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वादों में बनता रहा कल्याणी नदी का पुल

वादों पर बनता रहा पुल। जनता के साथ हो रहा छलावा

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 12:51 AM (IST)Updated: Wed, 01 May 2019 12:51 AM (IST)
वादों में बनता रहा कल्याणी नदी का पुल

बाराबंकी : वादे हैं वादों का क्या, वादे तो अक्सर टूट ही जाते हैं। विकास की गंगा बहाने के वादें हो, या फिर गांव की जनता की समस्या के निस्तारण का। चुनावी अखाड़े में उम्मीदवार जनता से वादें तो करता है, लेकिन वादों पर खरें नहीं उतरते। अरसे से एक अदद पुल की मांग जनता, जनप्रतिनिधियों से करती रही, लेकिन वादों में ही पुल बनते रहे। लकड़ी की बल्लियां और पटरियों से बने पुल पर जान जोखिम में डाल नदी पार करना आज भी दर्जनों गांवों की मजबूरी बनी हुई है। दरियाबाद विधानसभा के तहसील मुख्यालय से करीब पांच किमी दूर कल्याणी नदी किनारे स्थित कोयलहा मजरे शाहपुर है। यहां कल्याणी नदी पर पक्के पुल की मांग काफी वर्षों से हैं, लेकिन पक्का पुल न होने से लकड़ी के पुल का सहारा है। इससे तहसील मुख्यालय या फोरलेन पर पहुंचने के लिए करीब दस से बीस किमी की दूरी कम तय करनी पड़ती है। लकड़ी पुल से आवागमन करने वाले लोगों का भरोसा जनप्रतिनिधियों से उठ चुका है। कारण है कि चुनाव दर चुनाव होते रहे, जनता से वादे भी किए गए। आश्वासन मिला, कि इस बार जीतते ही सबसे पहले पुल बनवाया जाएगा, मगर ऐसा हो न सका। पक्का पुल न होने का दर्द झेल रही दर्जनों गांव की आबादी को पुल बनने की आशा तो है, लेकिन नेताओं के वादे पर भरोसा अब नहीं रहा। लकड़ी के पुल तक जाने के लिए कच्चा रास्ता है। पुल बने तो इन गांवों की आसान हो राह : कल्याणी नदी तट पर पुल बनने से पतुलकी, कोटवा, पुन्नापुर, महदीपुर, लोनियनपुरवा, पटरंगा, बड़नपुर, सुलतानीपुरवा, नवाबगंज, खेतासराय, नगरा, घोसवल समेत करीब दो दर्जन गांव की दूरी काफी कम हो जाएगी। इन्हें अतिरिक्त दूरी नहीं तय करना होगा, जिससे आवागमन सुगम हो सकेगा। बोले राहगीर : सुल्तानपुर के सोनू ने बताया कि काफी दिनों से पुल की मांग है, लेकिन चुनाव में ही सुध आती हैं। लकड़ी का पुल न हो तो मवई से घूम कर तहसील जाना पड़ेगा। यहां के गया प्रसाद ने बताया कि पुल का वादा हर चुनाव में हुआ। अब तक पुल नहीं मिला। शिवबरन सिंह ने बताया कि पुल बनने से कई किमी की दूरी कम होगी। पुल बनने से बच्चों को स्कूल जाने में आसानी होगी। ललित कुमार बताते हैं कि सुमेरगंज में रिश्तेदारी हैं। पुल बने तो पांच किमी दूरी ही है, नहीं तो पन्द्रह किमी दूरी तय करना पड़ेगा। दो साल में तीसरी जगह बना पुल : दो वर्ष में तीसरी जगह लकड़ी का पुल ग्रामीणों के सहयोग से बना है। पहले कोयलहा गांव के सामने पुल बना था। चुनाव में नेताओं के मजबूती से वादें के कारण पुल के रास्ते में आ रही भूमि मालिकों ने रास्ता बंद किया। जिसके बाद पुल एक किमी दूर पश्चिम दिशा में बना, लेकिन वो भी गिर गया। अब तीसरी जगह लकड़ी का पुल बनाया गया है।

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