लॉकडाउन ने समझाया महत्व, बेसहारा गायों को मिला सहारा
हालात अच्छे हों या खराब..कुछ न कुछ सबक दे ही जाते हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है कोरोना के संक्रमण के दौर में। लॉकडाउन के चलते जहां लोगों को तमाम दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं। वहीं संयुक्त परिवारों आयुर्वेद और गांव व शाकाहार से जुड़ाव बढ़ा है। इस दौर में बेसहारा जानवरों के प्रति भी लोगों का नजरिया बदला है। गांवों में दूध की किल्लत हुई तो दरवाजे पर खूंटे से बंधी रहने वाली गाय की याद आई। फिर क्या था गोआश्रय केंद्र पहुंचे और गाय ले आए। इससे न सिर्फ दूध की किल्लत दूर हुई बल्कि चारे पर खर्च में भी मदद सहभागिता योजना के तहत मिली। जिले में 34 गो आश्रय केंद्र पर कुल सात हजार चौदह गोवंश हैं। इनमें 1511 गायें थीं।
बाराबंकी: हालात अच्छे हों या खराब..कुछ न कुछ सबक दे ही जाते हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है कोरोना के संक्रमण के दौर में। लॉकडाउन के चलते जहां लोगों को तमाम दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं। वहीं, संयुक्त परिवारों, आयुर्वेद और गांव व शाकाहार से जुड़ाव बढ़ा है। इस दौर में बेसहारा जानवरों के प्रति भी लोगों का नजरिया बदला है। गांवों में दूध की किल्लत हुई तो दरवाजे पर खूंटे से बंधी रहने वाली गाय की याद आई। फिर क्या था गोआश्रय केंद्र पहुंचे और गाय ले आए। इससे न सिर्फ दूध की किल्लत दूर हुई बल्कि चारे पर खर्च में भी मदद सहभागिता योजना के तहत मिली। जिले में 34 गो आश्रय केंद्र पर कुल सात हजार चौदह गोवंश हैं। इनमें 1511 गायें थीं। सहभागिता योजना से जुड़कर 686 ग्रामीणों ने 1134 गायें पाल लीं। इनमें 492 गायें पशुपालकों ने अप्रैल और मई के मध्य यानी लॉकडाउन के दौरान पाली गईं हैं। कई पशुपालक तो घर में दूध के इस्तेमाल के अलावा दूधियों से बिक्री कर आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं। अयोध्या मंडल के पांच जिलों से लॉकडाउन से पहले बेसहारा 4883 पशुओं को संरक्षित करने का लक्ष्य था। अब तक 80 फीसद गायें संरक्षित हो चुकी हैं।
अमरसंडा की राम दुलारी और फूलमती बताती हैं कि पहले हर घर में गाय का पाला जाना शुभ माना जाता था। समय बदला और खेती ट्रैक्टर से होने लगी। भूसा-चारा पर महंगा खर्च होने के कारण लोग दूध खरीद कर पीने लगे और पशुओं को खुला छोड़ दिया। अब लॉकडाउन में फिर पशुओं की कीमत समझ में आई है। परिवार में दूध की किल्लत हुई तो कुर्सी स्थित आश्रय केंद्र से गाय ले आई हूं। कुर्सी के राम खेलावन, रामनगर के रामदीन व जगदीश चंद्र, कुल्लापुरवा के फैय्याज व सफदरगंज के राजेश यादव, दिनेश वर्मा ने भी आश्रय केंद्र से लाकर गाय पाल ली हैं। अब तो सरकार भी प्रति गाय नौ सौ रुपये प्रतिमाह दे दे रही है।
इनसेट : दिया गए लक्ष्य में सुपुर्द हुईं 80 फीसद गायें
जिला-बेसहारा पशु - गाय सुपुर्दगी का लक्ष्य
अयोध्या-3441 -1253
अंबेडकरनगर-1828 -665
बाराबंकी-7014 -1511
अमेठी-1515 -552
सुलतानपुर-2477 -902
कुल पशु-13411 -4884
'बेसहारा 1134 गायों का पालन हो रहा है। अधिकांश गायें दूध दे रही हैं, जो गो पालकों के लिए लाभकारी साबित हो रहा है। '
डॉ. मार्कंडेय, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, बाराबंकी।