¨जदा है खेत जगाने और अलाय-बलाय निकालने की परंपरा
जगदीप शुक्ल, बाराबंकी दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम के वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर उत्सव के
जगदीप शुक्ल, बाराबंकी
दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम के वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार का कृषि प्रधान देश भारत में किसानों से भी गहरा सरोकार है। इसकी गवाही हर दीपावली पर खेतों को जगाने, अलाय-बलाय निकालने और रात में बीज बोने जैसी परंपराएं दे रही हैं।चारिव क्वान बराबर राखउ
दीपावली के दिन गांव के किनारे से गुजरते वक्त आपको 'खेत राजा जागव-जागव, मोर गरीबी द्याख्व, चारिव क्वान बाराबर राखव' की ध्वनि आमतौर पर सुनाई देती होगी। साहित्यकार अजय ¨सह गुरु जी ने इस संबंध में बताया कि दीपावली से पूर्व किसान की धान की फसल तैयार हो चुकी होती है। इसके उल्लास स्वरूप किसान यह पर्व मनाते हैं। मान्यता है कि किसान अच्छे उत्पादन, खेती से संबंधी विवादों स बचाने और समृद्धि की कामना के लिए खेतों के कोने में पुआल जलाकर जगाते हैं। बुराइयों को करते हैं आग के हवालेरात में अलाय-बलाय निकाली जाती है। इसमें बुराइयों को आग के में जलाया जाता है। इस दौरान गांव वाले अलाय-बलाय जात है, घोड़ी बछेड़ी जात है बोलते हैं। अलाय-बलाय में घर के कूड़ा-करकट के साथ ही जुआ-खटमल को भी जलाया जाता है। मान्यता है कि साफ-सफाई युक्त घर को दुरात्माओं से बचाने के लिए श्रीगणेश-लक्ष्मी के पूजन से पूर्व यह कार्य किया जाता है। इसके अलावा पूजन के बाद करीब आधी रात में 'ईश्वर आएं-दरिददर जाएं' का गायन सूप पीटकर दुरात्माओं को सचेत भी किया जाता है।-------------------------हर वस्तु को जगाते हैं
दीपावली के दिन हर वस्तु को जागृत करने की परंपरा है। लोग कृषि यंत्रों की पूजा करने के साथ ही उनको संचालित कर जगाते हैं। जैसे कि ट्रैक्टर यदि घर पर खड़ा भी हो उसे स्टार्ट किया जाता है। जमघट वाले दिन कोई भी कृषि यंत्र संचालित नहीं किया जाता। दीपावली की रात कलम की पूजा कर भाई दूज कर विराम दिया जाता है। जमघट की सुबह गोवर्धन पूजा में भी खेतों में पैदा होने वाले अनाज का प्रयोग होता है। नए चावल से तैयार खाद्य पदार्थ महिलाएं बनाती हैं। भाईदूज की पूजा में भी नए चावल का प्रयोग होने के साथ ही चूरा का उपयोग होता है।
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