दुनिया के बाजार में.. बरेली का झुमका Bareilly News
छ पल फुर्सत के निकालें और बीते कल में झांके तो बहुत कुछ ऐसा दिखता है जिसके बारे में हमने सुना तो काफी कुछ पर जानते कुछ नहीं। ऐसा ही है बरेली का झुमका।
वसीम अख्तर, बरेली: छ पल फुर्सत के निकालें और बीते कल में झांके तो बहुत कुछ ऐसा दिखता है, जिसके बारे में हमने सुना तो काफी कुछ पर जानते कुछ नहीं। ऐसा ही है बरेली का झुमका। शायद ही कोई हो जिसने बरेली के झुमके के बारे में सुना न हो। पर, क्यों खास है हमारे शहर का झुमका, इसकी जानकारी कम लोगों को ही होगी। बात शुरू से करें। बरेली की स्थापना राजा जगत सिंह के हाथों हुई। रुहेले आए तो रुहेलखंड की राजधानी बना। मुगलों और अंग्रेजों ने भी छाप छोड़ी। रहन-सहन से लेकर पहनावा तक बदलता गया।
पहली पंसद है बरेली का झुमका
इतिहास के जानकार शाहीन रजा जैदी बताते हैं कि महिलाओं में पुराने दौर से ही जेवरात का चलन था। शहर की तरक्की हुई तो बड़ा बाजार बना। इसी बाजार के आसपास जेवरात बनाने वाले कारीगरों को आबाद किया गया। नवाब अयूब हसन खां बताते हैं कि बरेली में झुमका पुराने दौर से ही बन रहा है। इन दिनों खाड़ी देशों से लेकर यूरोप तक में हिंदुस्तान से जुड़ाव रखने वाली महिलाओं की पहली डिमांड है बरेली का झुमका।
मुंह दिखाई में मांगा था झुमका
जब मोरक्को की दुल्हन फदुआ शादी होकर बरेली आईं तो उन्होंने मुंह दिखाई में अपने शौहर शुएब इब्राहीम से बरेली का झुमका ही मांगा। सराफ अहमद उल्ला वारसी बताते हैं कि शुरुआत में झुमके पर एम्ब्रोज का काम होता था। बड़ा झुमका बनता था। डाई से ढोल बनाया जाता था और उसमें घुंघरू लटकाए जाते थे। तांबे का कच्चा माल तैयार करके पालिश के लिए राजकोट भेजा जाता था। तब सोने के झुमके की डिमांड कम थी, लेकिन जैसी ही 1966 में फिल्म मेरा साया आई तो तस्वीर बदल गई। सोने के झुमके की डिमांड आसमान छूने लगी। तब से अब तक झुमके की बनावट में कई तरह के बदलाव हो चुके हैं।
40 हजार से ढाई लाख तक है कीमत
सराफा कारोबारी संजीव अग्रवाल बताते हैं कि 10 ग्राम सोने वाला बरेली का झुमका 40-50 हजार में बिकता है। अब अगर इसी झुमके में कोई हीरा या पन्ना की डिमांड करता है तो कीमत बढ़कर ढाई लाख तक पहुंच जाती है।
खाड़ी देशों की पसंद है कुंदन झुमका
दुबई और सऊदी अरब समेत खाड़ी देशों से शहर आने वाली महिलाओं की पहली पसंद कुंदन झुमका है। बड़ा बाजार और कुतुबखाना के आसपास के सराफा कारोबारियों की मानें तो महिलाएं कुंदन झुमके की डिमांड करती दिखाई देती हैं। इसके विपरीत पोलकी वाला झुमका यूरोप की पसंद है।
इन मुहल्लों में बनता है झुमका
खन्नू मोहल्ला, छोटी और बड़ी बमनपुरी, बिहारीपुर, कन्हैया टोला, गढ़ैया, आलमगिरी गंज, जोगी नवादा और रोहिली टोला ऐसे मोहल्ले हैं, जहां पर पीढ़ी दर पीढ़ी झुमका बनता चला आ रहा है। यहां पर पुराने जमाने से घर घर में स्वर्णकारी का ही काम होता आया। उस समय डिजाइन के लिए मशीनें नहीं थी। इसलिए डिजाइन का पूरा काम हाथ से ही होता था। इस काम में यहां के लोगों को अब भी महारत हासिल है। कारीगर पवन बताते हैं कि मुस्लिम वर्ग की महिलाएं अलग-अलग तरह के झुमके पसंद करती थीं। कुरैशी बिरादरी की महिलाएं सफेद कलर में बनने वाले झुमके की दीवानी हैं। वैसे फैंसी झुमके बनाने की शुरुआत बरेली में कलकत्ता से आए कारीगरों ने की।