तंगहाली में पढ़ न पाई, बेटी ने फांसी लगाई
सरकार पढ़ाना चाहती है, बेटियां भी खूब पढ़ना चाहती हैं, लेकिन होनहार मुर्शरत आर्थिक तंगी के चलते बीकॉम नहीं पढ़ पाई तो उसने फांसी लगाकर जान दे दी।
जेएनएन, बरेली। सरकार पढ़ाना चाहती है, बेटियां भी खूब पढ़ना चाहती हैं। आगे बढ़ना चाहती हैं लेकिन, लाख चाहत के बाद भी होनहार बिटिया मुर्शरत के मन की हो न सकी। जिद बहुत की लेकिन, पढ़ न सकी क्योंकि.. तंगहाली ने बांध दिए थे मां-बाप के हाथ। चूंकि, घर की हालत बेटी बखूबी जानती थी। जिद को कामयाबी की जिद्दोजहद में बदलने का रास्ता सूझ नहीं रहा था। आखिर में हताश इस कदर हुई, रात को कमरे में सोने गई लेकिन चुनरी से फांसी लगाकर जान दे दी। कानून की नजर में यह आत्महत्या है मगर, बेहतरी के दावे करने वाली व्यवस्था के लिए सबक का आईना.. आखिर कब पहुंचेगी अंतिम कतार तक इमदाद..।
दिल को झकझोर जाने वाली घटना भोजीपुरा के गांव अंबरपुर की है। मजदूर पेशा शहंशाह के दो बेटे और छह बेटियां हैं। मुर्शरत (17) सबसे छोटी थी। पढ़ने की गजब ललक थी उसमें। इसी साल इंटर की परीक्षा अजीजपुर के माध्यमिक विद्यालय से पास की। वो भी 82 फीसद अंकों के साथ। अपने जुनून के खातिर मुर्शरत ने कोई परवाह नहीं की। गांव से चार किलोमीटर दूर साइकिल से हर रोज स्कूल जाया करती थी। घर वालों से एक ही बात कहती, खूब पढ़कर काबिल बनना है। परिवार की गरीबी दूर करनी है। मुर्शरत कई दिनों से मां-बाप से बीकॉम में प्रवेश दिलाने की जिद कर रही थी। आर्थिक तंगी चलते पिता आगे पढ़ाने से असमर्थता जता रहे थे। रविवार शाम को वह काफी निराश हो गई, जब उसके पिता ने कह दिया कि उसके पास पैसे नहीं हैं। मां ने भी यह कहते हुए डांट दिया कि अब खूब पढ़ ली, आगे नहीं पढ़ा पाएंगे। यह बातें मुर्शरत के सपनों पर मानों कुठाराघात थीं। इसके बाद ही उसने आत्महत्या कर ली। सुबह होने पर बेटी का लटका शव देखा तो घर में कोहराम मच गया। गांव में जिसने भी सुना, हर कोई दौड़ पड़ा। सभी को मुर्शरत के जाने का अफसोस है। कह रहे हैं, एक बार बता देती। पढ़ने की हसरत में हम कोई कसर नहीं छोड़ते..।