कनाडा जाने का मोह त्याग कर कथावाचक बन गए आशीष
शुभम शर्मा, बरेली: सीताराम सीताराम, सीताराम कहिये, जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए... उक्त चौपाइयां कथावाचक पंडित आशीष मिश्रा पर सटीक बैठती हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीकाम के बाद वह कनाडा से एमबीए करना चाहते थे। इसी समय वह राम में ऐसे रमे कि कनाडा का मोह उसके समक्ष फीका पड़ गया। पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आशीष प्रभु राम के गुणगान में लग गए। वह अब तक देश भर में 400 से अधिक कथाएं कर चुके हैं।
कथाव्यास आशीष मिश्रा ने बताया कि उनके दादा श्रीनाथ मिश्र और पिता विजेंद्र नाथ मिश्र कथाव्यास थे, लेकिन उन्होंने कभी रामकथा का सपना नहीं संजोया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीकाम की पढ़ाई के बीच ही पिता का निधन हो गया। पिता के जाने के बाद कोई सहानुभूति जताने आता तो उनके रामकथा के नोट्स मांगता तो उनके दादा उन्हें दे देते। एक दिन उन्होंने दादा से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे उनके घर की सबसे बड़ी संपत्ति ले जाने के लिए आते हैं, जिस संपत्ति के होने पर न केवल व्यक्ति संपन्न, बल्कि उसका चरित्र भी महान हो जाता है। तब उन्होंने अपने पिता के नोट्स देने से इन्कार किया और कनाडा जाने का मन बदलकर दादा से रामकथा सीखनी शुरू की।
कई लोगों ने किया हतोत्साहित
उन्होंने बताया कि जब उन्होंने रामकथा सीखनी शुरू की तो परिवार सहित कई लोगों ने हतोत्साहित किया, लेकिन भगवान राम को अपनी सेवा करानी थी। प्रभु की कृपा से संसार की बातों से खुद को डगमगाने नहीं दिया और रामकथा कहने लगे।
अमेरिका में भी बनाए राम प्रेमी
उन्होंने बताया कि युवाओं को समझना होगा कि वे विदेशी सभ्यता को छोड़ अपनी संस्कृति को जानें और जीवन को सफल बनाएं। वर्तमान में देश के युवा जिस तरह अपनी संस्कृति से दूर हो रहे हैं, वह चिंताजनक है। कुछ साल पहले दादा के साथ अमेरिका जाने और वहां रामकथा कहने अवसर मिला था। तब से वहां के युवा इतने प्रभावित हुए कि वे आज भी कई बार राम कथा की वीडियो बनाकर भेजने के लिए कहते रहते हैं।