस्पेक्टर शीशपाल सिंह के शिकायती पत्र पर 20 नवंबर 1997 को दारोगा युधिष्ठिर सिंह के विरुद्ध हत्या की प्राथमिकी लिखी गई थी। सीबीसीआइडी ने चार्जशीट के साथ 19 गवाहों की लिस्ट कोर्ट में पेश की। सरकारी वकील आशुतोष दुबे व वादी पक्ष के अधिवक्ता अरविंद श्रीवास्तव ने मुकदमे में बहस की। अपर सेशन कोर्ट जज-12 पशुपति नाथ मिश्रा ने आरोपित दारोगा युधिष्ठिर सिंह को हत्या का दोषी माना है।

फरारी पर संपत्ति कुर्क के जारी हुए थे आदेश

हत्या के आरोप में युधिष्ठिर सिंह अदालत से जमानत पाने के बाद गायब हो गया। बाद में अदालत ने तमाम गिरफ्तारी वारंट जारी किए लेकिन वह हाथ नहीं आया। बाद में अदालत को उसे भगोड़ा घोषित करना पड़ा। उसकी गिरफ्तारी के अलावा दारोगा की संपत्ति कुर्क किए जाने के भी आदेश हुए। आखिरकार पुलिस के दबाव में सेवानिवृत्त दारोगा को जेल जाना पड़ा।


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