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Jagran Special : यूपी के इस जिला अस्पताल में हर महीने दम तोड़ रहे 20 नवजात Bareilly News

अहमदाबाद कोटा राजकोट के अस्पतालों में बच्चों की मौत का मामला पूरे देश में छाया हुआ है। ऐसे में यहां के अस्पताल भी इससे अछूते नहीं हैं।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 11:33 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jan 2020 05:50 PM (IST)
Jagran Special : यूपी के इस जिला अस्पताल में हर महीने दम तोड़ रहे 20 नवजात Bareilly News
Jagran Special : यूपी के इस जिला अस्पताल में हर महीने दम तोड़ रहे 20 नवजात Bareilly News

अशोक कुमार आर्य, बरेली : अहमदाबाद, कोटा, राजकोट के अस्पतालों में बच्चों की मौत का मामला पूरे देश में छाया हुआ है। ऐसे में यहां के अस्पताल भी इससे अछूते नहीं हैं। हालांकि यहां शिशुओं की मौत का आंकड़ा बहुत अधिक नहीं है फिर भी हर महीने करीब 20 नवजात की मौत सवाल खड़े कर रही है। जिले में पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर तक यानी नौ माह के आंकड़े देखे जाएं तो अब तक इलाज के दौरान 180 शिशुओं की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा स्वास्थ्य महकमे के शिशु मृत्यु दर को कम करने के प्रयासों को झटका दे रहा है।

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2700 से अधिक मरीज हुए भर्ती : जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड में नौ महीने में करीब 1700 बच्चों को इलाज के लिए भर्ती किया गया। अगस्त में साढ़े तीन सौ से भी अधिक मरीज भर्ती हुए। वहीं, महिला अस्पताल के सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में नौ माह में एक हजार से अधिक बच्चों को भर्ती किया गया। वहां महिला अस्पताल में ही पैदा होने वाले व अन्य अस्पतालों में पैदा होने वाले बच्चे भर्ती हुए।

एसएनसीयू में 138 नवजात ने दम तोड़ा : दर्जन भर से अधिक नवजात यहां से हायर सेंटर को रेफर किए गए। बच्चा वार्ड में 42 बच्चों की मौत हुई तो एसएनसीयू में 138 नवजात ने दम तोड़ा।

एक-दूसरे पर टाल देते थे मरीज : जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड और महिला अस्पताल के बीच नवजात को इलाज के लिए टालने का खेल काफी दिन चला। जिला अस्पताल से कई बार बच्चों को सीधे महिला अस्पताल में भर्ती करने के लिए भेज दिया जाता था। वहीं, कई बार महिला अस्पताल में पैदा होने वाले बच्चों को इलाज के लिए पुरुष अस्पताल के बच्चा वार्ड भेज दिया जाता था। यहां-वहां भेजने के चक्कर में कई बार नवजात की सांसें तक थम जाती थीं।

लापरवाही में ही चार डॉक्टरों पर हुई कार्रवाई : नवजात के इलाज में लापरवाही के चलते ही करीब छह माह पहले तत्कालीन अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक और एक बाल रोग विशेषज्ञ को शासन ने निलंबित कर दिया था। महिला अस्पताल की सीएमएस के खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई हुई। एक संविदा के डॉक्टर की सेवाएं समाप्त की गईं। एक नवजात को पुरुष अस्पताल की ओपीडी से एसएनसीयू भेजा गया। वहां से फिर ओपीडी भेजा। समय बीतने पर नवजात की मौत हो गई थी। फिलहाल चिकित्सकों का दावा है कि व्यवस्था में सुधार किया जा रहा है।

एसएनसीयू में नहीं थीं मशीनें

महिला अस्पताल में एसएनसीयू बने एक साल से अधिक हो गया। मेडिकल कॉरपोरेशन ने शुरुआत में वहां 12 रेडिएंट वार्मर और चार फोटोथेरेपी मशीनें भेजी थीं, लेकिन वह ठीक नहीं होने पर वापस मंगा ली। मशीनें नहीं होने पर बच्चों को इलाज के लिए भर्ती नहीं किया गया। कई बार इलाज नहीं मिल पाया।

बच्चा वार्ड में व्यवस्थाएं काफी सुधरी हैं। भर्ती होने वाले सभी मरीजों को इलाज दिया जा रहा है। गंभीर मरीजों को रेफर कर देते हैं। बच्चों की मौत में कमी आई है।

- डॉ. टीएस आर्या, अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक, जिला अस्पताल

शुरुआत में एसएनसीयू में मशीनें नहीं होने के कारण मरीजों को रेफर करना पड़ा। मशीनें व स्टाफ उपलब्ध होने के बाद बेड की उपलब्धता के हिसाब से मरीज भर्ती हो रहे हैं। नवजात की मृत्यु का आंकड़ा भी कम हुआ है।

- डॉ. अलका शर्मा, सीएमएस, महिला अस्पताल


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