अवधी में संवाद ने बढ़ाई उपेंद्र की जनता से नजदीकी
1ड्डह्यह्लह्लड्डठ्ठ द्बह्य ष्द्यश्रह्यद्ग ह्लश्र ह्लद्धद्ग श्चद्गश्रश्चद्यद्ग श्रद्घ ढ्डड्डद्घह्यद्धद्ब ह्वश्चद्गठ्ठस्त्रह्मड्ड द्बठ्ठ ड्डड्ड2ड्डस्त्रद्ध 1ड्डह्यह्लह्लड्डठ्ठ द्बह्य ष्द्यश्रह्यद्ग ह्लश्र ह्लद्धद्ग श्चद्गश्रश्चद्यद्ग श्रद्घ ढ्डड्डद्घह्यद्धद्ब ह्वश्चद्गठ्ठस्त्रह्मड्ड द्बठ्ठ ड्डड्ड2ड्डस्त्रद्ध
बाराबंकी
जनप्रतिनिधियों का व्यवहार और संवादशैली उनकी लोकप्रियता का पैमाना होती है। इसका निजी अथवा समाज सामाजिक जीवन हो फिर राजनीति का मैदान गहरा प्रभाव भी पड़ता है। यदि संवाद का माध्यम स्थानीय लोकभाषा हो तो कहने ही क्या। लोकभाषा में संवाद चुनाव का रुख मोड़ने की भी ताकत रखता है। इसका असर इस बार के चुनाव में दिखा भी है। विजेता और उप विजेता प्रत्याशियों को कांग्रेस प्रत्याशी के सापेक्ष कम गांवों में जनसंपर्क करने के बावजूद अवधी में संवाद का लाभ मिला है।
अवध क्षेत्र की लोकभाषा अवधी है। यह भोजपुरी, बृज और बुंदेलखंडी जैसी लोकभाषाओं में भी इसका खासा दखल है। इसलिए उत्तर प्रदेश और यहां की सियासत में अवधी रची बसी है। इसका अहसास सियासत के दिग्गजों को भी है। इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हाराव से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेताओं की लोकप्रियता का आधार एक से अधिक भाषाओं पर पकड़ होने के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में संवादशैली की क्षमता रही है। नेपाल जैसे देशों में भी अवधी का प्रभुत्व है। इसीलिए इस बार के चुनाव में कम समय में जनता में अपनी छोड़ने के लिए प्रत्याशी ही नहीं उनके स्टार प्रचारकों ने भी अवधी का ही सहारा लिया। हैदरगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जय राम जी की और निदूरा में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का 'तनिक सुनि लेव' ने मतदाताओं को करीब लाने का काम किया।
'नंबर मिलाइहव तव मिली' बनी पहचान
नव निर्वाचित सांसद उपेंद्र रावत ने संवाद का माध्यम अवधी भाषा को ही बनाया है और इस पर वे गर्व भी करते हैं। लोकप्रियता और विधानसभा व लोकसभा चुनाव में जीत का श्रेय वे इस संवादशैली को ही देते हैं। वे बताते हैं कि आमतौर पर हो चुनाव प्रचार में बातचीत में भी अवधी को तरजीह देते हैं। बताया कि इसकी अवधी में संवाद की ताकत वर्ष 2017 के विधानसभा के चुनाव में उन्हें देखने को मिली। बताया, ज्यादातर लोगों की शिकायत जनप्रतिनिधियों के नंबर बदल देने या फोन उठाने को लेकर थी। इस पर मैंने कहता हूं कि- 'हमार नंबर नोट करव, रात-बिरात जब मिलइव तव मिली, हमार नंबर जो तुमरी जेब मा तव समझव उपेंद्र तुमरी जेब मा।' साथ ही जरूरत पर मिलाने को कहा था, चेक करने के लिए नहीं। यह संदेश बहुत कम समय में लोगों तक पहंच गया। इसके पर कुछ लोगों ने रात करीब डेढ़ बजे भी कॉल करके चेक किया। इस चुनाव में भी हमने अपनी शैली में ही प्रचार किया और जनता ने पांच लाख 35 हजार से अधिक मत स्नेह के रूप में दिए। अब तो यह मेरी पहचान बन चुकी है। जिले के लोगों से भी कहना चाहूंगा कि वे अपनी लोकभाषा अवधी को समृद्ध करने के लिए इसी भाषा में संवाद को प्राथमिकता दें।
अवधी में ही करते हैं संवाद रामसागर
चुनाव में करीब चार 25 हजार से अधिक मत पाकर उप विजेता रहने वाले सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी राम सागर रावत भी अवधी भाषा में ही लोगों से बातचीत करते हैं। इस चुनाव में भले ही उन्हें पराजय मिली हो पर इतने मत मिलने की वजह उनकी संवादशैली ही रही है।
गांव-गांव पहुंचे तनुज पर वोट में पिछड़े
कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया ने चुनाव प्रचार के दौरान जिले के छोटे-बड़े करीब दो हजार गांवों में घर-घर दस्तक दी। जबकि, भाजपा के उपेंद्र रावत साढ़े चार सौ व गठबंधन के रामसागर महज 120 गांवों तक ही पहुंच पाए। इन सबके बावजूद तनुज को करीब एक लाख 59 हजार मत ही मिले। इसकी वजह उनकी अवधी पर पकड़ का कमजोर होना भी माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप