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पुण्यतिथि पर विशेष : मृगेश ने कविताओं में पिरोया किसान और शोषितों का दर्द

कवि समाज का आइना होता है। इस बात को महाकवि गुरु प्रसाद सिंह मृगेश की रचनाएं पुख्ता करती हैं। रामनगर के बुढ़वल में जन्मे कवि मृगेश ने सामाजिक विसंगतियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से उकेरने का काम किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 11:18 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 11:18 PM (IST)
पुण्यतिथि पर विशेष : मृगेश ने कविताओं में पिरोया किसान और शोषितों का दर्द
पुण्यतिथि पर विशेष : मृगेश ने कविताओं में पिरोया किसान और शोषितों का दर्द

जगदीप शुक्ल, बाराबंकी

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कवि समाज का आइना होता है। इस बात को महाकवि गुरु प्रसाद सिंह मृगेश की रचनाएं पुख्ता करती हैं। रामनगर के बुढ़वल में जन्मे कवि मृगेश ने सामाजिक विसंगतियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से उकेरने का काम किया। किसान, मजदूर, श्रमिक और बाढ़ की त्रासदी हो या फिर गांव का परि²श्य, चहलारी नरेश और एकलव्य जैसे पात्र सब पर उन्होंने निर्भीकता से लेखनी चलाई। उन्होंने अवधी भाषा के साथ ही बृज और खड़ी भाषा को अपनी काव्य साधना का हिस्सा बनाया। वह रमई काका, वंशीधर शुक्ल के समकालीन कवि थे।

मृगेश का रचना संसार:

कवि मृगेश ने पारिजात प्रबंध काव्य सहित 15 कृतियों का सृजन किया। इसमें अवधी की प्रबंध काव्य पारिजात के अलावा गांव के गीत, बरवै व्यंजना, चहलारी नरेश, चयन, खड़ी बोली में प्रबंधकाव्य दया का दंड व मृगेश का महाभारत, सुगीत, माधव मंगल, मृगांक, बृज भाषा में शबरी शतक व मुक्तक चयन और राजा की आन

बैजू बांवरा, एकलव्य तीन नाटक की तीन पुस्तकों का सृजन किया है।

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अन्याय और शोषण के खिलाफ रहे मुखर:

कवि राम किशोर तिवारी किशोर बताते हैं कि मृगेश जी कविताएं वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श हैं। उन्होंने लगान के लिए किसानों का जमीदारों के कारिदों के उत्पीड़न का वर्णन करते हुए लिखा है कि -'का करी कउनि चलै बसि आपन, खैंचि का लाए हैं राम दुलारे, चूल्ह बरा तक होई न आजु, परे लरिका सब हुइहैं भुखारे, गउनु बिटेवा का काल्हि रहय, पहुना दुई चारि टिक हैं दुआरे, मारव न माफ करव मलिकव, कछु मांगे जो पइबय तव द्याबय सकारे।' इसके अलावा मृगेश का महाभारत में उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा का भी बेहतरीन ढंग से वर्णन किया है।

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माटी के कवि थे मृगेश :

साहित्यकार अजय सिंह गुरुजी बताते हैं कि मृगेश जी ने समाज की पीड़ा के साथ ही पौराणिक और सामाजिक परिवर्तन को भी अपनी कविताओं का केंद्र बताया। वह माटी के कवि थे। उन्होंने पद पाकर अभिमान करने वालों को सचेत हुए लिखा था कि 'बउड़ी बिरवा चढि़ न इतराव, समय का भाव अस न रही।' इसके अलावा कविता में नए प्रयोगों पर व्यंग्य करते हुए लिखा था कि 'तुम करव कवितई बंद बुढ़उनु जुग बदला।' फैक्ट फाइल

जन्मतिथि : 12 जनवरी 1910

पुण्यतिथि : 14 अप्रैल 1985


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