ताजियों में दिख रहा है, महिलाओं का हुनर
ताजियों में दिख रहा है महिलाओं का हूनर
बाराबंकी : मुहर्रम को लेकर महिलाओं में एक अलग हुनर (कला) लोगों को देखने को मिल रहा है। मीरपुर गांव कोमल हाथों से अकीदत की मंजिल ताजिया बनाने की मिसाल इस क्षेत्र की महिलाएं व लड़कियां पेश कर रही हैं।
यहां की महिलाएं मुहर्रम के काफी पहले ताजिया बनाना शुरू कर देती हैं। यहां की अफरोज, सहिस्ता बानो, जोहरा बानो, जुवेदा, फरहीन समेत तमाम महिलाओं की कारीगर बताती हैं कि इससे कमाई तो होती ही है। इबादत में मशगूल रहने के साथ हुसैन की याद में खिराजा-ए अकीदत पेश करके अपनी गुलामी का सुबूत देने का भी मौका मिलता है। वारगाहे इमाम में मुल्क के लिए अमन-चैन की दुआ मांगती हैं।
ऐसे तैयार होती है ताजिया: आशमा बानो बताती हैं कि ताजिया बनाने वाली सामग्री रंग-बिरंगे कागज, विरोजा, गोल्डन, चमकीली पन्नी, शीशा, धागा, तार, गोद, बास को चीर कर उसकी फट्टी, महीन-महीन तीली, तागा, पेपर, पक्का कागज, मैदे की लेई, फेविकोल, टेप आदि से बनाया जाता है।
50 से 10 हजार रुपये तक ताजिया : सनव्वर, अनवर, शगीर, मुन्ना, गुड्डू, नसीम, राजू, बताते हैं कि गांव में कई पीढि़यों से ताजियों का निर्माण किया जाता है। सबसे कम कीमत की 50 रुपये की ताजिया हैं। तीन से पांच हजार तक ताजिया बिकते हैं। सुढि़यामऊ स्थिति मीरपुर गांव में करीब चार दर्जन घरों में ताजिया प्रमुख व्यवसाय के रूप में वर्षों से पहचाना जाता है।