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Ground Report: इस गांव की बेटियों हुनर के धागों से बुनती हैं अमेरिका-फ्रांस की ब्राडेंड ड्रेस

तीन हजार आबादी वाला बरेली जिले का गांव फरीदापुर इनायतखां और हजारों किमी दूर चमक दमक वाला देश फ्रांस। जानते हैं इन दोनों में समानता क्या है... इस गांव में कपड़े तैयार होते हैं और फ्

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 05:13 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 01:08 PM (IST)
Ground Report: इस गांव की बेटियों हुनर के धागों से बुनती हैं अमेरिका-फ्रांस की ब्राडेंड ड्रेस
Ground Report: इस गांव की बेटियों हुनर के धागों से बुनती हैं अमेरिका-फ्रांस की ब्राडेंड ड्रेस

तीन हजार आबादी वाला बरेली जिले का गांव फरीदापुर इनायतखां और हजारों किमी दूर चमक दमक वाला देश फ्रांस। जानते हैं इन दोनों में समानता क्या है... इस गांव में कपड़े तैयार होते हैं और फ्रांस के लोग उन्हें पहनते हैं। वो ब्रांडेड कपड़े जिन्हें इन बेटियों का हुनर तराशता है। घर की चौखट से निकलकर उनका हुनर सात समंदर पार तक पहुंच चुका। इसी के बूते वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में लगी हैं। वे अपनी कोशिशें कर रहीं मगर जरूरत इस बात की भी है कि बेटियों को ऐसे मौके बढ़ें इसके लिए नेता भी अपनी जिम्मेदारी तय करें। गरीबी दूर करना और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने उनके लिए बड़ा मुद्दा बने। गांवों में बेटियों के हुनर पर अभिषेक पाण्डेय की ग्राउंड रिपोर्ट-

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यह चौंकाने वाली बात थी, मेरे लिए, और शायद आपके लिए भी...  जिस गांव में एक कान्वेंट स्कूल तक नहीं वहां की लड़कियां फ्रांस-अमेरिका में बेचे जाने वाले ब्रांडेड कपड़े तैयार करती हैं। सुना तो उस गांव की ओर बढ़ चला, इस उम्मीद के साथ बात निकली है तो उसकी कुछ बुनियाद जरूर होगी। शहर से करीब पंद्रह किमी दूर फरीदपुरा गांव की पहली सड़क तक पहुंच गया, जाना कहां यह पता नहीं था इसलिए इधर-उधर निगाह दौड़ाई तो एक बच्चा दिख गया। आवाज दी... सुनो। जहां लड़कियां सिलाई करती हैं वह जगह कौन सी है। ...आओ मेरे पीछे चलो आओ, थोड़ी सी दूर पर ही है। कहते हुए बच्चे ने हमें इशारा किया और हमारी गाड़ी उसके पीछे रेंगने लगी। कुछ दूर जाकर एक गली के मकान पर ठहराकर वह चला गया। हमने अंदर झांका, आठ लड़कियां सिलाई मशीन पर काम करने में व्यस्त थीं। बिना कुछ बोले उस खुले दरवाजे की चौखट पर खड़ा होकर अंदर देखने की कोशिश करने लगा। एक की निगाह पड़ी तो सवाल आया... ज़ी बताइए, क्या काम है। जवाब दिया, सुना है आप लोग फ्रांस में बिकने वाले कुछ ब्रांड के कपड़े बनाती हैं। सुनकर उस लड़की के चेहरे पर आत्मविश्वास से लबरेज मुस्कान आई, जो बयां कर रही थी कि खुद के बूते सफलता पाने का अहसास कैसा होता है।  ...आइए, यह अकरम भाई बैठे हैं, उनसे मिल लीजिए। परिचय हुआ तो अकरम बच्चों के वे ब्रांडेड कपड़े दिखाने लगे जोकि फ्रांस भेजे जाते हैं। कुछ बैग दिखाए जोकि ई कामर्स साइट पर बिक्री होते हैं और कुछ प्लाजो भी... ब्रांड का टैग लगे हुए। ये अमेरिका भेजने के लिए तैयार किए गए है... कहते हुए अकरम ने मेरे चेहरे की ओर देखा मगर मेरा ध्यान उन बेटियों की ओर लगा था जोकि इन सारी बातों से विरत अपने काम में लगी थीं। कोई कपड़े काट रही थी तो कोई सिलाई मशीन चला रही थी। मुझे लगता है कि पहले मैं इन लोगों से बात कर लूं, बाद में कपड़े देख लूंगा... मेरी जुबां से यह शब्द निकले तो अकरम ने हामी भर दी और मैं उनकी ओर बढ़ गया। परिचय हुआ, सबसे पहले वीना से। वह वीना जोकि इंटर की पढ़ाई के बाद बीए-एमए करने से ज्यादा जरूरी यह समझती थी कि सिर्फ डिग्री इकट्ठी करने से कुछ नहीं होता, हुनरमंद भी तो होना चाहिए। उन्होंने ऐसा ही किया भी। गांव में एक संगठन मृदा के लोग निश्शुल्क सिलाई सिखाने आते थे, उनके बैच में शामिल हो गई और तीन महीने में खुद को पारंगत कर लिया। मृदा की टीम के जरिये एक कंपनी ने फ्रांस के बेबी सूट के कुछ सैंपल भेजे, इस उम्मीद के साथ कि यदि अच्छी क्वालिटी की सिलाई की जाएगी तो ऑर्डर भेजना शुरू कर देंगे। वीना और उसके साथ काम करने वाली बेटियां खरी उतरीं। अब एक ऑर्डर खत्म नहीं हो पाता, दूसरा उससे पहले आ जाता है। करीब पंद्रह मिनट की इस बातचीत ने मुझे अहसास करा दिया कि ये बेटियां 21 वीं सदी की हैं। जिनके हौसले की चोट से संसाधनों की कमी का पहाड़ भी ढेर हो जाता है। जो न रुक सकती हैं और न दौड़ते वक्त से पीछे रह सकती हैं। मेरे दिमाग में यही सब कौंध रहा था और कानों में गांव की उस बेटी की आवाज।  इससे बाहर निकलते हुए मैंने सवाल किया-और ये लोग... मेरी बात पूरी होती इससे पहले अनीता, पिंकी ने खुद अपना परिचय दे दिया। किशनपुर से आने वाली आभा भी उसी टीम का हिस्सा हैं। ये सब रोजाना चार-छह घंटे काम कर दो सौ रुपये तक कमा लेती हैं। सबने दस मिनट को काम रोका, बातचीत हुई और फिर काम में लग गईं।

गांव की बेटियों के बने कपड़े फ्रांस के ब्रांड भी ले सकते हैं... मेरे इस सवाल का जवाब मिल चुका था। वास्तव में, हुनर एक छोटी सी लौ है। मुश्किलों के अंधेरे जितने ज्यादा घने होंगे, यह लौ उतनी ही ज्यादा चमक देगी।

खुद की कमाई से कर रही पढ़ाई

फरीदपुरा इनायत खां से कुछ दूरी पर ताहताजपुर गांव है। वहां रहने वाली रेशमा भी इसी टीम का हिस्सा हैं। सिलाई करती हैं। वैसे इनकी कहानी अन्य से कुछ अलग है। रेशमा सिलाई के रुपये से अपनी स्नातक की पढ़ाई के खर्च पूरे करती हैं।

अब पति की मदद भी करुंगी

फरीदापुर गांव का माहौल जब काम के माकूल हुआ तो अन्य परिजन भी उन बेटियों के साथ खड़े होने लगे। वहां रहने वाली कोकिला ने ब्यूटी पार्लर को कोर्स किया। गांव में ही दुकान खोलनी थी मगर रुपये नहीं थे। मदद लेकर ब्यूटी पार्लर खोला, तीन महीने में उधारी की रकम भी चुका दी। उनके पिता करनपाल कहते हैं, बेटी की शादी कर दी है मगर वह अपना काम बंद नहीं करेगी। ससुराल जाएगी, वहां पति की मददगार बनेगी।  


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